दीप देह है स्नेह-सिक्त आभा है शिखा
राम-जानकी के प्रसंग में हमें यही दिखा
मेल दीप बाती का प्रकाश हेतु है लिखा
"राम" शब्द "जानकी" बिना दिखा तो क्या दिखा
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और तुझे ही शेष पाया मैंने
मुझ में से तुझ को घटाया मैंने
और कु... read more
मेरे मन में कहीं बेख़याली सी है
पलकें बेचैन आँखें सवाली सी हैं
आरती कोई होठों पे ठहरी हुई
अंजुरी जैसे पूजा की थाली सी है
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ज़ाफ़रानी हवा मेरा मन ले चली
मेरे फ़ैलाव का आयतन ले चली
दूर इतनी कि इक उम्र भी कम पड़े
पास इतनी कि मन की छुअन ले चली-
ग़म की बारिश थमी थी कि तुम आ गए
आँख में कुछ नमी थी कि तुम आ गए
कुछ न था इस अधूरी सी दुनिया में बस
इक तुम्हारी कमी थी कि तुम आ गए-
चाँद के साए में भी अंधेरा रहा
दिन के पूरे उजाले में कोहरा रहा
बुद्ध ने ही सफ़ल की मेरी याचना
बुद्ध आए तो मन में सवेरा हुआ-
आज में भी हैं और कल में भी बुद्ध हैं
सदियों थे और पल पल में भी बुद्ध हैं
हर सफ़ल आचरण का सुफल बुद्ध हैं
बीज में भी हैं और फल में भी बुद्ध हैं...-
उम्र भर को अकेला तुम्हारे लिए
देखता जग का मेला तुम्हारे लिए
चाह आँखों से बाहर नहीं जा सकी
मैंने क्या क्या न झेला तुम्हारे लिए-
उसकी आस मेरे लिए हवा और पानी है
पानी के किसी बुलबुले सी ये कहानी है
मैं कई जन्मों से उसी की राह तकता हूँ
मैं अगर हूँ मिट्टी तो वो आसमानी है-
जो दुनिया के बाहर है
वो सब मेरे अन्दर है
मुझसे मिलने आए थे
मैं बोला वो बाहर है
Full Ghazal : Caption
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बहुत दिन हो गए मिले तुझसे
इतने बढ़ गए फ़ासले तुझसे !
तिरे सिवा हमें ध्यान किसका
किसी से मिले तो मिले तुझसे-