दिल मेंइक ख़ामोशी रहती है । -
दिल मेंइक ख़ामोशी रहती है ।
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भारत का परचम फ़िर लहराया ।।नेस्तानाबूत कर विरोधियों के हौसलें,हिन्दोस्तां को सोना दिलाया ।। -
भारत का परचम फ़िर लहराया ।।नेस्तानाबूत कर विरोधियों के हौसलें,हिन्दोस्तां को सोना दिलाया ।।
खुशनुमा है एहसास, इस शहर में होने का।ना किसी को पाने की ख़ुशी,ना ग़म किसी को खोने का।मशगूल है हर कोई,अपनी ही जुगत में।फुर्सत ही नहीं, ख़्वाब नया संजोने का ।ज़ुबां में फैली है सबके, कड़वाहट नीम सी ।मतलब नही, लफ़्ज़ों में, नरमी पिरोने का । -
खुशनुमा है एहसास, इस शहर में होने का।ना किसी को पाने की ख़ुशी,ना ग़म किसी को खोने का।मशगूल है हर कोई,अपनी ही जुगत में।फुर्सत ही नहीं, ख़्वाब नया संजोने का ।ज़ुबां में फैली है सबके, कड़वाहट नीम सी ।मतलब नही, लफ़्ज़ों में, नरमी पिरोने का ।
छुपाए बैठे थे लाख ग़म, सीने में दफ़न कर के ।उसकी एक नज़र ने, मालूम सब कर लिया ।।इरादा -ए- इबादत तो ना था अब तलक ।उस क़ाफ़िर ने, पत्थर को रब कर दिया ।। -
छुपाए बैठे थे लाख ग़म, सीने में दफ़न कर के ।उसकी एक नज़र ने, मालूम सब कर लिया ।।इरादा -ए- इबादत तो ना था अब तलक ।उस क़ाफ़िर ने, पत्थर को रब कर दिया ।।
चल दिए फ़िर, सफ़र को अपने,छोड़ मोहब्बत-यार के सपने ।।कोहरे की चादर में लिपटी,शहर मेरे की, सारी गालियां ।।भोर की सुलगती आंच में मानो बेताब हो रग रग को तपने ।। -
चल दिए फ़िर, सफ़र को अपने,छोड़ मोहब्बत-यार के सपने ।।कोहरे की चादर में लिपटी,शहर मेरे की, सारी गालियां ।।भोर की सुलगती आंच में मानो बेताब हो रग रग को तपने ।।
अक्लमंद दोस्त है हमारी ।पन्ना दर पन्ना चलती है, समेटे खुद में दुनिया सारी ।। -
अक्लमंद दोस्त है हमारी ।पन्ना दर पन्ना चलती है, समेटे खुद में दुनिया सारी ।।
कयामत तक, मुसलसल यूं ही।मुकम्मल तो, हासिल तुम्हें कर लेंगे,वरना एक और ख़्वाब बुन लेंगे ।। -
कयामत तक, मुसलसल यूं ही।मुकम्मल तो, हासिल तुम्हें कर लेंगे,वरना एक और ख़्वाब बुन लेंगे ।।
हृदय में नारी सम्मान जब पूर्ण होता है ।। -
हृदय में नारी सम्मान जब पूर्ण होता है ।।
गांव की गलियों से बचपन को ।उड़ते रहते पीपल तले,भूल रिवाजों की जकड़न को ।। -
गांव की गलियों से बचपन को ।उड़ते रहते पीपल तले,भूल रिवाजों की जकड़न को ।।
तक़दीर के सहारे ना बैठ, हालात बदलते हैं इक रोज़ ।तदबीर को बना के रहनुमा, मुकद्दर को अपने ख़ोज।। -
तक़दीर के सहारे ना बैठ, हालात बदलते हैं इक रोज़ ।तदबीर को बना के रहनुमा, मुकद्दर को अपने ख़ोज।।