तैर के इस दुनिया के समंदर,
आ जाओ, ख्वाबों के अंदर ।।
तोड़ के दकियानूसी रिवाज़,
बदलो अब हालात ये मंज़र।।
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लफ़्ज़ रुक गए थे, कलम रुक गई थी ।
वक्त के उस दौर में, जिंदगी झुक गई थी ।।
नया सवेरा आया है, बरसों की अंधियारी के बाद,
चेहरा कुछ मुसकाया है, महीनों की लाचारी के बाद ।।
दुआ करो, अब ख़ैरियत रहे।
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खिड़कियों पर लगी धूल ने बयां किया,
बरसों से इस मकान में अपना कोई आया नही ।
माँ -बाप की थकी नज़रों से समझा,
औलादों ने संग बैठ, एक निवाला खाया नही ।।
यूं तो नाते तमाम है दुनिया भर में सबके,
अफ़सोस के अपनों ने कभी अपना बताया नही ।।-
ज़िन्दगी के उजाले मुबारक़ हो तुम्हें,
हमे अंधेरों ने हमेशा पनाह दी है ।
जब जब उलझा, कशमकश में
इन्ही अंधेरो ने मुझको राह दी है ।
मुह फेर कर जब, सब लौट गए थे,
अंधेरों ने हिस्से में, दुआ दी है ।
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जिसके रास्तों में कंकर ज्यादा होंगे,
बुनियाद-ए-मंज़िले उनकी, पुख़्ता ज्यादा होगी ।
हवाओं में भी एक इतर महसूस होगा,
पसीनों में नमी, जिसके ज्यादा होगी ।।
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पूरा शहर, आधा घर,
सब ज़हर ही ज़हर ।
उजड़ी हसरतें, बुझे घर,
सब कहर ही कहर ।
बढ़ती ज़िन्दगी, घटती उमर,
सब बेखबर ।-
हर इक ख्याल को याद करना मुश्किल है,
हर इक सवाल को याद करना मुश्किल है ।।
यूं तो क़ायम दुनिया कल भी रहेगी,
फ़िज़ूल की बात को याद करना मुश्किल है ।।-
फ़िर सुबह हुई, सिलसिले तमाम
जो कल रात सो गए थे,
फिर शुरू हुए कर के इंतेज़ाम ।
निकल गए घर से, भीड़ में खो कर,
खुद को तलाशने की कशमकश में ।
थक हार कर, लौटे
जब हुई शाम ।।-
और कुछ रहे सहे, ख्वाब जो बचे हैं,
उन्हें ना छेड़ना, टूटने की खातिर ।।
हुई हसरतें हैं आधी, आधी हैं बाकी,
उन्हें ना तोड़ना, रूठने की खातिर ।।
यही इल्तिज़ा, यही गुज़ारिश,यही दरख़्वास्त है,
शिक़वा ना करना, शिकायतों की खातिर ।।
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