निशां साहिल पे कदमों के, मैं जब भी ढूंढने निकलूं,मेरी आंखों के कोनों को, समंदर याद आता है। -
निशां साहिल पे कदमों के, मैं जब भी ढूंढने निकलूं,मेरी आंखों के कोनों को, समंदर याद आता है।
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हवा में घुल चुका कोई ज़हर है,दवा भी मर्ज़ पर अब बेअसर है।चलो सब मूंद लें, अब अपनी आंखें,कि इस शब की, नहीं कोई सहर है। -
हवा में घुल चुका कोई ज़हर है,दवा भी मर्ज़ पर अब बेअसर है।चलो सब मूंद लें, अब अपनी आंखें,कि इस शब की, नहीं कोई सहर है।
तल्ख़ शामों के ज़रा बोझिल से लम्हे जैसा मैं,और कभी खिलती हुई कलियों के हिस्से जैसा मैं।चंद सपने, कुछ किताबें और इक आवारगी,साथ ले कर चल रहा, बचपन के बस्ते जैसा मैं। -
तल्ख़ शामों के ज़रा बोझिल से लम्हे जैसा मैं,और कभी खिलती हुई कलियों के हिस्से जैसा मैं।चंद सपने, कुछ किताबें और इक आवारगी,साथ ले कर चल रहा, बचपन के बस्ते जैसा मैं।
हमारी राह जहां ले के हमको आई है,वहां ज़मीं नहीं पहुंची, फ़लक नहीं पहुंचा।उठेगी चीख जब, थर्राएगा जहां सारा,हमारा दर्द मगर, हद तलक नहीं पहुंचा। -
हमारी राह जहां ले के हमको आई है,वहां ज़मीं नहीं पहुंची, फ़लक नहीं पहुंचा।उठेगी चीख जब, थर्राएगा जहां सारा,हमारा दर्द मगर, हद तलक नहीं पहुंचा।
दरिया में है कैद समन्दर, देखो ना,बाहर छोड़ो, मन के अंदर देखो ना।दिल पे ज़ख्मों के हैं, थोड़े दाग़ मगर,तुम मुझमें बस मस्त कलंदर देखो ना। -
दरिया में है कैद समन्दर, देखो ना,बाहर छोड़ो, मन के अंदर देखो ना।दिल पे ज़ख्मों के हैं, थोड़े दाग़ मगर,तुम मुझमें बस मस्त कलंदर देखो ना।
नया सा इक ज़माना चाहता हूं,वहां सब कुछ पुराना चाहता हूं। कोई मुझसे मेरी औकात पूछे, मैं फिर से दुःख मनाना चाहता हूं। -
नया सा इक ज़माना चाहता हूं,वहां सब कुछ पुराना चाहता हूं। कोई मुझसे मेरी औकात पूछे, मैं फिर से दुःख मनाना चाहता हूं।
सुखन को इतना तो करना होगा,ये बस ज़रा सी उमीद सबको, अकेली राहों पे साथ चलना, झुलसते मौसम में काम आना। -
सुखन को इतना तो करना होगा,ये बस ज़रा सी उमीद सबको, अकेली राहों पे साथ चलना, झुलसते मौसम में काम आना।
मैं जिस कल पे था आया टालता सब,वही कल आज आ पहुंचा है, देखो। -
मैं जिस कल पे था आया टालता सब,वही कल आज आ पहुंचा है, देखो।
आसमां का रंग उतरा, ज़र्द मंज़र हो गए,दूर जाना यूं तेरा, इस दिन की रंगत खा गया।फिर किसी ने ज़िक्र तेरा कर दिया है बेवजह,फिर कोई ले कर नमक, ज़ख्मों के जानिब आ गया। -
आसमां का रंग उतरा, ज़र्द मंज़र हो गए,दूर जाना यूं तेरा, इस दिन की रंगत खा गया।फिर किसी ने ज़िक्र तेरा कर दिया है बेवजह,फिर कोई ले कर नमक, ज़ख्मों के जानिब आ गया।
जो बची हुईं हैं जहान में, उन खूबियों को तबाह कर,ये जो सुर्खियां हैं न.. सुर्खियां, इन्हें हादसों की तलाश है। -
जो बची हुईं हैं जहान में, उन खूबियों को तबाह कर,ये जो सुर्खियां हैं न.. सुर्खियां, इन्हें हादसों की तलाश है।