हाँ थक गया हूँ इसलिए थोड़ा विराम लिया है ।
मत समझना कि मैंने अभी आराम लिया है ।।
देखते हैं आएंगे कैसे नहीं वे महफ़िल में,
इसबार ख़ुद उनने हमसे पैग़ाम लिया है ।
ख़ुद पर आई मुसीबतें तब जाकर पता लगा ,
क्यों लोगों ने मीठी जुबां पर कड़वा जाम लिया है ।
अब तो होंगी ही बदन में मर्ज़ों की बौछारें ,
हरेक बारी में दो-चार टका जो हराम लिया है ।
रहो बिल्कुल बेफ़िक्र अबकी नहीं बिगड़ेगा ,
इसबार दिमाग़ से जो तुमने काम लिया है ।
सड़नी ही थी टोकरी पूरी उनमें बड़ी बात क्या?
उसमें सड़ा हुआ जो तुमने एक आम लिया है ।
मत समझो अभी से महान अपने आपको ,
मन ने नहीं अभी तो बस मन्दिर ने राम नाम लिया है ।
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Instagram ~ arvind_jain_9785
My book
"द्वंद्व"
कैसे हो सुराख आसमां में पत्थर में उछाल नहीं आया ।
थोड़ी और पकने दो अभी चाय में उबाल नहीं आया ।।
तुमको दे तो दी थी सब कुछ पूछने की इज़ाजत ,
ग़लती तुम्हारी है कि तुन्हें कोई सवाल नहीं आया ।।
कर सकते थे जितना कोशिश उतनी की हमने ,
इसलिए हारकर भी हमें कभी मलाल नहीं आया ।।
हम गए थे इसलिए कह दिया कि आएगा वह भी ,
पर शायद अभी तो वह फ़िलहाल नहीं आया ।।
बस तुम करते रहो तुम्हारा भी होगा कभी भला ,
बस अभी जरा भला होने का काल नहीं आया ।।
ज़रा ओस की बूंदें टपक गईं सर्द की तो क्या हुआ,
रुको जरा चार दिन अभी तक नया साल नहीं आया।।
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उसके बीच प्रेम की तादाद को तलाश कर दिया ।
लो देखो ऐसा करके तुमने उसे हताश कर दिया ।
फेंके थे जो कांटें छीनने उसकी सही सलामती ,
देखो दरियादिली उसने काँटों को ग़ुलाब कर दिया ।
आई जब फ़ुहारें कुछ-कुछ सर्द की उड़कर,
उसने महताब को बदलकर अफ़ताब कर दिया ।
मेहनत से भी पाई थी जो उसने सौगातें ,
कहने पर तुम्हारे उसने सारा हिसाब कर दिया ।
आज तक रहा था बेफ़िक्री के आलम में बेचारा ,
पर आज यह सब करके उसे बड़ा बेताब कर दिया ।
ख़ैर हम खैरियत चाहते हैं सबकी अब क्या कहें ,
पर अच्छा नहीं किया ये तुमने बहुत ख़राब कर दिया
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वो तो हमारी रोज बादलों से गुज़ारिश होती है ।
तब जाकर जमीं पर लतीफ़ सी बारिश होती है ।।
भूल जाते हैं वे सब मेहनत- ए -तलब हमारी ,
लगता है उन्हें की ये सब बिन शिफारिश होती है ।
तोड़नी पड़ती है कमर जमाने में कमाने की ख़ातिर ,
तब जाकर भूखे पेट को चार रोटी मुनासिब होती है ।
तुम कहाँ जानते हो मुफ़लिसी का मातम थोड़ा भी,
तुम्हारी कही गई पूरी तो हरेक ख़्वाहिश होती है ।
इतना आसां नहीं हमारे एतमाद को हरा पाना तुम्हें ,
इसलिए तो हमें हराने तुम्हारी इतनी साज़िश होती है ।
रुका रहता है आना - जाना रिश्तेदारी में तुम्हारा ,
इसलिए ही तो रिश्तों में मधुरता की काहिश होती है ।
~Arvind jain-
(कुंडलियाँ)
आया वक्त बड़ा कठिन,लड़की का पड़ा अकाल ।
सरकारी सेवा बिना , बुरा सभी का हाल ।
बुरा सभी का हाल मिले लड़की ना कोई ।
सोचे सारे हमने की क्या गलती कोई ।
कहे वधू के बाप ये गलती बड़ी नहीं है ?
सरकारी नौकरी हत्थे तुम्हारे चढ़ी नहीं है ।-
ये जो आजकल हम इतना कमाने लगे हैं ।
हमें यहाँ तक पहुँचने में जमाने लगे हैं ।
हुए क्या बामुराद ज़रा से आजकल हम ,
वे अपना सर हमारे कमर तक झुकाने लगे हैं ।
हो गए हैं कितने अधिक शातिर नयन हमारे,
कमबख्त ये तो सबकी नजरें चुराने लगे हैं ।
चाहिए होंगे दो- चार मुखौटे चेहरे पे कोई ,
चूँकि ये सारे राज दूसरों को बताने लगे हैं ।
अब नहीं माँगना इमदाद अजीजों से भी,
अब तो वे भी हमपर एहसान जताने लगे हैं ।
न देखी होंगी तकलीफें उनने वालिदों की ,
इसलिए औलादें माँ-बाप को सताने लगे हैं ।
हो गया दिखना बंद अब जब आँखों से ,
अब बेआँख वे सबको राह दिखाने लगे हैं ।
~Arvind-
उससे थोड़ी सी ही क्या बात हो गई ।
होते- होते देखो कितनी रात हो गई ।
भूला क्या रखना आज छाता थैले में ,
देखो बेमौसम ही कितनी बरसात हो गई ।
मिल न जाए हम सो गया था छिपने को,
कमबख्त छिपने की जगह मुलाकात हो गई।
कौन करे जीतने को इतना तकल्लुफ़ ,
इसीलिए तो शायद हमारी मात हो गई ।
उतरे ही थे मंच से देकर भाषण समान का,
छूते ही दलित के कितनी जात पात हो गई।
कर दी खत्म जब डिग्रियों की तालीम,
लगा अब मेरी असली शुरुआत हो गई ।
~Arvind-
अच्छा किया हवाओं को दे दी जो सुनने की ताकत ,
ऐ-ख़ुदा नहीं तो बाँटते किससे अपनी तन्हाईयाँ ...!!
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