पतंगबाजी का शौक़ तो हम भी रखते हैं,
मगर शर्त है यह की
उसके मोहल्ले की तरफ़ हवा तो चले!-
•Mech. Design Engineer
अभी 'विन्दा' से फेर ले निगाह अपनी, मैं तेरी पलकें महफूज़ कर लूँ ।
मेरा लफ्ज़-लफ्ज़ हो आइना, तुझे आइने में उतार लूँ।।
ज़रा ठहर जा यहीं पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ ।
आस्मां की नुमाइशों में, मोतियों की दूकान से, तेरी बालियाँ, तेरे हार लूँ।।
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जिस्म से करने लगे है,मुलाकात आजकल के आशिक़,
वो गालों से जुल्फों को हटाने का जमाना अब नहीं रहा..!!-
अहम से निकले तो कब्जा-ए-आवारगी मिली, जब हम पूरे तबाह हो गये.. तब सादगी मिली।
शीशे सी ईमानदारी ढूंढने चला था दीवाना, हर शख्स में उसे..आईने सी अदायगी मिली।
न जाने कितने ही दरिया पी चूका हूँ 'विन्दा', मुझे विरासत में.. समंदर की तिशनगी मिली।
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जाने ये भी कैसी पहचान हो गयी है मेरी आवारगी मेरी शान हो गयी है,
क्या हुआ होगा बीती रात यहाँ दोपहर से रूठके सुबह शाम हो गयी है,
बड़ी उम्मीद से फूँकी थी उस गर्दन पे मैंने आज मेरी एक साँस बदनाम हो गयी है,
मेरी परछाइयों ने घेर रखा है मुझे कबसे बहस ओ गुफ़्तगू तमाम हो गयी है,
छत ने सी लिया है कलेजा अपना और दीवार सीना चीरके रोशनदान हो गयी है!-
हम दोनों बराबर ज़िद्दी रहे हमेशा,
ना उसने गुस्सा कम किया ना मैनें प्यार!-
कैसी है मज़बूरी, कैसी है तड़पन,
ज़िद्दी थोड़ा नादान है जान मेरी!
बस एक बार बात करादे खुदा,
तेरी चखट पर यही अर्ज़ी है मेरी!!-
ख्वाहिश थी की सैर हो जन्नत की, मांगी दुआ तो खुदा ने अता की।
बेदर्द नहीं है इतना वो खयाल रखता है, सपने में सूरत माँ की दिखा दी ।-
नुमाइश कर जिस्म की, आँखों को पढ़ने वाले नाशाद हैं, अंदाज़-ए-वफ़ा बदल 'विन्दा', ज़रूरत लाज़मी है।
वो एक दौर था जब शीरीं-फरहाद के किस्से आम थे,
ये दौर है जहाँ महबूब बदलना हर घडी एक अंदाज़ है।-