Arvind Akv   (Arvind AKV)
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Joined 17 July 2019


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Joined 17 July 2019
19 APR AT 23:27

खत्म हुआ इंतज़ार, बगिया में आई है बहार,
एक सुर्ख़ मुस्कान इन लब पर आई है निखर,

नासाज़ एहसास से मिला सुरूर जैसे हो नूर,
रंग बिरंगा ये गुलज़ार चमन खिल गया आज,

जज़्बा-ए-उन्स ये महफ़िल कहे है कुछ बात,
अरविंद हर दिल ख़ूबसूरत है, कहे ये हर बार ।

-✍️ Arvind Akv

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12 APR AT 20:07

इस खूबसूरत नासाज़ कायनात के
शायद काबिल ना धे हम, ऐ दोस्त,

क्या कुसूर था,कुसूर ही जाने ये राज़
हमें तो बेकसूर होने की मिली सज़ा,

जानता हूँ, इसे भी तलब है हमारी
लेकिन फिर दुनिया का है ख़्याल,

अरविंद इस शाद एहसास से लगी है
ख़लिश ठोकर मुसलसल बार-बार ।

-✍️ Arvind Akv

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12 APR AT 12:45

दोस्त, बदल रहा है मिजाज़ मौसम का बहुत कुछ,
मेरे देखते ही देखते बदल रही ये हवाएं क़ायनात की,
चमन में वो गुलज़ार सुर्ख़ गुल, वो सुरूर महक है कहाँ,
अरविंद पूछ लेता है तुझसे ऐ दोस्त, आख़िर क्यो ।

-✍️ Arvind Akv

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12 APR AT 9:33

मानव शरीर की सरंचना रची है इस शहंशाह-ए-रब ने बड़े आराम से,
शरीर के हर भाग का अपना महत्व, हर भाग की ज़रूरत अपनी अपनी,

दोस्त, पिछले कुछ दिनों से बुरी तरह से तड़प रहा था दांत दर्द से मैं,
डाक्टर कर रहा है इलाज, जो इस रूह का इलाज करे वो डाक्टर है कहाँ,

हाँ बात बने कुछ तुम कहो कुछ हम,‌ इस ज़ख़्म पर एक मरहम तो हो,
अरविंद स्वादिष्ट भोजन की तलब है ऐसी जैसे ये मेरे बहकते एहसास ।

(Rest in Caption)


-✍️ Arvind Akv

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5 APR AT 0:09

दोस्त, इंकार करो या फिर करो इज़हार,
अब तो तुम तुम नहीं और हम हम नहीं,
ये शिद्दत-ऐ-नूर शाद ख़्याल की महक,
अरविंद अब तू अपने वश में नहीं ।

-✍️ Arvind Akv

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23 MAR AT 18:31

बड़े बुज़र्गों से सुनी एक कहानी थी, भारत माँ की आज़ादी की,
200 वर्षों से अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में छटपटाहट थी,

झांसी की रानी, बहादुर शाह ज़फ़र, मंगल पांडे, नाना साहिब,
तांत्या टोपे, कुंवर सिंह, अब्दुल गफ्फार खान, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी,

लाल, पाल, बाल, नाम हैं अनेक दिलाई आज़ादी सिर्फ़ हमारे लिए,
नाम ये मैंने लिए कुछ एक आज़ादी के लिए दी खुद की आहुति इन परवानों नें,

रंग दे बसंती चोला, राजगुरू सुखदेव भगत सिंह, सबने दी कुर्बानी थी,

ये हैं सब आदर्श हमारे, तो फिर क्यूँ न गर्वीला हो इतराता जाऊं,
अरविंद नमन है वीर शहीदों को, इन सब माँ भारती की विभूतियों को ।

-✍️ Arvind Akv

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21 MAR AT 20:35

याद है सावन का महीना, वो लम्हे वो इल्म-ए-सफ़ीना,
वो मोड़ ज़िन्दगी का, वो महफ़िल में छाया ख़लिश शोर,

अदब और अदीब का उन्स-ए-कुर्बत रिश्ता अजीब सा,
वो चंद ख़्याल वो बहकते सुर्ख़ महकते गुलज़ार जज़्बात,

इस रूहानी ख़्वाब में एक एहसास ये कविता लिखनी है,
अरविंद क्या लिखेगा कविता,कविताएँ हम को लिखती हैं ।

-✍️ Arvind Akv

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13 MAR AT 18:31

मुसाफ़िर बन ढूँढता हूँ नूर मेहरम को,
अफसाना बनकर रह गये ये जज़्बात,
ज़िन्दगी की गठरी लिए बैठा हूँ यहाँ,
अरविंद यहाँ, दोस्त तुम हो कहाँ ।

-✍️ Arvind Akv

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5 MAR AT 18:02

दोस्त, हर बात का गलत मतलब नहीं लेते,
पाक रिश्ते में नूर जज़्बात को छेड़ा नहीं करते,
दिल से चाहा, कैसे कहा दिल फैंक आशिक हमें,
अरविंद हर सवाल का जवाब एक तू ही तो है ।

-✍️ Arvind Akv

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29 FEB AT 18:47

ये जो दोस्त हैं हम, न होंगें कभी जुदा हम,
याद है किया धा हम सबने ये एक वादा,
वक्त की आँधी में हम सब बिखरे हैं कहाँ,
अरविंद की दोस्ती,ज़ख़्मी हैं ये वादे यहाँ ।

-✍️Arvind Akv

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