I'm Smart (because)
Not only the person who fights on the border is a soldier, every person who struggles in life is a soldier, mother is a soldier. Father is a soldier.Students are also soldier, Teacher is soldier,and all.-
चाहते हैं जो जीवन में विजय का प्रकाश हो
शीश हिम सम विशुद्ध विराट हो
मस्तक पर तेज़ मध्य ओज ललाट हो
भुजाओं में शत्रु कम्पन हेतु बल रक्त में उबाल हो
उन्हें तो एकांत में एक लड़ना होगा
अन्धकार में प्रकाश हेतु युद्ध विरुद्ध लड़ना होगा
चिंतन कर चिताओं की भस्मीभूत करना होगा
शंकाओं को ज्ञान शलाकाओं से जलाना होगा
न होंगी शेष जब कण भी लेश मात्र व्यथाएं
तब मानव सभ्यताओ में पुनः दिग्दर्शन करना होगा।
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ज़माने की ठोकरों को खूंटी पर टांग कर
रूठने मनाने के चोचलों को भीड़ में बांटकर
बस देखते रहो लोग कितने मशगूल हैं आपाधापी में
कुछ भटक रहे हैं दिल की दुकान को बरबाद कर
कुछ लटक गए हैं बेवफाओं की दुनिया को आबाद कर
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आज उस वर्ग में भी जीवों के जीवन को नष्ट कर अपने उदर की पूर्ति की जा रही है..
जिसने ये कहा था
।।अहिंसा परमो धर्म:।।
किसी भी पंथ प्रदर्शक ने कभी नहीं कहा कि दूसरे जीवों को मारकर अपने पेट की आग मिटाओ या अपने जिव्हा के स्वाद की पूर्ति करो।। एको धर्म: सर्वोपरि।
(मानवता)
इसीलिए बुद्ध की शरण में जाने वाले भी हिंसा के समर्थक बन चुके हैं। वही बुद्ध जिसने एक हंस की रक्षा के लिए अपने भतीजे से शत्रुता मोल ले ली थी।।-
ना अड़ी तो क्या ही नारी
एक अड़ी ने रामायण रच डारी....!!
जगत विधाता ने नारी के चित्र विचित्र बनाए
द्वापर हो सतयुग त्रेता
कलियुग भी नारी का वर्चस्व बढ़ाए....!!
एक नारी ने युग युग में फूंकी परिवर्तन की चिंगारी
समर के धधकते अंगारों में कूद पड़ी महा नारी...!!
सत्य कहा युग वक्ताओं ने ना अड़ी तो क्या....ही नारी..??
मेरी रचना ....काव्य दीप के अंश-
जो धरती का जीवन प्राण है
हर स्वांस एक नवीन निर्माण है
जब भी मैं बरगद को देखता हूं
पत्ते पत्ते में जीवन सुख ढूंढता हूं
बरगद की महिमा , जैसे चरित्र की बढ़ती गरिमा
हर प्रातः के ऊर्जा दिवाकर ,शीतलता में चंद्र निशाकर
जीवन में बचपन , यौवन में उत्सव , मृत्यु में अंत चिता पर
बरगद जैसे शान्त रहते ,शून्य योग में बहते स्थिर चिर ।।
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जो धरती का जीवन प्राण है
हर स्वांस का नवीन निर्माण है
जब भी मैं बरगद को देखता हूं
पत्ते पत्ते में जीवन सुख ढूंढता हूं
बरगद की महिमा , जैसे चरित्र की गरिमा
हर प्रातः दिवाकर , चंद्र निशाकर
जीवन बचपन , यौवन , मृत्यु चिता पर
बरगद जैसे रहते ,शून्य योग में स्थिर।।
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जंगल में देखो रोते मोर
रातों को देखो खोते मोर
सड़कों पर गैया करती शोर
आया देखो कलियुग घोर
शेर दहाड़े हाथी चिंघाड़े
हिरण दौड़े घर की ओर
जंगल से आया करुणिम शोर
आया देखो मानव कपटी चोर
जंगल काटे लकड़ी काटी
सच्ची बात कभी न बांटी
हो रही निष्प्राण प्राणों की डोर
बढ़ता मानव पग पग तम की ओर
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"बुद्ध" हो जाना अर्थात् अपने अंतर्मन के प्रति निश्च्छल , पूर्ण समर्पित भाव ,जहां कोई भी विरोधी भाव नहीं रहता। बुद्ध वो है जो हृदय से शुद्ध है, हिंसा के विरुद्ध है, और प्रेम की शरण में है। "बुद्ध" वो है जो अपने अंतर्मन के विरुद्ध कभी न जाए ।
बुद्ध वो है जो अपना दीप स्वयं बन जाए ।-
अब जब भी नए इतिहास लिखे जाएंगे
सच्चाइयों के चित्र जीवंत बनाए जाएंगे।
वीरों की वीर गाथा में न थोपी जाएंगी कुटिल कहानियां।।
जटिल हो चुके संवादों को बदलेंगी नई जवानियां ...!!!
"सिंदूर" का रक्तिम चित्र बन गया शत्रु का रक्त ही
अट्टहास वो रणचंडी का भेद गया दुष्ट को सुप्त ही
कहने को अर्चन के आलय भिन्न भिन्न ही सजते हैं
पर मनुष्यता के पालने वाले एक राम रहीम को भजते हैं।।-