अरूपा एक मुक्त लेखन   (Abhilasha (विचार स्तंभ))
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Joined 22 January 2020


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मृत्यु अपनी हो तो दुखद लगती है
गैर की हो समाचार लगती है ...!!

यदि मृत्यु समझ आ जाए तो
निःशंसय मैं और तु का भेद ही मिट जाए

मृत्यु ही एक ऐसा दंड है
जिसके सामने अहंकार शीश झुका लेता है

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Some pages of life have opened, those which were liked have also been read. The dimensions of the new pages of the story have been created, now it remains to be seen and...

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वास्तव में वास्तविकता यह ही है
मिले तो सब अच्छा
ना मिले तो हरी इच्छा....✍️💕💯🌍

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पंथ भक्ति का सरल नहीं
एक विरह प्रतीक्षा ...
जिसका कोई अंत नहीं...!!

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जीवन के मित्र जल वायु और अंबर के पक्षी
आज भूला सा सरफिरा उनको जो तेरे प्राणों के रक्षी

Happy world 🌍 sparrows day

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आज एक बार फिर से एक डर था , बिना टिकट के ट्रेन में सफर करना बिना टिकट के ट्रेन में सफर करना मेरी कोई आदत नहीं थी पर मरता क्या न करता।आजकल इंसानियत है भी या नहीं ये तो एक तजुर्बे की बात है पर यह भी तो सच है कि जब तक धरती है हर चीज मौजूद है बस उसकी मात्रा कम या अधिक हो सकती है,मेरा मानना तो यही था इंसानियत है, परंतु अपने कुछ अंश में । प्रकृति के अनुरूप आपको आपकी प्रवृति के साथी मिल ही जाते हैं या यूं कह लीजिए कि विचारधारा ।
आज दिन मंगलवार 20 मार्च 2024 मुझे अमृतसर जाना था पर किसी कारण से मेरा टिकट नहीं हो पाया । आज के समय दुविधा इतनी बड़ी होती जा रही है कि जल्दी से कुछ नहीं मिलता वैसे ही मेरी भी कंडीशन थी ।
किसी मित्र के अस्वस्थ होने के कारण मुझे किसी भी हालत में पंजाब पहुंचना था। बैठकर या फिर खड़े होकर। कठिनाई का सामना करना ही था। किसी को वचन दो तो उसे निभाने की मेरी बुरी आदत है अगर ठाकुर जी पूरा करा दें तो। सुबह 7.20 वाली शताब्दी एक्सप्रेस में हम बैठ गए । मन में एक ही विचार उधेड़ बुन चल रही थी कि क्या होगा कहीं टिकट न होने की वजह से टीटी मुझे ट्रेन से बाहर न फेंक दे । मेरे पास इतने पैसे भी नहीं थे कि मैं टीटी को दे सकूं । सारी की सारी बात आज की मासिकता पर आकर रुक जाती है। सब घुस लेने को तैयार ...आगे शेष

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हौंसला हो अगर
शिखर से आवाजें
हर डगर पर डोलने लगें

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ज़िंदगी रुख बदलती है ,
जब दुनिया
बेरुखी हो जाती है ...!!

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क्या लिखूं.....?
ऐसा जो हर किसी के लिए एक रौशनी बन जाए
आंसू की एक एक बूँद सबके लिए दीप बनकर जगमगाए ...
चाह्तों के जहाजों पर अक्सर आशाएं रोज सफर करती हैं
मिल जाएं गर वो किनारों का काफिला
तो समंदर का साहिल आशाओं का डेरा बन जाए ....
कितना मुश्किल होता है समंदर के किनारों पर ठहरना
रेत वक्त सा हाथों की लकीरों पर जो ना चाहे रुकना....
क्या लिखूं...?
ऐसा जो हर किसी के लिए आइना बन जाए
टूटा हुआ हर अक्स खुद ही खुद में संभलना सीख जाए ....
गीत साहिलों का मस्त होकर सबके लिए मायना बन जाए
जिंदगी मतलव परस्तीयों की वीरान राह बनती जा रही है
किस तरह उन बस्तियों में मुहब्बत की मीनारें बनाइ जाएँ ....
क्या लिखूं ..?
ऐसा जो हर किसी के लिए जीने की किताब बन जाए
एहमियत अपनी ही नजरों में खुशनुमा लिबास बन जाए
सिकुड़ रही जो अरसों से दिलों की ज़मी पाँव के तले
क्यूँ न नन्हें नन्हें वादों की हर कहानी को अब लिखा जाए ...
क्या लिखूं ...?
ऐसा जो हर किसी के लिए अपनी एक सच्ची कहानी बन जाए
गिरकर उठना , गिरना फिर से संभलना इसी तरह जीवन को लिखा जाए ...

अभिलाषा ....

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जग में मंगल करते राम ।
कर्मों का सार सिखाते श्याम।।

चाहें राम कहो या श्याम ।
हैं दोनों ही भव तारण धाम।।

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