একদিন আপনি পেছন ফিরে তাকাবেন এবং হাল ছেড়ে না দেওয়ার জন্য নিজেকে ধন্যবাদ দেবেন।
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कद्र
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कुछ दिनों से एक अजीब-सा सपना देखते हुए मेरी नींद टूट रही है। कोई मेरे सिरहाने खड़े होकर मुझे बड़े प्यार से देख रहा है... मैं चौंक कर उठ जा रही हूँ।
आज, मेरी नींद टूटी नहीं। वह मुझे अपने साथ लिए जा रहा है, अपनी दुनिया में। मैंने उसको पहचान लिया है। वह तो मेरा अपना ही था, कभी... मैंने ही उसका विश्वास तोड़ा था। दौलत का हाथ थामा था और उसने चिरनिद्रा का।
आप लोगों को एक बात बता दूँ, उस दुनिया में सिर्फ़ प्यार की ही कद्र होती है।-
किराए का घर
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वाह! बढ़िया घर है।
मुझे पता था बाबूजी, आपको जरूर पसंद आएगा।
किराया कितना होगा?
अरे! आप जो चाहें, दे दीजिए।
ये क्या बात हुई! जल्दी बताओ, मैं कल सुबह ही शिफ़्ट होना चाहता हूँ।
ठीक है, किराया दुई हज्जार परेगा।
कुछ गड़बड़ तो नहीं है ना, इतना कम किराया?
ना बाबूजी, गरबर कोई नही, बस...
क्या बस! भूतिया मकान है क्या?
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वाह! कितना खुला-खुला है चारों तरफ़। रात को थके बदन बिस्तर पर गिरते ही बत्ती गुल हो गई। चादर से सिर ढँक कर मोबाइल ऑन किया।
अचानक धीमे-से साँस लेने की आवाज़। चादर हटाया, कोई नहीं है! थोड़ी देर बाद फिर वही आवाज़! चादर के अंदर ही मोबाइल टॉर्च जलाया, ठीक मेरे सिर के ऊपर किसी का साया दिख रहा है।
मैं स्थिर... पाँव की तरफ़ का चादर हिला। टॉर्च की रोशनी उधर डाली।
दो काजल-काली पुतलियाँ मुझे घूरते हुए मेरे सीने तक चढ़ आईं। मेरी साँसे बंद...
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एक महीने बाद-
मेरी ही तरह कोई आया है। वो भी कम किराए की लालच में पड़ गया। अब हम दस से ग्यारह हो जाएँगे।-
कहा था प्यार है तुमसे...
यकीन करके अपने लोगों को छोड़कर निकल आई थी उसके साथ। गलत किया था मैंने, आज समझ में आया। जब छोटे से कमरे में मेरे शरीर को पाना चाहा... उसको रोका था, हाथ झटक के चला गया वो। मैं बस देखती रह गई।
अगले दिन शहर के एक गंदी बस्ती के दो मंज़िला मकान में लाकर शरबतिया मौशी के पास कुछ दिन रहने का कहकर मुझे बेच आया वो।
रात बढ़ने लगी, सब साफ होने लगा। मौशी के दो पालतू कुत्तों ने आकर मुझे नोंच खाया। उनके जाते ही मैंने खुद को खत्म कर लिया। लेकिन खत्म होकर भी खत्म हुआ नहीं।
फिर उसके पास वापस लौटी। अपनी मृत प्रियतमा को देख उसकी हालत... मैंने कहा,
"तुम ही ने तो कहा था, प्यार है तुमसे।"-
सच बताइए, भगवान किसी से भेदभाव नहीं करते... आप भी मानते हैं, है ना?
आइए आपको एक कहानी सुनाती हूँ- उस बारिश की रात जब मुझे कहीं भी सहारा ना मिला, तो मैं सामने के शिव मंदिर के आँगन में जा खड़ी हुई... काश मैंने ऐसा ना किया होता। भगवान पर भरोसा था... जो भी हो। तो मैं कह रही थी- मुझे सर छुपाने के लिए छत मिल गई थी। लेकिन मेरी तरह ही और दो लोग भी उस मंदिर के आँगन में बैठे थे। मुझे अकेला पाकर... पर भगवान मुझे बचाने नहीं आए।
पर आज जब उन दोनों को उस रात की विभीषिका को याद दिला कर उतनी ही बेरहमी से मारा, यकीन हुआ मुझे... भगवान सबकी सुनते हैं क्योंकि... वे आज भी नहीं आए।-
The day I came out holding his hand in front of everyone .... I didn't think he would pay the price of our love with his life in this way! Today I am his wife ... no one could take away his unconditional love. Today I'm complete.
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मन की सभी गिरहें खोल दो,
देखो जहाँ तुम्हारा भी है।
माना कभी कभार मन उचकता है,
दुनिया का व्यवहार पंख कतरने सा लगता है...
पर इसी दुनिया में ही तो फ़ीनिक्स भी जन्मते हैं।-
बेफ़िक्र हूँ,
हाँ, बेफ़िक्र हूँ।
तुमको शिकवा हो इससे, हो सकता सबका ज़िक्र हूँ।
मैं बेफ़िक्र हूँ।
क्या तन्हाइयों का समा तुम्हें सोने नहीं देता!
मैं तो महफ़िल में भी रहता हूँ जुदा,
बेफ़िक्र हूँ, मैं बेफ़िक्र हूँ।
किस तश्वीश में हो, क्यों हो ख़ौफ़ज़दा!
बेफ़िक्री हर मर्ज़ की दवा है।
कोई दुआ जब काम आने से बाज़ आए तो फ़िक्र किस काम आए!
बस, इसलिए मैं बेफ़िक्र हूँ।-