अरुण प्रताप सिंह   ('अस्तित्व')
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Joined 29 April 2019


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जिन्दगी,
नीरसता से भरी
कब अच्छी लगी है?
कब अच्छा लगा है?
रंगों से विमुक्त होकर,
प्रकृति भी चुनती है
अपने रंग
बिखेरती है तब
अपनी उन्मुक्त सुंदरता
ज़ब स्वयं के चयन से चुने
रंगो से श्रृंगार करती है।

सिखाया है बहुत
बुजुर्गों के अनुभवों ने
नहीं भाता देह को
रसहीन भोजन भी
फिर
जिन्दगी तो जिन्दगी है
कैसे जी ली जाये?
बिना रस और रंग के
तो फिर बचा क्या?
बना लीजिए जिन्दगी को रंगीन,
अवसाद,
तनाव,
द्वेष और ईर्ष्या तजकर
भर लीजिये
जिन्दगी की कटोरी
अपनत्व, स्नेह और सौहार्दता से
और खेलिए जिन्दगी से

हर दिन होली....
शुभ होली

-



जीर्ण-शीर्ण था जीवन मेरा,
निज हाथों से ताज बनाया।
भाव रिक्त था मन का मंदिर,
शब्द सुरों से साज बनाया।
चीर सकूँ सीना नभ का वह,
उड़ने वाला बाज बनाया।
कल को तराशा कल के लिए,
स्वर्ण से सुंदर आज बनाया।

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐💐

-



"गजल"

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

गुम गए जो ज़ीस्त के किरदार सारे लौट आए।
हार में मिलने मुकां से फिर सितारे लौट आए।

जो छुपे थे बादलों में देख शब की तीरगी को।
फिर सहर में देखने रुख चाँद तारे लौट आए।

रोज थक कर हम खड़े थे जर हुमा के हाशिए पर।
कारदाँ के बन सहारे हम बिचारे लौट आए।

तब हिकारत की गई थी हिज्र के उन हादिसों में।
आज खुद ही फिर चमकते सब नजारे लौट आए।

नाव डूबी थी हमारी कुछ कियामत की भँवर में।
एक तिनके के सहारे फिर किनारे लौट आए।

जम गई थी बर्फ मन में नम हसद की गर्द से फिर।
आग दिल में जो लगा दे, वो शरारे लौट आए।

आबदारी छोड़ खुद की नाम रब के अब हवाले।
लौट आई फिर शफ़ाअत कद हमारे लौट आए।

-



नेता, अभिनेता जिन्हें,
देते परमानंद।

उनके बच्चे पूछते,
कौन विवेकानंद?


राष्ट्रीय युवा दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं।।
🙏🙏🌷🌷🌺🌺🌺

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उद्वेलित आशाओं का, है विस्तृत आकाश।
स्वार्थ, मोह, अति-क्षोभ का, बंधा हुआ है पाश।
नियम, यत्न, वाणी, व्यथा, को जीते यदि आप।
निज जीवन संघर्ष में, होंगें नहीं निराश।

आंग्ल नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।
🌷🌷🌺🌺🌺💥💥💥💥🌷🌷🌺🌺

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न हो कोई द्वेष, स्वार्थ, मैं मन का सच्चा हो जाऊँ।
इस मतलब की दुनिया में, मैं सबसे अच्छा हो जाऊँ।
खाना, पीना, रहना, जीना सब कुछ मुश्किल लगता है।
बस एक दुआ अब पूरी हो, मैं फिर से बच्चा हो जाऊँ।

बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।।।
💐💐💐💐🔥🔥🔥🌺🌺🌺

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तिमिर यदि छिपा है धरा पर कहीं,
चलो, आज मिलकर विलोपित करें।
नवल दीप्ति से दीपमाला सजी,
चलो, हर जगह पर यह रोपित करें।

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जीर्ण शीर्ण था जीवन मेरा,
कर-करघों से ताज बनाया।
भाव रिक्त था मन का मंदिर,
शब्द-सुरों का साज बनाया।
जो चीर सकूँ सीना अम्बर का,
वह उड़ने वाला बाज बनाया।
'कल' के लिए तब 'कल' को तराशा,
और स्वर्ण सा सुंदर 'आज' बनाया।

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सृष्टि का आधार जो,
उस प्रेम के पर्याय हो तुम।
प्रेम का जिससे उदय है,
वह प्रथम अध्याय हो तुम।

गोपियों और ग्वाल के संग,
बालपन में खेल खेले।
तान मोहक बाँसुरी की,
थी लगाती रोज मेले।

नर, कामिनी, सुर, खग, मवेशी
के सकल समुदाय हो तुम।
प्रेम का जिससे उदय है,
वह प्रथम अध्याय हो तुम।

प्रेम पूरित है तुम्हारा,
राधिका संग नाम से।
हो रहा संसार पोषित,
द्वय नाम शुभ परिणाम से।

रासेश्वरी बिन हे प्रभु!
आज भी असहाय हो तुम
प्रेम का जिससे उदय है,
वह प्रथम अध्याय हो तुम।

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★★अंतर्द्वंद्व★★

यह तैयारी
कुछ क्षणों की नहीं
एक लंबा समय दिया
स्वतन्त्र विचारों ने
नियंत्रित और संयमित व्यक्तित्व को,
और प्रतीक्षा में पूरा किया
पूर्व में दी गयी
असंख्य चेतावनियों का समय
स्वतंत्रता के लिए
विचार अपने नेतृत्व में
भावनाओं की कोटि सेना सहित
हिमगिरि की दृढ़ता से खड़े
और व्यक्तित्व
स्वयं के अस्तित्व के लिए
आत्मविश्वास, संयम, अनुशासन की
सुरक्षा में अकेला खड़ा है
और अब प्रतीक्षा है

एक भीषण 'अंतर्द्वंद्व' की।

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