अरुण पाण्डेय "गर्ग"   (अरुण पाण्डेय "गर्ग")
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कालः सर्वं विरोपयति।
कवि...........
..................
#yourquotes #yourquotesbaba
Joined 23 July 2021


कालः सर्वं विरोपयति।
कवि...........
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#yourquotes #yourquotesbaba
Joined 23 July 2021

किस्मत को अपने मैं कोसता बहुत हूँ।
इस बात को लेकर मैं सोचता बहुत हूँ।
न देखूँ तो कहती है देखता नहीं है।
और देखूँ तो कहती है देखता बहुत हूँ।

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कल मुद्दतों बाद निकले हैं लफ्ज़-जुबां से।
कल मुद्दतों बाद कुछ बात हुई उससे।
कल मुद्दतों बाद एक चाँद दिखा मुझको।
कल मुद्दतों बाद मुलाकात हुई उससे।

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जो बाहर की सुंदरता है,वह सत्य नहीं सब जाली है।
जो इसपर करते हैं घमण्ड, पीते अभिमान की प्याली है।
मन की सुंदरता को देखो,क्या उलझे हो जंजालों में।
क्या मिलता ओंठ,नेत्र में है,क्या मिलता गोरे गालों में।

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उसे जाने दिया मैंने क्यों ऐसे सहज ढँग से ही।
इतनी मशक़्क़तों के बाद जिसे अपना बनाया था।

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ये मनुष्य है साहब:-
दुःख के भंडार में, सुख को पाना चाहता है।
कर्मों से बच जाने का, बहाना चाहता है।
बिना कुछ किये, कुछ मिलता नहीं जग में,
ये कुछ किये बिना ही, सब कुछ पाना चाहता है।

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कश्मकश है जिंदगी में,
मुश्किल भरा ये दौर है।
चल रहा कुछ और दिल में,
ज़ुबाँ पर कुछ और है।

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वर्षों पुरानी बातें उभरने लगी हैं।
अंदर से दिल को कुतरने लगी हैं।
न जाने कब छुटे इनसे मेरा पीछा।
ये सज-धज के फिर से सँवरने लगी हैं।

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रो-रो कर मैंने अपनी दास्ताँ सुनाई।
सभी ने सुनी और तालियाँ बजाई।
मैंने कहा, सबको ये क्या हो रहा है।
कि, गम में किसी के कोई हँस रहा है।

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एक नहीं उसने ज़ख़म सौ दिया है।
मुझे अपने दिल से उसने रुख़सत किया है।
उसे भी मैं जाहिर कराकर रहूँगा।
मुझे खोकर उसने ये क्या खो दिया है।

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दुनिया का यही दस्तूर, यही फ़साना है।
सबसे मिलना और मिलकर बिछड़ जाना है।
कोई नहीं ज़हाँ में उम्र भर का साथी।
लोग यहाँ फ़रेबी और दुनिया फ़रेबखाना है।

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