कितने सपने, कितनी उम्मीदें पलक झपकते ही राख हो गई। किसने सोचा था कि इस आज का न कल है और न ही पल। कोई नए जीवन की तलाश में था तो कोई अपनों की। कोई कर्तव्य पथ के अन्तिम दौर को पूरा करके अपने अपनों के साथ खुशियों की तलाश में।
नियति कुछ और लिख रही है ये किसी को खबर नहीं थी। चन्द पल और सब खतम। प्लेन में सवार तो फिर भी प्लेन में बैठने का रिस्क उठा रहे थे लेकिन उनका क्या जो इतनी चुनौतियों को पार कर चिकित्सा की पढ़ाई कर जाने कितने जीवन को रौशनी देते, लेकिन सब खतम, सब अधूरा। वो और लोग जो कुछ सोचने से पहले ही अपनों को हार गए।
जीवन इतना छोटा है और अनिश्चित भी। इस लिए कोशिश करी जाए कि इसे व्यर्थ की बुराईयों न खर्च करें। हर पल कीमती है.........-
चांद पागल है रातों को निकल पड़ता है।
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अपने सपने
सपनों को जीना पड़ता है,
सपनों में रहना पड़ता है,
सपने जो देखे जाते हैं ,
उन्हें रोज़ जगाना पड़ता है,
सपनों को पाने के खातिर,
कभी खुद से लड़ना पड़ता है,
सपनों को ज़िंदा रहने दो,
मुश्किल हो चाहे राह मगर,
सपनों का परिंदा उड़ने दो,
सपने आशा की ज्योति हैं,
जीवन उजियारा करते हैं,
रोज़ टूटती हिम्मत को,
नित नई ऊर्जा भरते हैं ....
सपने, सपनों से सपनों की
सपनीली बाते करते हैं.....
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अगर ख़ुद को सुनाई देने लगे,
तो उनका शोर चेहरे पर दिखाई देता है,
ऐसा मैं नहीं कहती, ज़माना कहता है।-
जब पढ़ाई पूरी गई, तो घर में विवाह की बातें होने लगी। नहीं उस समय ये आवश्यक नहीं था कि लड़कियों का नौकरी करना जरूरी है। आस पड़ोस व रिश्तेदारों यहां तक कि समाचार पत्रों में आए दिन किसी न किसी विवाहित जोड़े की लड़ाइयों, घर टूटने की ख़बर आती थी। मन में अपने विवाह की बातें सुनकर बड़ा डर लगता था। किन्तु मुझे मेरे श्री यानि पतिदेव ऐसे मिले कि मेरे अंदर का सारा डर भाग गया। शादी के 28 वर्ष हो चुके है, लेकिन जीवन के हर पड़ाव वो हमेशा साथ खड़े दिखे। अब तो यह लगता है कि जीवन में उनका साथ ईश्वर का अभीष्ट वरदान है, जिसके लिए मैं सदैव ईश्वर की आभारी हूँ.......
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सब कुछ समझे है, माने न,
सच्चाई से वाक़िफ है ये,
कहना एक भी माने न,
इत डोला, उत रूठ गया,
पल भर में ही टूट गया,
हंसते चेहरे, रोते मन,
बात नहीं जो कहने की,
बोले बिन बेकाबू मन,
जहां बोलना चाहिए था,
चुप्पी साधे बैठा मन।
तुझको जिसने समझ लिया,
ख़ुद पर पाया है संयम,
जो मन की सुन बैठ,
उसको खूब नचाए मन......-
दूरियां उनसे,
जब हुईं,
समझ में आया,
कितना मुश्किल है,
दूर रह पाना....
दूरियां मज़बूरी हो सकती हैं,
शौक नहीं,
कौन कहता है दूरियों का ख़ौफ़ नहीं ......-
लेकिन चुप रह जाना नामुमकिन है,
इसलिए एहसासों को शब्द दो,
शब्दों को कलम की ज़ुबान दो....
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कभी सोचा नहीं ,
कि ज़िंदगी में क्या होगा,
सांस आयेगी हर दफ़ा,
ज़रूरी नहीं ये सिलसिला होगा ,
खैर माँगा किए सभी के लिए,
ख़ुद की खैरियत का क्या होगा,
सबके अपने हिसाब होते हैं,
मिलेगा वही जो आपने किया होगा,
मौत किस मोड़ पर खड़ी होगी,
ये किसी को खबर नही होती,
आज आये कि आये बरसों में,
मौत से मिलना ज़रूर होगाl,-
कोई शहर मेरे नाम का
कोई गली मेरे नाम की,
मैं ढूंढती शामो शहर
शायद मिले मुझको कभी
तुझमें मेरा हिस्सा कहीं,
कि तलाश मेरी खत्म हो,
कि सुकूँ मिले मुझको कभी,
कभी तू भी मेरी तलाश कर,
फिर मिल के न बिछड़े कभी......... — % &धर्म और अधर्म में फासला घटा
अधर्म भी अब धर्म के सामने डटा,
जो बात सोचने से भी हो गलत का अहसास
उसको तो अब जीत में करते हैं सब शुमार,
कोई दिखाता आँख तो कोई— % &कोई शहर मेरे नाम का
कोई गली मेरे नाम की,
मैं ढूंढती शामो शहर
शायद मिले मुझको कभी
तुझमें मेरा हिस्सा कहीं,
कि तलाश मेरी खत्म हो,
कि सुकूँ मिले मुझको कभी,
कभी तू मेरी तलाश कर,
मिल के न बिछड़े कभी......... — % &-
प्रेम तुम कल्पना हो,
मन के रीते भाव की,
या सहज तुम पूर्ण हो,
शीतल सुगंधित छावँ सी।
प्रेम तुम सीता हो,
कोमल पद कठिन पथ गामिनी,
याकी तुम कृष्णा हो, राधा हो
परे बन्धन से अनंत अनुराग सी।
प्रेम तुम तृष्णा हो,
लिपटी देह में एक प्यास सी,
या समर्पित भाव में,
मीरा के दुर्लभ त्याग सी।
प्रेम! शायद तुम परे शब्दों से,
अर्थों से बहुत ही भिन्न हो
इस लिए तुम प्रेम हो,
जीवन के लिए अभिन्न हो.....
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