हम इंसानों के साथ ये न जाने क्यूँ होता है मगर अक्सर होता यही है कि..हम उसे अपनी दुनिया बना लेते हैं जिसकी दुनिया में हम कहीं नहीं होते हैं।।
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यही सच है
और, मैंने मान भी लिया है
कि उसके दिल में मेरी खातिर
कोई एहसास नहीं
जज़्बात नहीं
हाँ, उसे मुझसे प्यार नहीं
फिर भी न जाने क्यूँ?
अक्सर ये सोचती हूँ कि
ये झूठ भी तो हो सकता था
किसी का तो होगा ही,
वो मेरा भी तो हो सकता था..!!
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मुक्ति मन के स्तर पर जागने और चेतना के स्तर पर जीने से संभव है,तन से भागने से नहीं।।
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दूरियाँ या नजदीकियां वास्तव में हमारे मन से होता है शरीर से नहीं।जो आपके पास है वो आपके साथ भी हो, ये जरूरी नहीं है।और जो आपके पास नहीं वो आपसे दूर ही है, यह भी सच नहीं है।।
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जब हम अपने ख़ुद के दायरे से बाहर निकल कर दुनिया को देखते हैं और उसे समझते हैं तो हमारा 'अहं' और 'वहम' दोनों चला जाता है।
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किसीको ज़िंदगी मान लेने से बेहतर है कि, ख़ुद को जो एक ज़िंदगी मिली है उसे स्वीकार और सवाँर लें।।
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Do, whatever you want to do, but do just for express yourself, your ideas ,your philosophy; not for impress anybody.
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आप उस दिन बौद्धिकता के शिखर पर स्वयं को पायेंगे, जिस दिन आप अपने अंतस में यह महसूस करेंगे कि.. आपकी बौद्धिकता और अनुभव से परे भी इस संसार में बहूत कुछ है।
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