जिस पथ पर चला मुसाफ़िर
जिस पथ पर चला मुसाफ़िर मंज़िल की तलाश में
तेरी मंज़िल तुझे पुकारे थक ना मत बीच बाज़ार में।
चुंबकीय सा बढ़ता जा तू, भटक न जाना राह में
मंज़िल पर नज़र हो तेरी, बढ़ता जा तू शान से।
विपरीत दिशा भी खींच रही, भटक न तू मझधार में
मुश्किलों से मुंह न मोड़ो, डरना मत तू हालात से।
सीधी राह चला चल बंदे जब तक तन में प्राण ये
मुसाफ़िरों को मंज़िल मिल ही जाती दृढ़ विश्वास से।।
अरुणा कालिया
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