ARUN SRIVASTAVA   (©HintsOfHeart)
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Joined 2 August 2017


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15 HOURS AGO

No Reading Required :

Some of my friends were searching for a platform that works like a mutual admiration club — where pieces are rarely read, where praise passes for insight, and where the crowd gathers not to understand but to applaud on cue.
I told them: relax, I’m already enrolled. 😆😅

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15 SEP AT 18:15

Must I bargain for every single breath
O Life! I love you, yet not at such a price.

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15 SEP AT 12:14

Her sari trailed like history written in fabric;
His smile held the patience of a thousand years.

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14 SEP AT 15:30

Young men today
wear beauty on their faces
but not in their vows.

It's too much to ask
the nightingale
to sing for a single rose.

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12 SEP AT 20:33

रूहें जो एक-दूसरे का अक्स हैं,
एक जैसे रास्तों पर भटकती हैं।

शायद कभी न मिलें,
मगर वही हवाएँ साँसों में उतरती हैं,
वही सूखे पत्ते उनके क़दमों तले टूटते हैं,
और उनकी निगाहें
उसी उफ़क़ में गुम हो जाती हैं—

जहाँ मिलन और ज़ुदाई
एक ही साये में घुल-मिल जाते हैं।

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11 SEP AT 19:38

"ख़ूबसूरत पल इतने मुख़्तसर क्यों होते हैं ?"

" क्योंकि शबनम फूल पर ज़्यादा देर ठहर नहीं सकती ;
उसे इजाज़त नहीं है।"

"तो क्या ज़िंदगी महज़ चंद लम्हों के लिए ही ख़ूबसूरत होती है?"

"बस वो चंद लम्हे ही तो ज़िंदगी होते हैं!"

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11 SEP AT 11:59

The only things that should matter in life are those we cannot trade—time, love, dreams.
Everything else is a receipt for something we never truly owned.

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10 SEP AT 18:54

Tyrants rule only while people bow;
the day they stand, tyranny falls.

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8 SEP AT 21:01

पढ़ने-लिखने की आदत अब बीते ज़माने की बात है,
विचारों की रौशनी भी जैसे अतीत की सौग़ात है।
किताबों से रहा नहीं अब लोगों का ताना-बाना,
मोबाइल की स्क्रीन ही जीवन का है ठिकाना ।

ऑनलाइन जुड़े हैं सब, दिल से कोई पास नहीं,
चेहरों की दुनिया में अब पहचान कोई ख़ास नहीं।
लेखन के मंच भी डेटिंग ऐप जैसे उलझ गए,
साहित्य के दीपक यहाँ ख़ामोशी से बुझ गए।

अब शब्द अकेले हैं, पढ़ने वाले कम, समझने वाले और भी कम;
ख़यालों की खिड़कियों पर धूल बैठ गई, रोशनी भीतर उतरना भूल गई।

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8 SEP AT 13:59

शादी भी 'ब्रांड्स' की तरह होती है—समय के साथ बहुत सी ख़ामियाँ नज़रअंदाज़ की जाने लगती हैं, उम्मीदें धीरे-धीरे सहज स्वीकार में ढल जाती हैं, और अंततः आप मान लेते हैं कि कोई दूसरा व्यक्ति इससे ज़्यादा परफ़ेक्ट नहीं हो सकता था। किसी और ‘वो’ का बनाया हलवा इतना मीठा, इतना स्वादिष्ट, इतना पौष्टिक हो ही नहीं सकता, जितना एक प्रेमी जीवनसाथी के हाथों बना हुआ।
कभी-कभार आप दूसरे 'ब्रांड्स' की तरफ़ भटक सकते हैं। वे आपको ‘टिकटॉक’ जैसी दुनिया में ले जा सकते हैं—छोटे-छोटे मनोरंजन के टुकड़ों और तात्कालिक तृप्ति की, लेकिन बिल्कुल शून्य पोषण के साथ। और जब आप वापस लौटते हैं, तो फ़र्क और भी तेज़ नज़र आता है, भरोसा और भी गहरा, हलवा और भी मीठा।

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