Arun Shaw   (ArunShaw(the real taste))
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मैं बीते कल और आज की बातों को लिखता हूँ।
शब्द नहीं,मैं जज्बातों को लिखता हूँ।
Joined 2 April 2017


मैं बीते कल और आज की बातों को लिखता हूँ।
शब्द नहीं,मैं जज्बातों को लिखता हूँ।
Joined 2 April 2017
13 MAY 2018 AT 19:08

मेरी माँ
तेरे कोख में रहा मैं।
तेरे सांसों से सांसों को लिया मैंने
जो कुछ तू खाती,पीती उस वक्त
वो सब तेरे नसों से पीया मैंने।
फिर रोता हुआ जन्मा मैं।
और उठाकर अपनी गोद में लिया तूने।
कुछ ना समझता था उस वक्त मैं सायद
फिर भी बातें मुझसे हजार किया तुने।
जब भी रोता मैं
माँ मेरी नजरें उतारी तूने।
और जब भी मुस्कुराता मैं
मुझसे ज्यादा मुस्कुरायी तुने।
फिर धिरे-धिरे हर बातों को समझने लगा मैं
और फिर तुझसे भाषाओं को लिया मैंने।
थाम के चलते-चलते ऊंगलियाँ तेरी
जीवन के रास्तों को जान लिया मैंने।
मेरा मुझमें कुछ नहीं माँ
सबकुछ तुझसे ही लिया मैंने
कुछ नहीं माँ मैं तेरे बिना
जन्म से लेकर पहचान तक सबकुछ मुझे दिया तूने।

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11 MAY 2018 AT 22:24

Boys have 150 grams more weightage in brain than that of girls doesn't mean superior to them.
Because only the good thinking & hard work bring superiority in the name.



So Feel Equal and Work Hard in goodness .

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6 MAY 2018 AT 21:51

शब्दो से हो जज्बात बयां,शब्दों की वो औकात कहाँ ?
गर शब्दो से हो जज्बात बयां,तो जज्बातों में वो बात कहाँ ?

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5 MAY 2018 AT 18:18

"क्या इंसान हैं ये ?"

जिस नारी जात से जन्म लिया
ये उसके ही सम्मान पे अघात करता है।
क्या इंसान हैं ये?
जो इंसानों से ही विश्वासघात करता है।

युवा, वृद्ध और बच्चों से भी
हैवानों सा ये मुलाकात करता है।
क्या इंसान हैं ये?
जो इंसानियत की इतनी बुरी हालात करता है।

बनकर गिद्ध अंधेरे में रातों के
ये नोंच-नोंच मासुमो की जिंदगी बर्बाद करता है।
क्या इंसान हैं ये?
जो हवस से इंसानियत की शुरुआत करता है।

फिर कुछ और भी है ऐसे
या बस इनसे थोड़े से हटकर
नहीं-नही अपराध नहीं करते ये।
ये ऐसे जघन्य अपराधों में भी
धर्म और जात तलाशने की औकात करता हैं।
क्या इंसान हैं ये?
जो इंसानों को बाँटने की बात करता है।

जिस नारी जात से जन्म लिया
ये उसके ही सम्मान पे अघात करता है।
क्या इंसान हैं ये?
जो इंसानों से ही विश्वासघात करते है।

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15 APR 2018 AT 21:53

हर पल ज़रुरत है माँ तेरी,
बस सिर पे मेरे तू अपना हाथ रखना,
हर चुनौतियों से लड़ जाऊंगा मैं,
बस हर कदम पे मेरे,माँ तू अपना साथ रखना।

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7 APR 2018 AT 16:30

"औकात"
इतना गुस्सा पाल लिया तूने
जितनी तेरी औकात नहीं।
सकल आदम सा काम सैतानो सा
इंसानों सी तूझमे है कोई बात नहीं।
मजहब के दंगों में तूमने
कैसे राष्ट्रध्वज ऊछाल दिया?
पत्थर लेकर हाथों में तूमने
कैसे अपने हीं ज़मिर को मार दिया?
मानव नहीं दानव है तू
गर मूल्क के लिए तूझमे जज़्बात नहीं।
तू क्या इंसान बनेगा
इंसान बनने की तेरी औकात नहीं।
इतना गुस्सा पाल लिया तूने
जितनी तेरी औकात नहीं....।

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5 APR 2018 AT 21:06

थम गया हूँ,कुछ पल की बाधाए हैं,
फिर मैं बेहिसाब दौडूंगा।
सुना है बाँध टूटने पर नदीयों की तेज रफ्तार रहती है।

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5 APR 2018 AT 20:07

सोच ने मेरी मुझपे,ये कैसा असर किया हैं?
सुलझाते-सुलझाते जिन्दगी,मेरी निंदों को उलझा दिया है।

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4 APR 2018 AT 13:06

"मालूम नहीं माँ..."
मालूम नहीं माँ तू कैसे जान जाती है?
जितना भी कोशिश करु तूझसे छिपाने की
मेरी तकलीफें तू पल में पहचान जाती हैं।
इसीलिए कभी-कभी तूझसे नजरें चुराता हूँ मैं,
नम हो आँखे फिर भी मुस्कुराता हूँ मैं,
कभी मुस्कुराता हूँ,कभी नजरें चुराता हूँ,
जब जान जाती है तू,तूझे पागल भी बुलाता हूँ,
फिर भी तू मेरी हर हरक़तें पहचान जाती है।
मालूम नहीं माँ तू कैसे जान जाती है?
मेरी तकलीफें तू पल में पहचान जाती हैं।
झूठ बोलना पसंद नहीं मुझे
फिर भी तूझसे झूठ बोल जाता हूँ।
छिप नहीं पाता तूझसे
फिर भी मैं छिपाता हूँ
कभी मेरे नजरों को पढ़ती है,कभी मेरे चहरे को,
तो कभी मुझे मेरे आवाजों से भांप जाती है।
मालूम नहीं माँ तू कैसे जान जाती है?
मेरी तकलीफें तू पल में पहचान जाती हैं।

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3 APR 2018 AT 22:55

खिलखिलाते-खिलखिलाते हँसना,
हँसते-हँसते मुस्कुराना,
और अब मुस्कुराते-मुस्कुराते
नजरें चुराने लगे हैं।
बात बस इतनी है,
पहले दिल खोल के रो लिया करते थे,
और अब अपने गमों को छिपाने लगे हैं।

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