खिड़कियों से झाँकती हसरतेंदरवाज़ों से बाहर निकलना भूल रही हैं,मोबाइल के स्क्रीन पे सरकती उँगलियाँकिताबों के पन्ने पलटना भूल रही हैं,दौर ये कैसा आ गया देखो ---कोशिशें लड़खड़ा कर सम्भलना भूल रही हैं। - अरुण चौबे ‘प्रखर’
खिड़कियों से झाँकती हसरतेंदरवाज़ों से बाहर निकलना भूल रही हैं,मोबाइल के स्क्रीन पे सरकती उँगलियाँकिताबों के पन्ने पलटना भूल रही हैं,दौर ये कैसा आ गया देखो ---कोशिशें लड़खड़ा कर सम्भलना भूल रही हैं।
- अरुण चौबे ‘प्रखर’