है सजा अयोध्या धाम पुनः
भावुक सारा साम्राज्य है
दुनिया करबद्ध अचंभित है
सर्वत्र राम ही राम हैं-
सब कुछ मनुष्य के सामने होता है
परंतु उसे सुकून तब तक नहीं मिलता
जब तक वह "पीठ" तक नहीं पहुंचता
फिर चाहे उसे आलिंगन कहें अथवा निंदा-
अर्पण रात सराहिए, जब उम्र करे विश्राम
दिवा रोशनी पीर सी, हर पल एक संग्राम
खट खटनी ताउम्र जब, अर्पण पहुंचे धाम
खटिया जीवन की खड़ी, मिला कहां आराम
अर्पण कैसी आग है, दुनिया में चहुंओर
भागमभाग अहर्निश, ओर दिखे न छोर
अंतर्मन में क्लेश है, चेहरे पर मुस्कान
अर्पण चुप हैं आजकल, देखकर यह आयाम-
कोई ख्याल बदलने वाला है या हाल बदलने वाला है
कोई रीत बदलने वाली है या सवाल बदलने वाला है
क्या खुशियों के स्वागत में खड़ा कोई गीत बदलने वाला है
या प्रीत की ओट में कपट भरा कोई मीत बदलने वाला है
दुनिया में युद्ध की ज्वाला में शीतलता आने वाली है
या नशे में धुत युवजन खातिर सक्षमता आने वाली है
कुछ बदल रहा है जीवन में या लक्ष्य बदलने वाला है
मिथ्या और लोभ भरे युग में कोई साक्ष्य बदलने वाला है?
कुछ बदले या कुछ न बदले, है फिक्र किसे जज्बातों की
एक बार पुनः कैलेंडर में एक साल बदलने वाला है-
कृपया ध्यान दें
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गुमनाम, अंधेरी गलियों में, सिद्दत से पाला था जिसको
तम की घुटती परछाई से, खम ठोंक निकाला था जिसको
जीवन की आपाधापी में, हर गम से उबारा था जिसको
उसे आज मेरी पहचान नहीं, मुद्दत से संभाला था जिसको-
भटकता तम की गलियों में, रवानी रात भर की है
सजीले स्वप्न बुनने को, जवानी रात भर की है
कठिन है चौथापन प्यारे, जतन कर लो समय रहते
उड़ेगा श्वास का पंछी, कहानी रात भर की है-