Arun Abhyudaya Sharma   (Abhyudaya)
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Joined 6 October 2017


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Joined 6 October 2017
25 JAN 2022 AT 22:52

कैसे कहूँ की तू मेरे मन की कश्ती का साहिल है,
तेरा होने से ही मेरा होना कामिल है।
क्या कभी पढ़ा नहीं मेरी आँखों में मेरे दिल का फ़लसफ़ा,
सच बता तू चाहता नहीं मुझे, या जाहिल है।

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23 NOV 2021 AT 22:45

मैंने सुना है तुम्हें अमावस में सितारों की तारीफें करते हुए,
पूरनमासी के चाँद को देखकर आहें भरते हए।
तुम ही हो न जो छेड़ते हो मदहोश हवाओं को,
तुम्ही ने किया है सुर्ख़ इन फिज़ाओं को।
जानता हूँ ये अटखेलियां हैं साज़िश तुम्हारी,
पर तुम्हें पाना है ख्वाहिश हमारी।
ठीक है अब तुम जो मेरे सपने अपनी पलकों पर सजाते हो,
पर तुम बातें बहुत बनाते हो।

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15 NOV 2021 AT 22:23

हाँ कठिन था , पर साथ होते,
चलना होता घुटनों के बल, पर हाथों में हाथ होते।
हाँ कांटे होते,
पर होती खुशियों की कलियाँ तब भी कहीं,
अब जुदा हैं,
पर कदमों में दुनिया अब भी नहीं।
अब आये हैं जब बढ़ चले हैं बहुत,
अब जुदा ही सफर में ढल चुके हैं बहुत।
पर अब भी एहसास है, एक आस है,
कुछ फरियादें हैं, याद अब भी पुराने वादें है, यादें हैं।
कि एक वास्ता ऐसा भी था,
ग़र साथ चलना होता,
तो एक रास्ता ऐसा भी था।

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13 NOV 2021 AT 22:51

है दूरियाँ दरमियाँ पर एहसास है,
तू पास न होकर भी पास है।
तू मुझमें है अब भी समाया हुआ,
मैं जो भी हूँ, बस तेरा बनाया हुआ।
मैं खोया भी तुझमें ,खुद को पाया भी तुझमें,
वादा सीखा भी तुझसे और निभाया भी तुझमें।
इन राहों पर चलते कभी तो हमराह होंगे हम,
कभी तो साथ होंगे हम।



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12 NOV 2021 AT 22:57

इन मिट्टी के खिलौनों के खातिर,
स्नेह से अछूते ये प्रेम के काफिर।
इनसे जब भी मिला ग़म ही मिला,
शून्य भी मांगा तो कम ही मिला।
ये हथेली पर रोगन मलने वाले,
सपनों के शवों पर ये चलने वाले।
तू सिर झुका तो सही तेरा सिर भी नोच लेंगे,
जो गले से लगाया, तुझे खरोच लेंगे।
ये औरों के आंसुओं से तर्पण करने वाले,
अपना जनम डुबोता क्यों है?
ये चिताओं पर रोटियाँ सेंकने वाले,
इनके लिए दिल रोता क्यों है।

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11 NOV 2021 AT 19:57

क्या अभी से हिम्मत हार गया,
क्या सोचा? सब बेकार गया?
किनारा दूर है पगले पर अदृश्य नहीं,
कोई भी स्वाद विजय सादृश्य नहीं।
थकना, झुकना, रुकना अब मान्य नहीं,
बिना तराशे पत्थर भी भगवान नहीं।
संघर्ष में हुआ ज़रा कुछ हास् तो क्या गम,
छाया घोर-तम अविश्वास, तो क्या गम,
पसीने से उज्ज्वल तेरा नूर है काफी,
रुकना न मंज़िल तक,
किनारा दूर है साथी।

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10 NOV 2021 AT 22:40

अब हर अपना, "कोई अपना" ढूंढ लेता है,
सूरज भी ,चाँद संग तारे देख आँखें मूंद लेता है।
अब मौजों का कोई किनारा नहीं,
अब डूबते को तिनके का भी सहारा नहीं।
अब लड़खड़ाओ तो , हाथ नहीं देता कोई,
अपनी अर्थी भी अब अपने कंधे....
साथ नहीं देता कोई।

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10 NOV 2021 AT 13:02

हो घोर निराशा के बादल,
अविश्वास धुंधलका, धुंधला कल।
जीवन के उपवन की प्यास,
एक बूंद विश्वास की अरदास।
तब झाँक स्वयं के अंदर,
एक उजाला अनुपम सुंदर,
जो तुझको तुझसे मिलाएगा,
एक नया सवेरा लगाएगा।
ताकि उम्मीद पुष्प की खुशबू से जीवन तेरा महकता रहे,
युग-युगांतर तेरा मन का सूरज चमकता रहे।

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10 NOV 2021 AT 10:16

उजालों से दुश्मनी है,
पर परछाई अच्छी लगती है।
मिलने वाले मिलकर बिछुड़ जाते हैं,
अब मिलने से बेहतर,
जुदाई अच्छी लगती है।
खुदा खिदमतगार है खुद की खैर करने वालो का,
अब बेखुदी बेबुनियाद,
खुदाई अच्छी लगती है।


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17 NOV 2018 AT 23:46

मुफलिसी है लफ़्ज़ों की ,
और नगमों की प्यास है।
खूँ तरबतर ,ज़ख्म हरे हैं,
और सूखे अश्कों की आस है।
तपिश, तेरी खलिश की,
पर जलता हूँ ,रोशनी बाबत
मैं सूरज सा जलता ,
पर अब छांव की तलाश है।



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