Arti Ojha   (आरती ओझा)
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स्वयं का विस्तार........🕉️🕉️🕉️
Joined 29 April 2018


स्वयं का विस्तार........🕉️🕉️🕉️
Joined 29 April 2018
31 AUG AT 0:23

प्रेम के बदले में प्रेम
कब मिला है।
प्रेम में आसक्ति की
चिर नियति तिरस्कार है।
प्रेम जीने की लालसा है?
सुनो हृदय ! क्या तुम्हे
यह स्वीकार है?

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10 JUL AT 12:17

सुनो प्रिय !
जब तुम्हारी याद
मेरी अभिव्यक्ति से दूर रहती है
तुम्हारे हृदय की व्याकुलताएं
तुम्हारे अभिव्यक्ति में रहती हैं
और जब तुम्हारे लिए मेरा प्रेम
हृदय में दबा रहता है
व्यक्त होने से कतराता है
तब तुम्हारे हृदय और मन
की आकुलताएं स्पष्ट झलकती हैं
और जैसे ही मेरे हृदय का स्पंदन मुखर होता है
तुम भिन्न अभिव्यक्तियों से उसे सिरे से नकार देते हो
इतना विरोधाभास ??
तुम्हारी माप तोल मैं कैसे सीखूं
क्यों न तुम एक तराजू बनाओ
जो सधा हो भावनाओं के लिए
और फिर हर बार मैं उसपर तोल कर
अपने भावों को हृदय से बाहर आने दूंगी
क्योंकि मुझे तुम्हारे खुश होने वाले
भावों को देखने की उत्कंठा है।

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8 JUL AT 6:04

आत्मा ने शरीर से :
मैने तुम्हारा वरण ही त्यागने के लिए किया है ।

शरीर ने आत्मा से : वो तो मुझको पता है 😊 , लेकिन जब तक रहोगे मुझको जीवंत रखोगे न।

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7 JUL AT 2:55

तू दुनिया में शामिल न था,
मगर अब होगा तो मलाल मत करना।

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3 JUL AT 11:00

तेरी तलब है समंदर सी
और तुझ पर इख्तियार है सिफर सा

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27 JUN AT 23:50

मैं रूठकर बैठ जाऊं
या महफिल छोड़ जाऊं
तक़ूँ मैं राह उसकी या
उसको ही छोड़ जाऊं

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27 JUN AT 10:05

सागर बनने से पहले
नदी बन थपेड़े भी सहने होंगे
गहराई आए इतनी तो
जमीं के अंदर कदम उतरने भी होंगे।

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12 MAY AT 16:14

तुम्हारा आमंत्रण
तुम्हारी मनुहार
दिल का पसीजना लाज़मी था
तुम्हारा न देखना अब
तुम्हारी असंवेदनशीलता
मेरा चले जाना भी लाज़मी है।

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8 MAY AT 13:31

चले गए पीछे के रास्तों का
तुम पर बकाया मेरा कुछ उधार है,
नज़रे गड़ाकर हिसाब देखा तो
उसमें थोड़ा सा प्यार और ज्यादा सी तकरार है।
करते जाओ इसे हर पल अदा
वैसे भी होना तो, है ,ही जुदा

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8 MAY AT 13:24

लगता है कुछ पागलों सी हो गई हूँ
बारिशों को समेटे बादलों सी हो गई हूँ
अब संभाले से संभलती नहीं यह बूंदे
यह जमीं भी बिना बूंदों की आदी सी हो गई है।

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