उसने पूछा, क्यूं मोहब्बत है हमसे इतनी? तो हमने कहा, वैसे तो सूरत तुम्हारी बहुत भाई थी, तुम्हारी आंखों में अपने लिए इज्ज़त भी नज़र आई थी, पर जब मुश्किलों में घिरी खड़ी थी मैं, और तुमने प्यार से हौंसला बढ़ाया था, तो उस दिन तुम में अपने पापा की छवी नज़र आई थी...
आओ मिल कर दीप जलाते हैं, अंधियारे को ख़ुद से दूर भगाते हैं ज्ञान प्रकाश के अंतर्मन से एक नई रौशनी बिखराते हैं ये दीप हो उन आशाओं का जो हताश मन को समझाए ये दीप हो उन संकल्पों का जो नई राह को दिखलाए ये दीप हो उन सपनों का जो एक दिन सच्चे हो जाएं दृढ़ निश्चय से दुर्गम पथ पर नवजीवन की चादर बिछ जाए मन में साहस प्रकाश हो इतना मंज़िल दूर से हमको दिख जाए चलो मिल कर दीप जलाते हैं चलो मिल कर गीत सजाते हैं अपनी शिक्षा अपनी आशा से हिम्मत,आशा की डोर बनाते हैं एक दीप से सौ दीपों को रौशन करना सिखलाते हैं चलो मिल कर दीप जलाते हैं चलो प्रकाश पुंज बन जाते हैं प्रकाश पुंज बन जाते हैं...