Arti Azad   (Azad kee kalam se)
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Joined 2 July 2019


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2 MAY 2022 AT 1:58

पत्थर सा होगा ये दिल मेरा, गर तुझे काबिल मानता नहीं दुख साझा करने के
शीशे सी पिघलकर तेरे सामने होगी हर बात मेरी, गर इसे भरोसा तुझ पर हो जाए

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15 MAR 2022 AT 1:37

मेरे लफ्ज़ों को समझने जितनी समझ नहीं तुम्हारी
मेरी ख़ामोशी को क्या ही पढ़ पाओगे

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14 MAR 2022 AT 1:52

खूबसूरत है इतना, बावजूद इसके बेहद तन्हा क्यों है
फ़लक में है तारों की महफ़िल, फिर क्यों उदास है
तुझ पर हर नज़र है ठहरी, तुझे तलाश किसकी है
तेरे नाम से शुरू होता हर गीत, तुझपे किसकी धुन सवार है
हर कोई रोशन तेरे नूर से, तेरी नज़र को किसकी आस है
हर कोई तुझसे कहे अपने दिल की, कह दे मुझसे गर कहनी तुझे कोई बात है
तू अकेला नहीं आसमां में, ज़मी पर मेरे भी कुछ-कुछ तुझसे ही हालात है


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14 MAR 2022 AT 1:28

तलाश है अब ख़ुद की ही, जो कहीं खो गई हूं
इससे ज्यादा कुछ तलाशने की हिम्मत है, न ख्वाहिश

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10 FEB 2022 AT 0:53

हां, वैसे भी ऊपर वाले के आगे क्या बिसात जो उसे रोक सकूं कुछ करने से, फिर चाहे वो तबाह ही क्यों न कर रहा हो मुझे— % &

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27 APR 2021 AT 2:27

पहली मोहब्बत का असर ही कुछ ऐसा होता है
मन हर वक़्त कस्तूरी सा महकता हैं
हां मुक्कमल हो जाए ये जरूरी तो नहीं
लेकिन पहली मोहब्बत का सुरूर कभी कम नहीं होता हैं

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26 DEC 2021 AT 0:54

दीदार न सही याद ही कर लिया कर।

हमने कब कहा हमें हिचकियों से परहेज है।।

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3 NOV 2021 AT 19:55

कितने सपने इन आंखों ने देखे ही थे अभी
हां जीने की शुरुआत हुई ही थी अभी
वक़्त तेरे साथ वाला ख़त्म होने वाला था जल्द ही
जो पता होता तो हम भी आंख ना खोलते कभी
कितने अपने ले गया, कितने सपने ले गया
ये वक़्त तो अपना था ही नहीं कभी
पानी मेरी आंख का सूखेगा नहीं ताउम्र भी
दिल मेरा तेरी यादों में डूबा है समंदर सा ही

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19 AUG 2021 AT 11:18

ये कैसी तुम सज़ा दे गए जान मेरी
यूं तन्हा छोड़कर जो तुम चले गए
मेरी नादानियां क्या गुनाह बन गई
जो तुम मुझे माफ़ भी न कर सके
क्या होगा उन सपनों का जो हमने बुने थे
टूटे हैं इस कदर कि कई जख़्म दे गए
उन घाव से रिसता है तेरे इश़्क का दर्द
तेरे साथ बिताएं लम्हों को जब जीते हैं

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18 AUG 2021 AT 17:43

काश तेरे सारे दर्द और आंसू मैं ले पाता
तुझपे आने वाली हर मुश्किल झेल जाता

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