कभी तन्हा बैठूँ, तो लबों की हँसी बन जाना
सर्द में कभी ओस सा मुझसे लिपट जाना
न होना मेरे पास फिर भी मेरे हो जाना
कभी शाम ढले, तो मेरे दिल में आ जाना...
©Arpii-
तुम अपनापन भी, अभिमान भी
तुम संवेदना और सम्मान भी
तुम मीठी, मधुर, मोहक, मनोहारी
तुम हिंदी! सरल, सुंदर, सबसे प्यारी...
©अर्पिता-
अगर बेटियों को पढ़ाई के साथ गोल रोटी की शिक्षा दिया जाना अनिवार्य समझा जाता है तो पुरुषों को पाक कला से वंचित रखना या उनका रसोई में आने को अपमानजनक समझना किस तर्क को सार्थक करता है ...
©Arpii-
आज! फिर लिखी गयी एक अधूरी कविता
जिसके भाव तो दर्पण की तरह साफ थे
और जिसका लक्ष्य हर उस भावना को उकेरना था
जो दब रहा था मन के भीतर
हर उस ज्वालामुखी की अग्नि प्रवाह रोकनी थी
जो जल रही थी हृदयतल में निरंतर
पर भावनाओं की नींव को शब्दों की ईंट नहीं मिली
कुंठित भावनाएँ कहीं चार वाक्यों के फेर में
बँधी भी, बंधन मुक्त भी रहीं
ना लयकारी हुई, ना तुकबंदी
ना लक्ष्य साध्य किया गया
ना ज्वालामुखी की अग्नि प्रवाह रुकी
ना अंत हुआ न आरंभ
जाने क्यूँ आज कविता छंदमुक्त बनी...
©Arpii-
बेवक़्त आकर बिन खबर चले जाते हो
तुम क्यों सर्दी की बारिश हुए जाते हो?...
-Arpii-
And
It ends
With a feeble "Bye"
Who's last two alphabets
Always find an escape.
In the world of words
"Bye" remains incomplete
Like my feelings
Like me.
All of us escape
Before completion
All of us escape
Before situation.
That feeble "Bye"
Is a simile for "Me"
We both are
Wondering
Wandering
Wanting
Waiting...
-Arpii-
अलसायी सुबह में
कुछ खुली खुली दिल्ली
बारिश की फुहार में
थोड़ी धुली धुली दिल्ली
वीकेंड की दस्तक पर
जल्द न उठने की ज़िद
पर चाय के प्याले में
ज़रा घुली घुली दिल्ली...
-Arpii-
रिश्ते थोड़े सिल गए हैं
नरमाहट की जरूरत है
दोस्त पुराने वहीं मिलेंगे
एक आहट की जरूरत है...
-Arpii-
मोह मोक्ष से विकल
या, मोक्ष मोह का हिस्सा
प्राणांत का आधार या,
पुनर्जन्म की परीक्षा
व्यर्थ वस्तु विनिमय प्रणाली
भौतिकता बनी हर समीक्षा
अंगार पथ निमंत्रण पत्र पर
अर्थहीन पुष्प की अपेक्षा...
-Arpii-
वो सीलन लगी दराज़ खोलो ना
वहाँ पहले प्यार का पिटारा होगा
बातों की पाबंदी होगी
नज़रों का इशारा होगा
सुनो! आज ज़रा साथ बैठो ना
बीते लम्हों के धागों को चुनना है
कुछ फाहें निकलने लगे हैं
पुराने इश्क़ को फ़िर से बुनना है...
©Arpii-