खुले आसमान के जो ख्वाब देखा करती थी,
एक कमरे में कर दी गई, बन्द नादानीया उसकी ।
नन्ही सी जान थी, हर बात से हैरान थी,
क्यूँ किसी ने छीन लिया पहचान को उसकी ।
कभी राते डराए, बुरी यादे सताए ,
ये दुनिया क्या ही जानेगी हालत को उसकी ।
मुस्कुरा कर उसे पुरी दुनिया से मिलना होता है,
देर सवेर फिर उसे आइना भी देखना होता है ।
टूट कर यु बिखर चुकी थी, की टुकडे भी खुद के खो दिये ।
कोई बता सकता है,आखिर क्या खता थी उसकी ।।
इस दुनिया से जो चार सही सवाल उसने कर लिए,
तुमने पहचान पर ही उठा दिया, सवाल उसकी ।।
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