जब भी लिखने बैठो, दिल उस पर लिखने लगता है,
लेकिन उस पर लिखना, अब अच्छा सा नही लगता है।
कभी गुस्से पर भी उसके, मेरे लब मुस्काया करते थे,
लेकिन गुस्से का हक़ खोने पर, अब अच्छा सा नही लगता है।
रोती हुई आँखें उसकी, एक गाने से खिल जाती थीं,
लेकिन उन गानों का मतलब, अब अच्छा सा नही लगता है।
हँसती थी वो जब भी, मेरे ग़म खो जाया करते थे,
लेकिन उसके हँसने पर, अब अच्छा सा नही लगता है।
दिल का भी एक हिस्सा, इस किस्से में कहीं छूट गया,
लेकिन उस किस्से को पढ़ना, अब अच्छा सा नही लगता है।
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