Arpit jha Aj   (Abhi)
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Joined 30 April 2018


Joined 30 April 2018
17 JAN 2023 AT 0:20

वो मेरे आज में तो मौजूद हैं पर ,
यादों से मेरे कल को मिटाना चाहता हैं!
बंदिशों के कायल न होना उसे ,
मगर बातों से हक़ जताना चाहता हैं!
अहल-ए-वफ़ा से महरूम कर,
वो मेरी क़ैफ़ियत आज़माना चाहता हैं!
इक़रारों की बेरियां लाज़िम हैं क्या,
वो हर लम्हें में इक अफ़साना चाहता हैं !

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20 NOV 2022 AT 1:27

धीरे धीरे वो मुझपे यूं असर कर रहा,
मेरे अंदर ख्यालों से वो घर कर रहा,
मुझे खुद से भी बेखबर कर रहा,
जुल्म अदाओं से वो इस क़दर कर रहा!

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18 OCT 2022 AT 0:44

मैंने पूछा क्या खता हुईं हमसे,
मेरे हमनफ़स क्यूं खफा हुईं हमसे,
उनसे दिल्लगी रज़ा थी मेरी,
उनकी बेरुखी सज़ा थी मेरी,
सपना सा वो मुलाकात था,
सपनों सा ही उनमें बात था,
लबों पे उनके हसीं जमीं थी,
निगाहें मेरी बस वही थमी थी,
कुछ ख़्वाब जो पल रहा था,
अंदर ही अंदर दिल मचल रहा था,
थमे न जो ऐसा लहर बन जाऊं,
वीरानियों को भूल शहर बन जाऊं,
वो जो कह दे तो यूं मैं ठहर जाऊं,
या अधरों से होके उनके रूह में उतर जाऊं!



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23 SEP 2022 AT 16:17

भींगी-भींगी पलकों में कुछ ख़्वाब पल रहा हैं,
आहिस्ता-आहिस्ता ये शाम ढल रहा हैं,
रुक सी गई हैं ज़िंदगी बस सांस चल रहा हैं,
कौन दुआ करें काफ़िर के वास्ते ,
उधर शमा जल रहीं हैं इधर दिल जल रहा हैं!

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20 SEP 2022 AT 11:59

खो गया काफ़िर दरख़्त-ए-दिल के आगोश में,
इल्म ना रहा हुआ क्यूं इस क़दर मदहोश मैं,
सुनाना था एक दास्तां उसे,
न जानें फिर भी रहा क्यूं ख़ामोश मैं,
उलझनें ऐसी थी लब सिले से थे ,
जज़्बातों ने भी आने न दिया होश में!

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8 SEP 2022 AT 0:54

आंखें सवाल करती हैं, काफ़िर जवाब क्या दूं,
बेरुख़ सफ़र-ए-जिंदगी का हिसाब क्या दूं!
अमावस रात की महताब सा किरदार लिए,
सावन की घटाओं में आफताब का ख़्वाब लिए,
समझें जो न हालत-ए-हाल के सबब को उसे नायाब क्या दूं!

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22 AUG 2022 AT 22:38

ओझल आंखों में अधूरे सपने तैर रहें,
आरज़ू हैं काफ़िर कि न जमाने में किसी से बैर रहें,
मिले जिनसे आंखें लगे न वो ग़ैर रहें ,
संग चूमते धरती को सबके वहीं पैर रहें,
काश पूरी हो ये मुरादें तो लगे जैसे ख़ैर रहें,
ओझल सी आंखों मैं हैं यहीं सपने तैर रहें!

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19 AUG 2022 AT 0:40

तेरे जिक्र से अगर चेहरा खिल जाए
तो क्या ये कसूर मेरा
तेरे तारीफ़ में अल्फाज़ कम पड़ जाए
तो क्या ये लफ्ज़ों का गुरुर मेरा
पलकों में बसके जो यूं शरमाए
तो ये क्या निगाहों का दस्तूर मेरा
अपनी सादगी का नूर जो तू छटकाए
फिर ख्वाबों में जो यूं मन मचले
वो क्या दिल-ए-बेज़ार का सुरूर मेरा !

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29 JUL 2022 AT 0:22

ए सावन की घटा इस क़दर जो छाओगे,
हर रोज़ बूंदों से यूं जो भिंगाओगे,
सुहाने मौसम में दिल पे कहर जो ढाओगे,
यादों की दुनियां में ले जाके जो तड़पाओगे,
उन मंज़र का झलक यूं नजरों में जो लाओगे,
वफ़ा-ए-मौसम की अदाओं से यूं जो लुभाओगे,
इरादा क्या हैं......,
नयनों से बारिश छलकाओगे !


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25 JUL 2022 AT 23:29

यही सावन यही बारिश संग बस तू था !
भींगी सड़के थी , झुकी तेरी पलकें थी,
इशारों ही इशारों का वो गुफ्तगू था !
पल वो नायाब थे,
गुजर जाएंगे इस क़दर मैं न इससे रूबरू था !
उलझनें हजारों थी जिंदगी में तब भी ,
पर तेरे होने से संग मेरे सुकूं था !
मुक्कमल ख़्वाब थे , स्वत्व के एहसास थे ,
बस यूं ही कट जाए सफ़र-ए-जिंदगी
यहीं दिल-ए-मासूम का इश्क़-ए-जुनूं था |

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