हा, बाते तो मै जमाने की किया करता हूँ।
पर हर पल तुझको ही याद किया करता हूँ।
बस तेरी मजिलो का काटा बन न बैठु।
यही रब से हर वक़्त दुआ करता हूँ।-
दिल टूट गया, मन रूठ गया,
खामोशी की इन राहों में,
मेरा सब कुछ यूं ही छूट गया।
दिल टूट गया...
जितना सोचा था जीने को ,
सोचा था खुद को सीने को,
सब कुछ यू हीं छूट गया।
दिल टूट गया, मन रूठ गया।
आशा का चक्र चलाने को,
कोताही का दाग मिटाने को,
सपनो के गागर मे ही डूब गया।
दिल टूट गया, मन रूठ गया।
लिखता हूं खुद को बुनने को,
खोजा भी था खुद को सुनने को,
खुद को इस मैं ही भूल गया।
दिल टूट गया, मन रूठ गया।
निष्पत्ति के प्याले चखने को,
आँशु अमृत को मंथने को,
कांटों के झूले पर झूल गया।
दिल टूट गया, मन रूठ गया।
-
मंजिल के पहलूओ को बार बार पलट लेता हूँ,
दीदार के बहाने खुद को हर बार परख लेता हूँ।
नकामियो के मधु को हर बार गटक लेता हूँ,
होश आते ही, मंजिल की ओर धीरे से सरक लेता हूँ।-
जिंदगी की सच्चाइयों को छुपा के बैठा हूँ,
खुद को भूल दूसरे पर वफ़ा कर बैठा हूँ।
जानता हूं मिलना किस्मत मे नही तुझसे,
फिर भी तुझसे दिल लगा के बैठा हूँ।-
जिंदगी की बात करता हूँ,पर कल की भी आबरू किसे
जमाने की भी सुध लेता हूँ,पर अपनो की आबरू किसे।
जन्नत की बात करता हूँ,पर फजलो की आबरू किसे,
जब खुद की भी बात करता हूँ,पर दिल की भी आबरू किसे।-
मां बंदिनी मां भारती की गाथा आज सुनाता हूं ,
भरत से लेकर सन् सैतालीस की गाथा में गाता हूं।
जीवनदायिनी कहीं गई तू चक्रवर्ती का तू ऐश्वर्य,
लाख चढ़ाई करने आए झुका ना फिर भी तेरा सर।1।
राम जन्म की बनी साक्षी कृष्ण युग में यश बड़ा,
महाभारत में तेरे पूतो का नदियां सम् रक्त बहा।
महावीर और बुद्ध भी तेरे गौरव के ही आन बने,
अहिंसा का मार्ग दिखाकर इस जग को पहचान दिए।2।
समय-समय पर हुआ घात है कुछ तेरी ही कपूतो से,
बिखर गई थी मां तू जब, चंद्र राजा रजवाड़ों से।
रक्तपात और महारुधन तब,संकट सर पर छाया था,
एकाकी की प्रतिज्ञा लिये, सेल्यूकस दर पर आया था।3।
देख स्वाभिमान तेरे पुत्रों का, शत्रु भय से कांप उठा,
चाणक्य के है दिग्दर्शन में, नए युग का निर्माण हुआ।
मौर्य से लेकर गुप्त काल तक, तेरे यश का गान हुआ,
देख प्रशंसा सारे जग में, वैरी भय-चिंता से कांप उठा।4।
घृत तृष्णा से किया घात है ,कई विदेशी कृपणो ने,
फिर भी तन भी डिगा ना पाए, स्व तेरे अभिमानो को।
तुर्को से मुगलो ने भी, सर-चोटी का जोर लगा डाला,
वात्सल्य है तेरा ऐसा, पुत्रों सम उनको अपनाया।5।
हुआ घात तब मुख्य प्रदर्शक,व्यापारी बनकर आए भक्षक,
टूट-फूट की नीति अपनाई रक्तपात और की लुटाई।
दो दशकों तक राज किया था,तेरा सब कुछ छीन लिया था।
हुआ संग्राम था दिग् दर्शक भाग गए वे अपने घर तब।6।
-
काश! कवि बनना भी आसान होता,
दिल की आरजू को शब्दों मे समेटना आसान होता।
पन्नों में सहेज देता, इस जीवन की तमन्ना को,
फिर खुद को बयां करना, कितना आसान होता ।
-
ख्वाब तो बहुत सजाये थे, इस मुसाफिर जिंदगी मे,
पर खुद ही टूट गया हूं, तो ख्वाबो की आवरु किसे।-
बेशुद् सा बैठा होगा, इस जमाने के इतज़ार मे।
ये ना सोच पगली, आग लगी हैं इस संसार मे।-