ये कौन है जो तनहा जा रहे है....
भरी जवानी में घर से निकाले जा रहे है....!!
तकलीफ़ दिलों से ज़ुबान पे उतर आई....
तभी चोटों के साथ ताने जा रहे है....!!!!
मेरे जनाज़े पे आज भीड़ क्यों नही है.....
चेहरे अब यहां से पुराने जा रहे है....!!
सच कहते ह लोग मेरे बारे में....
जनाब दिलेरी से अकेले जा रहे है....!!!!
अर्पित द्विवेदी-
वो चेहरा जिसे भुलाने में बरसों लगे,वो फिर आज सामने उतर आया.....
जिसे सुलाक़े आया था क़ब्र में, वो मेरे ख्वाब में आया....!!
वो कहता ह की कोई बदला नहीं, सिर्फ एक कर्ज़ बाक़ी है ....
एक दोस्ती का बाकी वादा था जिसे निभाने चला आया....!!!!
अर्पित द्विवेदी-
तुझे किसी औऱ का होते देख, खुदको जलने नही दूँगा मै....
किसी और के दिल को, तेरी गर्मी से पिघलने नही दूँगा मैं....!!औऱ बहुत अकड़ने वाले, फिर अपाहिज़ होकर मानते है....
मेरे बगैर अब तेरी साँसों को चलने नही दूँगा मैं.....!!!!
अर्पित द्विवेदी-
पग दो पग सीढ़िया, चढ़कर उतर आता हूं .....
तेरे कमरे में जाने से, मैं आज भी कतराता हु....!!
ये कमरा है निशानी, तेरी गुज़ारी हुई उदासी का.....
अपनी उदासी मिटाने, तो मैं भीड़ में उतर जाता हूं....!!!!
मुझमे फर्क तब भी था, और अब भी है.....
पर तेरी ये तस्वीर जवां, अब भी है....!!
मैंने तो, माफ़ कर दिया था तुझे गलतियों पर....
पर तु मेरी गलतियों पे नाराज़, अब भी है....!!!!
तुम जहाँ भी हो, ख़ुश रहो, यही अब मेरी तमन्ना है.....
अब घर मे कोई क़िताब नही बाकी, जो मुझे पढ़ना है.....!!
ज़िद पर अड़ीं है, मेरी ये धड़कने वरना.....
मेरे सूरज को भी तो अब ढलना है.....!!!!
अर्पित द्विवेदी.-
दर्द मुझे औऱ दो, इतने में अब दिल नही लगता....
आदत बड़ी बुरी है, बनाने में दिल नही लगता....!!
औऱ इस बार आना, तो इक्कठी आना....
यूँ टुकड़ो से बात में दिल नही लगता...!!!!
अर्पित द्विवेदी.-
याद किया और मुलाकात हुई उम्र तुम्हारी लंबी है...
बात छिड़ी औऱ मनवा लिया, ज़िद तुम्हारी लंबी है...!!
मगर एक मशवरा मेरा मानो और लौट जाओ....
मुझसे मोहब्बत करने वालों की कतार बड़ी लंबी है....!!!!
अर्पित द्विवेदी-
जब दिन दिन भर थक कर मैं,सूरज में खून जलाता हु.....
तब सोचके तुझको साया अपना पास बुलाता हु.....!!
जब उसी समय मे कुछ आवारे तारे गिनते दिखते है.....
तब भी बच्चों काम मे जाकर रोटी तुम्हे खिलाता हु.....!!!!
दर दर भटका था मैं जब जाकर कहीं आराम मिला.…..
इतना पढ़कर नंबर लाया फिर नौकर का काम मिला....!!
सबकी तकदीरों के तारे रोशन होते दिखते थे.....
बस मेरी ही मेहनत का क्यों फिर ऐसा ये अंजाम मिला....!!!!
वक्त बड़ा बलवान है देखो इसका ना अपमान करो....
पढ़ो लिखो सब लेकिन तुम यूँ ना नौकर का काम करो.....!!
भटकाती है ये दुनिया पर तुम सच्चो का साथ करो.....
बच्चो सीखो मेरी गलती से,अपना कल निर्माण करो....!!!!(2)
अर्पित द्विवेदी-
"लक्ष्य की सीमा"पे पहुँचकर,
"आंनद"की अनुभूति होना, यही उस कार्य की सफलता है...-
ख़्वाब बुरे ही सही, मगर आते तो है....
तुमने तो छत से भी दुश्मनी कर रखी ह...!!
अर्पित द्विवेदी-