मिलाते जो हाथ तो वकालत करता....
दुश्मन भी होता तो कार - ए- अदालत करता....!!
गर उतारा न होता तुमने फरेब का खंजर मुझपर....
मै तेरी चौखट की आबरू को सलामत करता....!!!!
अब जो भाइयों के बीच किसी गैर को पनाह दी है....
देखना कौन अब कितनी सियासत करता...!!
मार कर हामी को बड़ी ही भूल की तुमने....
काश मैं होता तो अपनो की खिलाफत करता...!!!!-
फिर यूं हुआ की आंखे खुल गई मेरी....
ख़्वाब - ए - कारागार से हम रिहा कर दिए गये..!!
जो जुनून था कभी जिंदा, वो मर गया मुझमें....
हम इश्क़ की ज़मानत से जुदा कर दिए गए...!!!!
आंसुओं की धारा तो थम गई कबकी.....
हम बंजर आंखों के हवाले कर दिए गए...!!
ये रात एक अरसे से दे रही पहरा...
हम नींद के सहारे से किनारे कर दिए गए....!!!!
तुम जो होते तो पूछते सजा क्या है....
हम जवाब देकर फिर बेजुबां कर दिए गए...!!
खैर छोड़ो तुम्हारे हक में सिर्फ़ उजाला है....
हम जायज़ादी अंधेरे के मालिकात कर दिए गए..!!!!-
तेरी याद में यादों का फ़िर क़त्ल कराना पड़ता है...
दिनभर मुझको अक्सर देखो अक्ल का ताना पड़ता है....
क्या मै जितना दिखता हु, उतना भी मासूम नहीं...??
हर नए शख़्स को दावत पर क्यों शक्ल दिखाना पड़ता है...???
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"चलो शाम के वक्त चाय पर मिलना"....
छोड़ दिया उस शख्स के बाद ये कहना...
मशरूफ हुई जबसे वो शहनाइयों में....
भुला दिया मैने किसी संगीत को सुनना....
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तुम मेरी मोहब्बत हो, मगर तकदीर में नहीं....
मै तुम्हारे साथ किसी तस्वीर में नहीं....!!
इस हुस्न पर गुमान हो तुम्हे अगर तो फिर...
तुम मेरी नज़र में हो, ज़मीर में नहीं...!!!!-
डूब जाने को जी चाहता है,
ये किनारे अब रास नहीं आते....!!
वो जो दूर तुम्हे बेबाक चाहते है,
दूर ही रहते हैं पास नहीं आते....!!
मैने आजमाया है,और खूब आजमाया है,
आजमाने से कोई ख़ास नहीं आते....!!
ढककर रखो, न रखो तुम्हारा है,
मेरी नज़रों को ये लिबास नहीं भाते....!!!!
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बड़े दिन बाद ये आभार आया है....
नए शख़्स को मुझपर दुलार आया है....!!
कितने हसीन हो, ये पढ़ा है मैने....
लफ्ज़ों का दौर किस कगार आया है...???
ऐतबार मत करना सन्नाटे के शोर पर...
दबे पाँव फिर कोई शिकार आया है....!!
अच्छा फिर लगने लगा हु किसी को....
खतरा फिर किसी प्रकार आया है....!!!!-
कह रही हो इस तरह, सिखा देने के लिए....
एक हुनर जो हम में है, दिखा देने के लिए....!!
तुम जो हो सके तो फिर, कलम बन के जी सको...
हम किसी कागज़ की भांति, लिखा देने के लिए....!!!!
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नाराजगी नहीं, ये है मोहब्बत तुमसे....
शिकायत भी और एक दिक्कत तुमसे...!!
बरसो पुराना मगर दिया तुम्हारा है...
वो एक घाव और जिस्मानी मशक्कत तुमसे...!!!!
अर्पित द्विवेदी-
ये आंखे खामोश नहीं होती...
गर मेरे आग़ोश नहीं होती...
सिर्फ जुबां लड़खड़ाने पर....
वो लड़की नकाबपोश नहीं होती...
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