Arpana Kumari   (अर्पना)
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I love to write poetry
Joined 13 June 2018


I love to write poetry
Joined 13 June 2018
20 MAR AT 21:50

अपने बचपन से प्रेरित होकर, हाँ जी,
हमने भी एक फीडर टांग दिया बाहर।
तीन महीने बाद दिखी एक गौरैया,
गौर से देख रही थी उनको आ–जाकर।
दो हफ्तों तक जांचा–परखा, चखा न एक दाना,
हम खुश थे कि कमसे कम, शुरू तो हुआ आना।
एक दिन जब था बालकनी में सन्नाटा,
तेज आवाज पर मेरे भाई ने मुझे डांटा।
जब हम बालकनी के पास गए थोड़ा,
देखा दाना खा रहा था चिड़ियों का जोड़ा।
मन हम सबका खुशियों से हर्षा आया।
उसके बाद तो एक दो नहीं,पूरा झुंड आया।
और ये सब कुछ एक बरस तक खूब चला।
फिर नए घर में शिफ्ट होने का दौर चला।
उस घर के मालिक को कह कर हमने भी,
पूरी बालकनी दानों से भर कर रख दी।
कहा कि अगला किरायेदार भी आ जाए तो,
कुछ दिन वहां दाना खाने दें चिड़ियों को।
मान गए वो बालकनी को छोड़ दिया।
वहां से कुछ 4किलोमीटर पर घर था मेरा।
फिर से दो फीडर में दाने भरकर के
टांगे हमने बालकनी में बाहर से।
आए यहां हमें एक हफ्ते भी नहीं हुए,
गौरैयों का वही झुंड यहां भी आ गया।
एक चिड़िया के पंख जरा निकले से थे
मानों किसी तार से कभी टूट गए थे।
हमने भी बस उसको था पहचान लिया।
मन को बड़ा गहरा सा सुकून मिला।
मेरे पति कहते हैं कि उन चिड़ियों ने
बालकनी के पौधों को पहचान लिया।
बालकनी के घोंसले में भी अब रहने लगी,
चिड़ियों ने मेरे घर को अपना घर मान लिया।

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19 FEB 2023 AT 12:26

हो खुशहाली हर तरफ
मन पर सफलता का जुनून।
शुभकामना है, मिले आपको,
व्यस्तता में भी सुकून।

सामाजिक और पारिवारिक,
दोनों जीवन सुखमय हो।
सुंदर और संतुलित हो जीवन,
हर दिन आपका आनंदमय हो।

सेहतमंद सुखी जीवन हो,
फूलों से हर रंग मिले।
सूर्य से ऊर्जा मिले प्रतिदिन,
पवन से रोज उमंग मिले।

न सोचें सेवानिवृत हुए है,
बढ़ा दरअसल है अनुभव।
दुआ है, सुख और समृद्धि हो,
प्रत्येक दिवस ही हो उत्सव।

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19 JAN 2023 AT 11:53

कान्हा! सुन मीरा की टेर।

पूरी कविता अनुशीर्षक में..

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2 SEP 2022 AT 11:45

"इक सिवा तेरे"
इक सिवा तेरे, बता है कौन मेरा।
'मैं तुम्हारी' कह रहा है, मौन मेरा।
तू भी है व्याकुल बिना मेरे कहीं पे,
बिन तेरे अस्तित्व भी है गौण मेरा।

लौटके आना ही है मुझको वहांँ तक
लायीं हैं मजबूरियाँ मुझको यहाँ तक।
एक तृष्णा, लालसा, तेरी झलक की,
देखते जा, खींच लाएगी कहाँ तक।

सौ दफा तेरा ज़िक्र है, किस्सों में मेरे।
कितनी मेरी फिक्र है, बातों में तेरे।
जब से तेरी नज़रों के तप से तपी हूँ,
दिल धड़कने लग गया, आँखों में मेरे।

तू लहू सा, पानी सा, मेरी रगों में।
तू ही है इकमात्र मेरे रतजगों में।
ख्वाब देके, छीन ली नींदें हमारी,
तुम भी शामिल हो गए देखो ठगों में।

इक सिवा तेरे, बता है कौन मेरा।
'मैं तुम्हारी' कह रहा है, मौन मेरा।
तू भी है व्याकुल बिना मेरे कहीं पे,
बिन तेरे अस्तित्व भी है गौण मेरा।

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26 AUG 2022 AT 8:11

'हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी।' 2/2

लफ्ज़ जब खामोशियों की भीड़ में दब जाएँगे।
जब बुरे से वक्त में तुम्हें छोड़कर सब जाएँगे।
जब तड़प कर गीत विरह के तेरे लब गाएँगे।
दर्द खारे पानी बन आँखों से ढल जब जाएँगे।
मैं सुकूँ बनके हवा में तेरी साँसों को भरूँगी।
हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी, हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी।

जब तुझे दफ्तर तेरा कुछ बेरुखा लगने लगे।
या कभी तेरी रूह जब तुझसे ख़फा रहने लगे।
जब कभी जीवन तेरा अंधेरे में घिरने लगे।
साथ चलने वाली जब परछाईं भी गुमने लगे।
बनके मैं अग्निशलाका, तेरी आगे ही चलूँगी।
हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी, हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी।

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26 AUG 2022 AT 8:00

'हाँ वहीं पर मैं मिलूँगी।' 1/2

भोर हो और जब कभी, मिलने का मुझसे जी करे,
थोड़े पल को पैरों से, जूतों को तुम करना परे,
मखमली सी दूब जब, तलवों को सिहरा जाएगी,
ओस की बूँदें हृदयतल, को भी नम कर जाएँगी,
बस तभी थामे तुम्हारा, हाथ ये मैं भी चलूँगी।
हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी, हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी।

जब कभी दरवाजे पर, महसूस होंगी आहटें,
जान लेना आईं तुमसे, मिलने मेरी चाहतें,
हाँ उसी पल, बढ़के आगे, द्वार अपने खोल देना,
मैं दिखूँ या ना दिखूँ, दो लफ्ज़ दिल से बोल लेना,
तब सुकूँ चेहरे का तेरे , बन हवा सी मैं बहूँगी।
हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी, हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी।

जब कभी भी, मुश्किलों के, बीच तुम घिरने लगो,
या सफर में, डगमगाओ, या कभी गिरने लगो,
जिंदगी की अफ़रा-तफ़री, में कभी थक जाओ तो,
और थकन की पीड़ में, रस्ते में ही रुक जाओ तो,
बनके हिम्मत मैं तुम्हारी, तेरी नस-नस में बहूँगी।
हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी, हाँ! वहीं पर मैं मिलूँगी।

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25 AUG 2022 AT 10:51

काजल, रौनक, मस्ती, फिर वो, चैन, सुकूँ और नींदें भी,
क्या बतलाएँ, क्या-क्या खोया, इन आँखों ने तेरे बिन।

दिन के उजाले, इनके रोने, पर करते थे, प्रश्न कई,
रो-रो कर है, रात भिगोया, इन आँखों ने तेरे बिन।

इक दिन, विरह-कारावास के, बाद मिलेंगे जी भर के,
दिल रखने भर, ख़्वाब संजोया, इन आँखों ने तेरे बिन।

बादल बन, आँसू-कण, निर्जल, प्रेम धरा पर बरसेंगे,
पीड़ा का, हर कतरा बोया, इन आँखों ने तेरे बिन।

मृत्युदंड से बद्तर जीवन, आठों पहर पलकें भारी,
भार वेदना का यूँ ढोया, इन आँखों ने तेरे बिन।

तुम न आए, धुँधली पड़ गईं, जब यादों की तस्वीरें,
भर-भर आँखें उनको धोया, इन आँखों ने तेरे बिन।

शब से सुबह, दोपहरी से, बांट जोहते, शाम किया,
पल, क्षण, लम्हा, उम्र पिरोया, इन आँखों ने तेरे बिन।

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24 AUG 2022 AT 10:19

'तन्हा धूप'
पूरी कविता अनुशीर्षक में...................

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23 AUG 2022 AT 23:15

आओ मेरे पाँव की तुम, बेड़ियाँ ये खोल दो।
ख़्वाहिशें अपनी इसी, गहरी नदी में घोल दो।
यह नदी जो प्रेम की धाराओं को लेकर चली।
देख छूकर इसको मिट जाएगी तेरी बेकली।

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22 AUG 2022 AT 23:30

मुझे मतलब नहीं है रत्न धन से
मेरी जाँ मेरी तो दौलत तुम्हीं हो।

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