कारवां-ए-ज़िन्दगी में कोई साथी नहीं मिला,
मिला जितना भी उतना काफी नहीं मिला!
ये तिश्नगी का आलम कायम रहा उम्र भर,
मैं यूं ही रहा मुंतज़िर कोई साकी नहीं मिला!
एक सच ये कि अब तलक ठहरा हुआ हूं सफर में,
एक झूठ ये कि कभी घर से बाहर नहीं गया!
ये मुहज़दा है कि वो मुझे आधा मिल गया था,
और अजियत ये की वो मुझे बाकी नहीं मिला!
यूं कब तलक महव-ए-हैरत में रहा जाए अर्पण,
आजमाया उसे जिससे मुक्कदर नहीं मिला!
बताने वालों ने बताया कि वो पत्थर दिल है,
मैंने बहुत ढूढा पर उसके दिल में पत्थर नहीं मिला!!-
डर रहता है ये ही अब इससे आगे क्या होगा,
गर मेरा कत्ल होगा फिर मेरा ही गुनाह होगा।
फिर से लौट आया है वो परिंदा पिंजरे को आज,
जो रोज़ पूछता फिरता है कि कब रिहा होगा।
एक वजह ये भी रही होगी कभी ग़ज़ल लिखने के पीछे,
किसी ने सुना नहीं होगा जब तुमने कुछ कहा होगा।
रहकर शीशा भी लोग ए'तिमाद कर लेते हैं पत्थर पर,
फिर शीशा बिखरेगा नहीं तो और क्या होगा ।
फ़िर सांस उखड़ने लगी तो इस दिलासे से बच पाया
मोहब्बत नहीं होगी उसे पर लगाव तो रहा होगा।-
ना लिखी जाती है ग़ज़ल ना बनाई जाती है,
ना रोकी जाती है मोहब्बत ना भुलाई जाती है।
ये आब- ए- रवां ठहरता है बस पल भर को साहिल पे,
इनको होती नहीं मोहब्बत बस कहानियों में सुनाई जाती है।
ये कब है हिसार में किसी को जाने से रोकना,
फिर भी रोको, बुलाओ उसे, पुकार तो लगाई जाती है।
पहली मुलाक़ात के सन्नाटे से ये बात समझ आयी,
बात आए नहीं याद कोई तो बात बनाई जाती है।
मैं जानता हूं हर शख़्स कोई दर्द समेटे हुए बैठा है यहां,
चोट गहरी हो तो ना छुपती है ना दिखाई जाती है।
यूं ही नहीं मिल जाती शहर में हर शक्षियत फरेब की अर्पण,
सबसे मोहब्बत करनी होती है ये मेहनत से कमाई जाती है।-
बुढाती यादों को हमने जवां रखा है
किसी तरह ये दिल हमने बहला रखा है।
गर आइना हो ऐसा तो पता बताओ मुझे
जो इल्म कराए फलां चेहरे ने क्या छुपा रखा है।
ढूंढने बैठो तबीयत से तो चाहने वाला मिल जाता है
बारहा ये सपना, सबने, सबको दिखा रखा है।
मोहब्बत बुरी है तो फिर बुरा ही बतलाया जाए
मोहब्बत में लोगों को खुदा क्यूं बना रखा है।
जाने वाले जाते वक़्त जाने क्यूं मुत्मइन होते हैं
इस बेकली ने आज भी गम-ए-असीर बना रखा है।
अब नया शहर है नए दोस्त भी बनाने होंगे अर्पण
पुराने यारों ने तो कब का हमें भुला रखा है।-
रात होने से पहले ये ख्वाब रोज़ आ जाता है,
जैसे तू नहीं आता कभी, तेरा ख्याल आ जाता है।
ये गम- ए- जुदाई भी क्यूं इतना अजीब होता है,
आंखें भर आती है, बिछड़ना जब याद आ जाता है!
मुझे मालूम है तू नहीं आएगा तब्बस्सुम लौटाने कभी,
तस्वीर ही भेज दिया कर, इसमें तेरा क्या जाता है।
तू मुझसे सवाल नहीं करता, कभी कोई जवाब नहीं देता
ऐसा तो तब करते हैं जब किसी के लिए कोई मर जाता है।
कबतलक हम ही बनाएं खुद से ये महल ख्वाबों के,
बोल दे जो है दिल में, बता तू हमसे क्या चाहता है।
इश्क़ से पहले हम भी आकिल थे ज़िन्दगी में यारों,
अब क्या लिखने जाता हूं , और क्या लिख जाता है।-
ये मोहब्बत शब्द है जो बस लिखने में ही प्यारा है,
जो अब समझ आया ऐसा क्यूं है ये उपकार तुम्हारा है।
जिसको चराग समझ कर आंधियों में छोड़ दिया तुमने,
वो आज भी अपनी मां की आंखों में एक सितारा है।
ये जो कल तुम्हारी गलियों में तुम्हें देखने को फिरता था,
आज तुमने कह दिया सभी को कि ये कुछ नहीं आवारा है।
तुम्हारे सितमों पे भला क्या बुरा लिखूं मैं अब,
मैं कातिब हूं मोहब्बत में मोहब्बत लिखना ही सहारा है।
शायद बस ये कमी रही कि कोई कमी नहीं थी मुझमें,
सब अच्छा ही मिल जाए इंसान को ये भी कहा गवारा है।
जो लोग ' बस पढ़ते ही ' होंगे ग़ज़लों को मिरी,
बस ये ही कहते होंगे हाय क्या हुआ ये कितना बेचारा है।-
दिल जैसा चाहता है वैसा मिल क्यूं नहीं जाता उसे,
ये सवाल तेरी तस्वीर देखकर अक्सर पूछता हूं खुद से।-
ये रात बहुत लंबी कटेगी नींद को समझा दिया मैंने,
जो कई मुद्दतों बाद फिर तुम्हारी आज याद आयी है!!-
यूं मोहब्ब्त में दूरियां हमें अच्छी नहीं लगती,
मिरे रकीब में कुछ एक खूबियां हमें अच्छी नहीं लगती।
मैं कई दफा सोचता हूं क्या कमी रही मुझमें,
ये आइने में खड़ी तस्वीर क्यूं हमें अच्छी नहीं लगती।
मेरा सपना है हकीकत में तुम्हारा हाथ पकडूं मैं,
ख़ैर छोड़ो मुझे इतनी अच्छी अपनी तकदीर नहीं लगती।
कभी आओ वक़्त निकालो हमसे मुकाबिल हो तुम,
यूं फोन पे ही सारी मुलाकातें हमें अच्छी नहीं लगती।
ये जो मानूस थे मोहब्बत से हमारी क्यूं जल रहे हैं अब,
मैं तस्वीर बनाऊ तुम्हारी ये बात उन्हें अच्छी नहीं लगती।
जब आयेंगे नशेमन में तुम्हारे वहीं पर हमें रोक लेना तुम,
ये तुमसे बिछड़ने वाली मुलाकातें हमें अच्छी नहीं लगती।-
कई सुबह वो शख्स भूखा ही निकल गया घर से,
ज़रूरी जिसके लिए अपनों का पेट भरना है।
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