Block?
Was it just a block?
No! It was slap on my existence.
That "block" worked as hammer for breaking my "dignity".
That "block" worked as a scissor who cut the clothes named as "self-respect".
That's why it broke me.
A person without existence, dignity and self-respect is nothing.
This is really painful. This is traumatic. Only God knows what am I suffering from.-
बहुत प्यार करता हूँ तुमसे, किसी और को अपना ... read more
Light came
When you entered
in my house
Yes! it brightened up
everything when
You walked into
my house-
कितना कुछ ऐसा था, जो तुम बिल्कुल नहीं खाते थे,
लेकिन मेरे लिए बहुत शौक से बनाते थे।
पसीने से लथपथ होने के बावजूद रसोई में घंटों खड़े रहते थे,
"चख़ कर बताईए, कैसा बना है" मुझसे बस यही कहते थे।
नए डिज़ाइन की कड़छी, कड़ाही, हांडी और न जाने क्या क्या इकठ्ठा कर लिया था,
मेरी रसोई में जूस, शेक, सैसी वॉटर, चाय, कॉफ़ी सबके लिए अलग ग्लास कप वगैरह भर लिया था।
कैसा प्रेम था यार तुम्हारा, तुमने ज़िंदगी में पहली बार खाना बनाया था,
परेशान हो रहे हो या कुछ ख़राब होने पर दुःखी हो, ये कभी नहीं जताया था।
ना कोई उलाहना, ना कोई शिकायतें, सिर्फ़ मेरी पसंद का ख्याल रखते थे,
पूरा दिन लगाने के बावजूद जो कुछ भी बनाते थे, उसका एक दाना भी नहीं चखते थे।
मैं भी कभी कभी कोशिश करती थी तुम्हारे लिए कुछ अच्छा बनाने की,
लेकिन तुमने भी ज़िद पकड़ रखी थी, मुझे महारानी बनाकर बैठाने की।-
थक गई हूँ अब,
मुझसे नहीं रहा जा रहा तुम्हारे बिना।
दो बात कर लो मुझसे,
मैं मुस्कुराई नहीं हूँ 10 जून के बाद से।
एक - एक दिन गिन रही हूँ,
रोज़ थोड़ा - थोड़ा मर रही हूँ।
सीधा मेरी लाश पर फूल चढ़ाने आओगे क्या?-
कितनी शिकायतें हैं तुमसे, जो तुमने किया वो ठीक नहीं था,
तुम बहुत अच्छे से जानते थे कि मेरा सुकून तुम्हारे यहीं था।
किसी और से क्या बात करे, हम तो अपनों से डरने लगे,
ग़ैरों से क्या नाराज़गी, अब तुम ही बर्बाद करने लगे।
तुम्हे पता है कि तुमसे बात न हो तो मैं कितनी बैचेन हो जाती हूँ,
कुछ भी काम करूं, पता नहीं कब तुम्हारी यादों में खो जाती हूँ।
मेरा सुख चैन सुकून तुम सबकुछ ले गये,
ग़ैरों से क्या नाराज़गी, मुझे तो तुम ही धोखा दे गये।
कभी कभी सोचती हूँ कि तुमने मुझसे कभी प्यार किया भी था या नहीं,
तुम तो मुझे ऐसे भूल गए, जैसे तुम मुझे मिले ही नहीं थे कहीं।
तुम्हारे साथ मैंने कितना लंबा सफ़र था पार किया,
ग़ैरों से क्या नाराज़गी, तुमने ही जीते जी मार दिया।-
सुनो!
मैं घर शिफ्ट कर रही हूँ,
यहाँ तुम्हारी बहुत सारी यादें हैं,
लेकिन इसका किराया भी बहुत ज़्यादा है,
जो मेरी मानसिक हालत और
जेब दोनों के लिए ठीक नहीं है।
तुम आओगे क्या?
जब हम कुछ सामान खरीदते थे,
मैं बोलती थी कि
किराये के मकान में इतना मत भरो,
मैं परेशान हो जाऊंगी घर शिफ्ट करने में,
तुम कहते थे कि "मैं हूँ ना"
और अगर मैं उस वक्त पास नहीं भी हुआ,
तो सिर्फ़ एकबार बता देना,
मैं तुरंत आ जाऊंगा।
अब बताऊंगी तो आओगे क्या?
तुम्हारी कुछ किताबें हैं मेरे पास,
कुछ कपड़े और जूते भी हैं,
तुमने कहा था कि किसी दिन ले जाऊंगा,
अब मैं क्या करूं इनका?
क्या तुम कभी आओगे?
ये सब लेकर जाओगे?
ये सब वापिस लेकर जाने के
बहाने से ही आ जाओ ना!
आख़िरी बार मेरी चौखट पर
अपने पावन कदम रख दो ना!-
वो मेरा "सबकुछ" है,
उसके लिए मैं "कुछ नहीं" हूँ ।
उसमें मैंने हर रिश्ता देखा है,
उसका मेरे साथ कोई रिश्ता नहीं हैं।
मेरा सारा वक्त उसके लिए है,
उसके पास मेरे लिए वक्त नहीं है।
मुझे उसकी आवाज़ पसंद है,
मेरी आवाज उसके कानों में चुभती है।
मैं उसकी एक झलक पाने को तरसती हूँ,
वो मुझे कभी नहीं देखना चाहता।
मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ,
वो मुझसे बहुत नफ़रत करता है।
बस यही उन्नीस - बीस का फ़र्क है हम दोनों में।-
तुम्हें लगता है कि मुझसे बात ना करके बहुत बड़ा काम कर रहे हो,
तुम्हें भूल जाऊंगी और आगे बढ़ जाऊंगी, तुम किस ग़लतफहमी में जी रहे हो।
बधाई हो,
तुम्हारी ये कोशिश बहुत बुरी तरीके से नाकामयाब हुई है,
तुम्हारे द्वारा लिए गए ग़लत फैसलों में, एक फ़ैसला ये भी शामिल हुआ है।
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