ज़रा ठहरे से हैं और ज़रा से घबराए
ना जाने कैसी मयुशी है,जो हम दिल में है छुपाए
बातें सारी उलझी सी है इन जालों में
खुदको क्यूं थाम के रखें हैं इन सवालों में
खामोशियों में जी रहे हैं कई दिनों से
डर है इनकी आदत ना लग जाए
खुली बाहों से अपना रहे है
जो नसीब देहलीज पे ले आए
ना सुख दिया शराब के प्यालों ने
ना गम चूपे धुयों के बादलों में
बस वक़्त का पहिया चलता रहा
हम अपनी दुनिया बनाते रहे खयालों में
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