वो भीड़ वाले शहर में भी एक गांव लगती है,, वो कड़ी धूप में जैसे एक छांव लगती है,,वो बहते दरिया समुंद्र में एक नाव लगती है,, उसके कदम जब घर में पड़ जाए ,, तो वो लक्ष्मी के पांव लगती है ,, -
वो भीड़ वाले शहर में भी एक गांव लगती है,, वो कड़ी धूप में जैसे एक छांव लगती है,,वो बहते दरिया समुंद्र में एक नाव लगती है,, उसके कदम जब घर में पड़ जाए ,, तो वो लक्ष्मी के पांव लगती है ,,
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कई ख्वाब सजा लेते हैं,,आंखो ही आंखो में,,एक दुनिया बसा लेते है,,आंखो ही आंखो में ,,तुम्हे अपना बना लेते हैं,, -
कई ख्वाब सजा लेते हैं,,आंखो ही आंखो में,,एक दुनिया बसा लेते है,,आंखो ही आंखो में ,,तुम्हे अपना बना लेते हैं,,
इसलिए आंखें हुई है नम,और तड़प रहे हैं हम,,, -
इसलिए आंखें हुई है नम,और तड़प रहे हैं हम,,,
कब तक रखोगे दूसरे की आस -
कब तक रखोगे दूसरे की आस
अब न वो मिट्टी के घर रहे,और न मिट्टी से जुड़े लोग,इस मिट्टी से ही तो जन्मे,और मिट्टी में ही मिल जायेंगे,फिर क्यों बदल गए लोग, -
अब न वो मिट्टी के घर रहे,और न मिट्टी से जुड़े लोग,इस मिट्टी से ही तो जन्मे,और मिट्टी में ही मिल जायेंगे,फिर क्यों बदल गए लोग,
और में लोभ माया में बह गया, -
और में लोभ माया में बह गया,
अब मुझे बुरा नही लगता,मेरा दर्द जमाना पढ़ता है,में बयां करता हूं हाले दर्द,जमाना वाह वाह करता है, -
अब मुझे बुरा नही लगता,मेरा दर्द जमाना पढ़ता है,में बयां करता हूं हाले दर्द,जमाना वाह वाह करता है,
संभाल ले वो मुझको "गिरने" से पहले,समेट ले वो मुझे "बिखरने" से पहले,लौट आए वो उम्र "ढलने" से पहले अपना ले वो मुझे "मरने" से पहले, -
संभाल ले वो मुझको "गिरने" से पहले,समेट ले वो मुझे "बिखरने" से पहले,लौट आए वो उम्र "ढलने" से पहले अपना ले वो मुझे "मरने" से पहले,
चल आज तू भटकता ही सही,तेरे हिस्से कुछ ठोकर कुछ छाले भी होंगे,,अगर टिका रहा तू अपने पथ पर तो,,एक दिन तेरे पीछे लोगों के काफिले भी होंगे,, -
चल आज तू भटकता ही सही,तेरे हिस्से कुछ ठोकर कुछ छाले भी होंगे,,अगर टिका रहा तू अपने पथ पर तो,,एक दिन तेरे पीछे लोगों के काफिले भी होंगे,,
हम दिन के उजालों के पीछे,की हर बात को लिखने चले थे,काली थी कलम और काली स्याही,हम काले पन्नो पे अपने काले ,कारनामों की कहानी लिखने चले थे, -
हम दिन के उजालों के पीछे,की हर बात को लिखने चले थे,काली थी कलम और काली स्याही,हम काले पन्नो पे अपने काले ,कारनामों की कहानी लिखने चले थे,