Just another chronicle
And here the heads fickle
Quite a pickle
Calling for a conflict
So that resets the law of nature
And glorifying a new creature
For ages to come
It's all a rewind
Just the faces are replaced
That's how this game is aced
Again something to just praise
Upto the swansong
They just sing that again & again
It's all the same
What changes are the faces and name
All of it is there to last for asane
Still it's repeated again and again-
अपने दिल के दर्द की दवा भी उधार ... read more
बातें बनाने में माहिर हूँ मैं
फिर भी यह कहें शायर हूँ मैं
यूँ तो कायर हूँ मैं मगर
इनकी किताब में
शायर के तौर पर
दायर हूँ मैं
ख़ुद से ख़फ़ा
और ख़ुद से ही करता रहूँ सुलह
रात भर जागूँ इस जंग में
फिर ढूँढूँ गुज़री रात को अगली सुबह
पाऊँ इसमें अपनी रफ़ा
क्यूंकि है इसमें मेरी अपनी रज़ा
वरना ये भी बन जाए एक सितम एक सज़ा
हाँ आज फिर एक मद्दाह से मुलाक़ात हुई
वो थोड़ा अजात था
क्यूंकि जितना उसने बयाँ किया
ना मैं उतना ख़ास था
उसको ना यह एहसास था
मागत मुझको तो आभास था
फिर भी उसके शब्दों के लिए मन में आभार था
लिखना शुरू किया था
क्यूंकि मुझमें कहीं अजार था
बस यही इस लिखावट का आधार था ।
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होने थे जितने खेल मुक़द्दर के हो गए
हम टूटी नाव ले के समुंदर के हो गए
ख़ुशबू हमारे हाथ को छू कर गुज़र गयी
हम फूल सब को बाँटकर पत्थर के हो गए
बस कुछ अखर बाक़ी जो रह गए
उनमे कुछ बयान हुए
और कुछ मुझमें ही रह गए
हाँ थोड़ी ख़ुशियाँ समेटी
और कुछ दर्द भी हाथ लगे
अब आबाद सा लगे
थोड़ा आज़ाद सा लगे
बर्बाद होकर अब
ख़ुद से ही यह सब बस
एक संवाद सा लगे
अब मैं ही मुझको बस
अपना इकलौता हमज़ाद सा लगे-
आधी रात में महताब देखा
एक हसीन ख़्वाब देखा
जहाँ ना कोई रोता हो
बस ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हो
एक ऐसा ज़हान देखा
जहाँ बस मैं मुस्कुरा सकूँ
चाहे कुछ पलों के लिए ही सही
मगर थोड़ा तो ख़ुद के लिए
ख़ुद से एक बार जिरह करूँ
इस दर्द में थोड़ा तो कराह सकूँ
ख़ुद के आंसुओं से आज
ख़ुद को खुल कर भीगा सकूँ
इस दुनिया के लिए ना सही
मगर ख़ुद के लिए तो ख़ुशिया पा सकूँ
नींद ना आए तो ख़ुद ही
ख़ुद को सुला सकूँ
भूख ना हो चाहे
फिर भी माँ के जैसे
ख़ुद को पेट भर खिला सकूँ
आधी रात में महताब देखा
एक हसीन ख़्वाब देखा
जहाँ ना कोई रोता हो
बस ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हो
एक ऐसा ज़हान देखा-
ऐसा तो नहीं है कि तुझसे प्यार नहीं
मगर हाँ अब तुझ पर एतबार नहीं
अब आसार नहीं
वो पहले वाले रिश्तों के
मगर हाँ शायद आज भी मेरे मन में तो है सवाल कई
जिनके अब तक नहीं ढूँढ पाया तुझमें जवाब कहीं
हम तो असल है
चेहरों पर नक़ाब नहीं
मगर मन में है सैलाब कहीं
जो है शांत नहीं
शायद ये सैलाब भी थम जाए
एक वक़्त के उपरांत कहीं
मुझे नहीं मालूम कितना मेरा ग़लत और कितना तेरा सही
मगर एक ख़लिश फिर भी है मुझमें कहीं
मुझे मालूम नहीं
कितना ग़लत और कितना सही
बस कहना था यही
बदल रहा तू
या मैं हूँ ग़लत और
तू आज भी है क्या वही
जो था पहले कभी
या फिर जो मैं पढ़ रहा हूँ तुझे आज
तुझमें आये है वो बदलाव कहीं ?-
मुंतशिर से यह कुछ टुकड़े
रह गये जो वरक़ बाक़ी
काफ़ी अभी तेरे मेरे फ़र्क़ बाक़ी
इस फ़ासले में कुछ मरक बाक़ी
यूँ तो बस अब अवाक हूँ
जैसे अब बस बन चला ख़ाक हूँ
जैसे मैं जलकर सुलघती राख हूँ
बस कुछ ऐसे मैं आज भी क्यों जीवंत
कब को हो चुका यूँ तो मेरा अंत
फिर भी क्यों जाने जैसे अभी भी अनंत
जब कि दिल लगा लिया है मौत से
मगर जीवन की डोर नहीं टूटती
क्यों ज़िंदगी अब सासें छीनकर मेरी
मुझसे नहीं रूठती
क्यों यह चीख मेरी
मौत के घर तक नहीं गूंजती-
क्या मैं तृप्त हूँ
क्या मैं अलंकृत हूँ
या असमर्थ हूँ
या बस कविता का एक अखर हूँ
मैं संपूर्ण हूँ
या अपूर्ण हूँ
दया हूँ या दंड हूँ
मैं कोई आभास हूँ
या अभाव हूँ
मैं कोई स्थायी निवास हूँ
या बस बदलता लिबास हूँ
मुझमें भी है डर कई
या बेबाक़ हूँ
यूँ तो आज़ाद हूँ
मगर क्या आबाद हूँ
पूर्ण हूँ
या आधा हूँ
शायद एक बाधा हूँ
या कारण दूसरा कोई
जिससे मैं अंजाना हूँ
क्या मैं सज़ा हूँ
या किसी की रज़ा हूँ
या कोई ख़ास वजह हूँ
या फिर बस बेवजह हूँ ?-
कोताही है वक़्त की
और कुछ इस बहते रक्त की
समय ने ही सांसें ज़ब्त की
ऐसी भी क्या अरज़ू जो
इंतक़ाम आने पर भी इंतिहान पर हो
मगर फिर भी अधूरी
कुछ वक़्त का ऐसा तक़ाज़ा रहा
बाक़ी कुछ ग़लत हमारा अंदाज़ा रहा
ऐसा ही कुछ बस क़िस्मत का
यह खेल सारा रहा
हुनर ए धोखा अन्दाज़ तुम्हारा रहा
मासूम ए दिल हमारा रहा
आबाद व आज़ाद हुई तुम और
क़तल ए इश्क़ हमारा रहा ।-
इतने थे जो ग़म
जाने क्यूँ इन में इतना खो गए हम
क्या पाया खो कर इनमें वो तो मालूम नहीं
मगर काफ़ी कुछ खोया है
हाँ दिल भी यह रोया है
तड़पते रहे बस तेरे लिये
यूँ ही तत्पर रहे
मगर ना दिखे तेरे निशान आस पास कहीं
क्यों हम जाने फिर भी उनको खोजते रहे
बस तुम्हारे बारे में अब भी सोचते रहे
आंसूँ भी बस आँखें भिगोते रहे
फिर हम उनको भी पोंछते रहे
इस सब के बाद भी कोई जो पूछे तेरे बारे में
मुस्कुरा देते थे बस
बताकर तुम्हें एक हसीन सपना
बस बिछड़े हो मगर आज भी
जैसा हो तुम कोई मेरा अपना-
तुम सा कौन कहाँ
बस ज़िक्र तुम्हारा अब महफ़िल में
यादें तुम्हारी तनह दिल में
अब हमारे बीच की दूरियाँ सारी
तुम्हारे इस चिलमन से
किससे भी तुम्हारे सुनाये अंजुमन में
बस यादें और सपने सारे इस मन में
वो ख़ुशबू और कहाँ कहीं जो तुम्हारे तन बदन में
फिर मिलेंगे शायद जो उसने चाहा तो
इस जनम नहीं तो किसी और जनम में
अगली बार शायद रूप में सनम के
अग़ोशियों में मेरे बदन के ।-