Arjun jangid   (Arjun Ram Jangid)
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Farmer, businessman
Joined 29 April 2022


Farmer, businessman
Joined 29 April 2022
15 HOURS AGO

मक्कारी की गठरी बांध मैं चला अपने बेईमानी से दूर,
खूब दुनियां को लुटा हैं,अब लूट जाने की बारी हैं, देख तमाशा दुनियां का मैं एक तपस्वी बन जाऊं,
न छूटे यह मक्कारी की गठरी ,बांध चला मैं ईमानदारी की और अब सोचा सुख चैन की जिदंगी जी लूंगा,इस गठरी के आधार पर,
जब खुली कपट, मक्कारी की गठरी तो हाथ पाव भी कांप गए।
यही दुनियां की रीत/चक्र हैं की जो बोयेंगे वहीं पाओंगे।

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18 APR AT 0:16

घर में पड़े जो डाका तो कोई न देखत है
दूर शहर से आवाज भी आए तो हल्ला मचाते लोग हैं।

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16 APR AT 15:33

सूना तो था तेरे शहर के लोग बड़े बेपरवाह बहुत मतलबी हैं, पर देख कभी मेरे गांव आकार तुझे यहां भी कम नहीं मिलेंगे।

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10 APR AT 11:25

मायूस ना कर ऐ..जिंदगी तेरे भी कर्जदार रहेंगे
आज नहीं तो कल... तेरे भी शुक्रगुजार रहेगें।

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9 APR AT 17:40

नित नई आफ़त रा... खरीदार बण्या बैठा यहां
कदी-कदी लागे ईण धरती माथे बोझ बण्या बैठा यहां

ऐ नौकरी थारे ईण चक्कर में कित्तो कुछ छुट ग्यौ है बैरण
आज गाॅंव छोड़...ईण शहर में किरायेदार बण्या बैठा यहां।

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14 MAR AT 11:12

किसी भी क्षेत्र का भाग्य, दुर्भाग्य सिर्फ जन प्रतिनिधियों के हाथ में होता हैं "या तो वे अनजान बनने का ढोंग करते हैं या भी जागरूकता नाम की मानसिकता ही नहीं हैं लोगों में"

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8 MAR AT 12:54

महान सबको बनना है पर होशियारी में भी कपट हैं
जो बने महान् वो बलिदानी थे यह सच उन्हें कौन बताएं?

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2 MAR AT 10:50

जब बात...इन्सानियत की आए तो?
डिग्रीया,दौलत, पद जेब में ही रहने दो।

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27 FEB AT 11:44

तकदीर का रोना, भविष्य की तस्वीर को धुंधला कर देता हैं।

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18 FEB AT 19:15

संभल कर रख रिश्ते... यह इंसानों की बस्ती हैं
यहां तो रब को भी आज़मा लेते है फिर तेरी क्या हस्ती है।

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