अफ़ीमी आखें शरबती गाल और ये शराबी लब,
खुदा ही जाने नशे में तुम हो या तुम में नशा ।।-
तारीखों में बंध गया है अब, इज़हारे मोहब्बत भी ,
रोज़ प्यार जताने की अब किसी के पास फ़ुरसत कहाँ ।।-
रुख़्शार पर है रंग-ए-हया का फ़रोग़ आज ,
बोशे का नाम मैं ने लिया और निखर वो गए ।।-
आपका दीदार और वो भी, आँखों में आँखें डालकर ,
ये कोशिश कलम से बयाँ करना भी, मेरे बस की बात नहीं ।।-
आज गुमनाम और बेरोज़गार हूँ तो तुम सब फासला रखते हो मुझसे ,
कल जब फिर मशहूर हो जाऊंगा तो तुम सब मुझसे कोई रिश्ता निकाल लेना...!!-
दिल से दिल तक मुलाक़ात हो जाये ,
आज हसीन मोहब्बत की रोशन रात हो जाये ।।-
जिस्म को चाहना ही गर मूहब्बत है तो ,
सबसे ज्यादा आशिक वेश्या के होते ।।-
मुहब्बत कोई बिस्तर नहीं , मगर उस पर सोया जाता है ,
कुंवारे होंठ अक्सर अपने पहले बोसे पर बहक जाया करते हैं ।।
तब अर्श हिल जाता है , तभी ज़लज़ले आते हैं ,
संगमरमर से बदन जब हवस की आग़ोश में पहुंच जाता है ।।
तब मुहब्बत इबादत नहीं, ग़िलाज़त बन जाती है ,
मूहब्बत कोई बिस्तर नही , मगर उस पर सोया जाता है ।।
बच्चों की चाहत में माँ बाप ईश्वर अल्लाह से भीख मांगते है ,
कहीं नवजात बच्चे नालों और कचरों के ढेर पर मिल जाते है ।।
कुंवारी कोख में पलने वाले फूल , खिलने से पहले मसल दिए जाते हैं ,
और कहते है कि ज़रूरत नही थी अभी , गलती से आ जाते है ।।
इंसानियत ऐसी लाशें देखकर लरज़ उठती है मगर ,
हवस मुहब्बत बनी ,इन लाशों पर नाचती है ।।-