नज़र और नज़रिए की बात थी
कहने को मामूली कोई बात थी
किसी के लिए बस टूटता एक तारा
किसी के लिए मन्नतों की बात थी
परेशान है कुछ दिनों से एक बुलबुल
ना जाने खामोशी की क्या बात थी
उसको हस के एक रोज़ चांद कह दिया
भला इसमें छिपने की कोई बात थी?
मिला मुदत्तों बाद कोई तो बहाना लिए
कह रहा था ये बात थी वो बात थी
तंग आकर एक रूह जिस्म भूल गया
अब ख़ुदा ही जाने के क्या बात थी ।।-
नज़र में निगाह ए मुहब्बत नहीं मिलती
लोग मिल जाएं, पर पहली मुहब्बत नहीं मिलती
मेरे आईने ने मुझको कहीं क़ैद कर रखा है
मेरे अक्स की अब मुझसे आदत नहीं मिलती
एक मैं हूं की, बात करने से कतराता हूं
मेरे दोस्तों को भी, मगर फुरसत नहीं मिलती
उससे नाराज़गी में भी अब ये आलम है
उसी की हसी के बिना राहत नहीं मिलती
कितनी खुशफहमी का नाम है "इश्क़" लेकिन,
इश्क़ के बाद, ऐबों को रियायत नहीं मिलती ।।-
हद से ज़्यादा जो मुझको मुहब्बत हो रही
अदा बिछड़ने की कोई रिवायत हो रही है
एक मुकाम पे आकर सब साथ छोड़ देते हैं
मुझको लगता है जब उनकी आदत हो रही है ।।-
Wo ek lamha jo aankhoñ me thahar gya hai
Mujhko malum hai wo waqt guzar gya hai,
Tum larazte hotoñ se jo bayañ na kar paye
Mera dil kai dafa us hashar tak gya hai !!-
लहजे के साथ लोग भी बदल जाते हैं
आज कल ऐसे ही दिन बदल जाते हैं
एक कतरे को भी कोई शए कितना तड़पती है
नदी के पास वाले घर भी मगर डूब जाते हैं
तिलती फूल पे मरती है, ऐसी कोई बात नहीं
हर मुलाक़ात यहां मतलब से किए जाते हैं
दूर चमकता सितारा जो है कहकशा में
फलक से हर रोज़ उसे मांगने जाते हैं
ढूंढ लो यारों, खुश रहने का बहाना कोई
परेशान जितना हो, लोग उतना ही किए जाते हैं ।।-
हस्ब ए दुनिया, दिल को चलाने चले थे
हम भी ये ज़ोर आज़माने चले थे,
है कमज़ोर बहुत ये नौ इश्क़
ख्वामख्वाह आतिशों से डराने चले थे,
एक क़तरा मुहब्बत लिए कितने गुरूर में हैं
ना अहली में समंदर को जलाने चले थे,
शिकवे कुछ भी नहीं उस ज़माने से
मुझको बुरा ही बुरा जो बताने चले थे
सबब ए रंज तो वो लोग हैं
यकीन को यकीन जो दिलाने चले थे ।।-
Jis tarah ke ishq me khwaab dikhaye jate hain
Itne jhoot pe to muqadme chalaye jate hain !!-
Na rakhi aankhoñ ne shart koi, na zehan ne ki koi hoshiyari,
Bante gye mareez e ishq, barhti rhi jyoñ jyoñ beqarari !!-
लाज़मी है कि रंज लिख रहा हूं
क्या कहा? कोई तंज़ लिख रहा हूं
चढ़ कर मीनार पर कोई चीख रहा था
सुनो! क्या मैं दिख रहा हूं। ????
देख के हालत हर इंसान की यहां
ईमान बोल उठा, मैं बिक रहा हूं
लोगों उजड़ी हैं बस्तियां तो तूफ़ान में
क्या हुआ? मैं ताज में तो अच्छा दिख रहा हूं ।।-
Wo jo kahta hai, sb sach hi to lagta hai
'Arsh'! Sambhal jao, muamla dil ka lagta hai !!-