Archna Sharma   (Anvi)
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Joined 15 March 2019


Joined 15 March 2019
12 MAR 2021 AT 20:02

अरसे से ढूँढ रही थी खुद को
आज तेरी यादों के पुलिंदे में पाया खुद को

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12 MAR 2021 AT 19:55

तेरे वादे, तेरी यादें और तेरा गम ,
यूँ सहेजे हैं, ज्यूँ जेवर सहेजे कोई ।

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6 MAR 2021 AT 19:50

सूजी हुई आँखों और दिल के,
जख्मों से रिसते लहू के बाद भी,
चेहरे पर सजी मुस्कान ।
कभी चूल्हे कभी आँगन ,
कभी दालान में घूँघट के बाद भी,
बाहर खेलते नौनिहालों पर ध्यान।
सबको खिलाकर ,सुलाकर ,
सब कुछ समेटने के बाद भी
नींद में भी द्वार पर लगे कान ।
परायी,कामचोर या फिजूलखर्च
के तमगों से सुशोभित होने के बाद भी,
सबको देना समुचित सम्मान ।
सचमुच !
औरत होना इतना भी नहीं आसान।


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2 MAR 2021 AT 12:18

आज भी झुक जाती हूँ
दायीं करवट, देखो !
तेरे बोसे के बिना ,
मेरा दिन जो शुरू नहीं होता

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1 MAR 2021 AT 19:56

आज भी अलसुबह
हाथ तुमको खोजता है।
ये दिल मानता ही नहीं
कि तुम लौटोगे नहीं अब।

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20 FEB 2021 AT 10:11

क्यूँकि
तर्क के मूल में है ज्ञान ,
जबकि बहस प्रतीक अज्ञानता का ।
तर्क से निखर सकता है व्यक्तित्व तुम्हारा ,
जबकि बहस बढ़ाएगी व्यर्थ अहंकार तुम्हारा
तर्क से पा सकते हो सम्मान नजरों में ,
किन्तु बहस अंततः गिरा देगी नज़रों से।

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15 FEB 2021 AT 14:39

नहीं हो सकता
ये सफ़र
मुकम्मल
जबकि मंजिल
दोनों की वही
जीवन नदी के परलीपार ।

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14 FEB 2021 AT 19:06

चाह नहीं कि आह मिले या वाह मिले
इन शब्दों में जिन्दा हूँ मैं
बस इन शब्दों को राह मिले

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2 MAY 2020 AT 0:32

ये तारीखें क्यूँ डसती हैं मुझे साँपों की तरह
क्यूँ ले जाती हैं फिर उन्हीं गलियारों में
ड़ाल देती हैं यादों की बेड़ियाँ पाओं में
वक़्त से मिले हर घाव को सहकर
मुस्करा कर आगे बढ़ने की कोशिश
क्या कोई दोष है मेरा ।

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27 APR 2020 AT 19:20

मैं भूलती हूँ नाम अक्सर,
याद नहीं रहते चेहरे भी मुझको।
पर याद रहता है लहज़ा उसका ,
कि कैसे कोई मुख़ातिब था मुझसे।
बस इतना सा है तआरुफ़ मेरा
कि मैं चेहरा-शनास नहीं
लहज़ा-शनास हूँ ।

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