सूजी हुई आँखों और दिल के,
जख्मों से रिसते लहू के बाद भी,
चेहरे पर सजी मुस्कान ।
कभी चूल्हे कभी आँगन ,
कभी दालान में घूँघट के बाद भी,
बाहर खेलते नौनिहालों पर ध्यान।
सबको खिलाकर ,सुलाकर ,
सब कुछ समेटने के बाद भी
नींद में भी द्वार पर लगे कान ।
परायी,कामचोर या फिजूलखर्च
के तमगों से सुशोभित होने के बाद भी,
सबको देना समुचित सम्मान ।
सचमुच !
औरत होना इतना भी नहीं आसान।
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