ARCHIT KHANNA   (Archit Khanna)
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Joined 25 September 2021


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Joined 25 September 2021
11 MAY AT 22:42

....— % &....— % &....— % &....— % &....— % &प्रेम जो मुझको सदा देती है,
जाऊं दूर तो वही सदा देती है...

आंखों के काजल से 'अरू' आंखें सजा देती है,
सताने वाले को मां सज़ा देती है...

लगूँ रोने तो आब-ए-चश्म बहा देती है,
लेटा गोदी में पल्लू से हवा देती है...

है तूफ़ां के चराग़, ऐ आंधी! नहीं बुझने वाले,
वो बवंडर है कि तुझे राख बना देती है...

मैं दश्त-ए-जुनूँ वो आब-ए-ख़िज़्र,
की बारिश या'नी मुझ पे बरसा देती है...

हम शो'ले कि जो छू ले तो बना दे भांप,
वो बारूद है जो नाम-ओ-निशां मिटा देती है...— % &

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11 MAY AT 20:14

.....— % &....— % &.....— % &....— % &.....— % &हम कहते हैं कि क्या देखती है,
मिरी आंखों में जब मां देखती है...

झाड़ती है कपड़ों से गर्द मिरे,
फिर छू-छू के सर-ओ-पा देखती है...

वो दरख़्त है मैं पत्ता हूं,
वो नीड़ है जिस से चिड़िया देखती है...

झांकते हैं झड़ते पत्ते भी,
वो ज़मीं है जो ख़िज़ाँ देखती है...

जैसे समेटे सीपी मोती को,
चूमती पेशानी जब तन्हां देखती है...

तू महताब अरु तो है जुगनू,
इक चांदनी है जो दीया देखती है...— % &

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6 MAY AT 23:53

है क्या सितम बीमार-ए-ग़म ही लिखेंगे हम,
दो किरदार हमारे तुम्हारे चलो कहानी लिखेंगे हम...

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6 MAY AT 23:23

जैसे परिंदे वीरान मकाँ से जाए...
मौसम-ए-गुल ख़िज़ाँ से जाए...

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4 MAY AT 18:09

बहुत बोलता था मैं ना जाने है अब ख़ामोशी पसंद,
मुस्कान या'नी ये उलझन लबों पर जो है काग़ज़ी पसंद।

है हादिसा है हादिसे का ही हाल ये,
किसको नही आसमां पसंद आख़िर कौन किसको नही रोशनी पसंद?

आए मय-ख़ाने में 'आलम-ए-ख़याल के चलते,
हमको नही शराब पसंद साक़ी हमको कहां शराबी पसंद।

उड़ा रही है ख़ुशबू बाद-ए-शिमाल 'अरु'
हां है जो ख़ामोश, कभी थी मुझको बातूनी पसंद।

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27 APR AT 11:38

तिरी याद और सुन ख़यालों के मारे,
शराब और हम है प्यालों के मारे...

बुझी शमा कहती है अंधेरों की दास्तां,
मिरे चराग़ भी हैं उजालों के मारे...

हूँ मैं थक चुका पर है बाक़ी जज़्बा-ए-दिल,
गई गुज़र शाम-ए-फ़िराक़ मिसालों के मारे...

क्या कहूं क्यों हैं जलते जनाज़े 'अरु'
यहां बे-गुनाह 'आशिक़ मरे सवालों के मारे...

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25 APR AT 23:34

कौन है जो दरमियाँ है,
यानि ये तुम हो जो दरमियाँ हो...

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20 APR AT 17:33

समंदर लौट जाएगा थकने के बाद,
उबरेंगे मोती भी चमकने के बाद...

तोड़ तो दम दिया हवाओं ने भी,
बुझ चुके चराग़ जलने के बाद...

यक़ीं किया और टूटा यक़ीं,
मोम-दिल पत्थर हो चुका पिघलने के बाद...

है कौन फ़िदा रुख़-ए-ज़र्द पर मिरे?
है क्यों क़फ़स परिंदा उड़ने के बाद...

बीती उम्र पड़े-पड़े कांटों पर,
मख़मलीं नींद कहां मख़मल पर पड़ने के बाद...

हादसे हुए हैं कई अरु,
हूं हादिसा इक मैं भी तिरे बिछड़ने के बाद...

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5 APR AT 2:40

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5 APR AT 1:26

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