वहां-वहां हर्ष की किरणें अंधकार को भेदकर जीवन को धीरे-धीरे झिलमिलाती है, जहां संघर्ष है आरम्भ हमेशा रहस्यमय परिस्थितियो और अनगिनत पीड़ाओं से गुज़र कर अंत कि ओर हास्य भरा होता हैं।
व्यर्थ नहीं हूं मैं समाज में सीमित हूं, आज़ाद होकर भी बंदिशों की कैदी हूं, कहने को कदम से कदम मिलाकर चलूं वो राही हूं, पुरस्कृत का काला साया कलंकित भी मैं हूं
सौंदर्ययुक्त वर्णमालाओं कि त्रुटियों की शृंखला भी मैं हूं, हूनर से आगे बढूं चरित्रहीनता का अंधकारमय किस्सा भी मैं हूं।
आसमां और जमीन भी मैं हूं अंधकार, रोशनी कि छाया भी मैं हूं लहरों सी शांत तूफान का बवंडर भी मैं हूं शब्दों में पिरो लो फिर भी आज़ाद हूं मैं ख़्वाबों में सजाओगे फिर भी बांध न पाओगे
जिंदगी के सफ़र की वो ऊंची उड़ान हूं मैं " कल्पना " हूं मैं