भगवान हें या फिर नहीं
शुरू हुआ मन का एक द्वंद्व अभी
शायद मिलेंगे संसार मे ही कहीं
मन की उच्चतम कामनाएँ सभी पूरी होंगी वहीँ
ढूँढा मगर पाया नहीं संसार मे कहीं
अदृश्य हें वो शायद यहीं कहीं
या फिर निश्चय ही हैं परलोक मे कहीं
पर तकलीफ तो मन के चैन की थी
मन के लिए सर्वोत्तम क्या हे ये जानने की थी
मन की समस्याओं के समाधान की थी
फिर पाया निर्मल , शांत , मस्त व समझदार मन ही तो है भगवान
बाहर नहीं अन्तर मे ही है जो विराजमान
चेतना की उच्चतम ऊंचाई ही तो हैं भगवान
— % &नास्तिकता नक़ली भगवान को पूजने मे हे
और आस्तिकता सत्य की खोज मे हे
और सत्य लोग तो भीतर के भगवान के ही अनुयायी हैं
पर फिर ये मंदिर और मूर्तियां किसलिए हैं
भोर की पूजा , तिलक और कंठी किसलिए हे
क्यूँ पुरातन से कामनाओं की पूर्तियाँ मंदिरों मे ही हें
तब पाया मन को शांत व शुद्ध जो करे वो ही मंदिर है
सर्वप्रथम उच्चतम के आगे नतमस्तक हों वही भोर की पूजा है
मन की बैचेनी को मिटाने मे सहायक ही तो तिलक और कंठी हैं
मंदिरों मे जाकर कामनाओं की पूर्ति नहीं अपितु कामनाओं से मुक्ति ही सही धर्म है
औए सही धर्म ही भगवान हैं — % &-
प्राणों से रह रह कर उठती हे क्यूँ ये चीख
क्यूँ हर जीव मुक्त जीवन की मांग रहा हे भीख
क्यूँ चौराहे पर खडा ताक रहा हे वो हर रास्ता
क्यूँ लड़ रहा हे खुदसे आखिर मंजिल पाने का कौनसा हे सही रास्ता
राह कोई सी भी पकड़ क्या मिलेगी सही मंजिल कभी
आजाद परिंदे की तरह क्या उड़ पाऊंगी कभी
क्या भेदभाव मुक्त जीवन देख पाऊंगी कभी
क्या सच मे मनभर ईश्वर से मिल पाऊंगी कभी
क्या मिलेगा सच्चा सुकून जाकर वहाँ
क्या मिल पाएगा बंधन मुक्त जीवन वहां
क्या मिलेगा सच्चिदानंद वहाँ
क्या करुणा से भरपूर जीवन होगा वहाँ
— % &
क्या होली दिवाली ईद हर पर्व सभी मिलकर मनाएंगे वहाँ
क्या हर तरह के परिधानों को अपनाएंगे वहाँ
क्या स्त्री और पुरुष मे समतर जीवन होगा वहाँ
क्या रंग जाती धर्म से भेदभाव मुक्त जीवन होगा वहाँ
क्यूँ न में स्वयं ही ऐसे जीवन का निर्माण करूँ
आह्वान करूँ उस जीवन का जिसमें करुणा , मानवता,सत्यता,बंधनमुक्त विचार,किताबों से प्यार और जीवन के प्रति आनंद ही आनंद हो।।
— % &-
मुझे एक मनुष्य शरीर में जन्म दिया
मुझे कृत्य कृत्य किया
उस पर स्त्री का शरीर दिया
मुझे और भी कृतज्ञ किया
जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई
जब कुछ और मुझमें समझ बढ़ी
प्रश्न उठा क्यों आखिर यहां भेजी गई
क्यों नहीं भेजा मुझे बुद्धिहीन
क्यों नहीं भेजा मुझे विचारहीन
क्यों भेजी गई इस चेतन मन से
समझ गई हूँ अब सब अच्छे से
मुक्त जीवन इसी संसार में संभव है
मुश्किल है पर असंभव तो नहीं है
मुक्ति उस अहम से, मुक्ति उस निरंतर डर से
मुक्ति उस लालच से, मुक्ति उन बंधनों से
मुक्ति आंतरिक दरिद्रता से, उस गुलामी से
सब संभव है, सब यहीं है।
माया भ्रमित तो करती है, पर जब जब सच का साथ देती गई
कृष्ण, तुझे मैं अपने और पास, और अपने अंतस में ही पाती गई-
अरे किसने तुमसे कहा प्राप्ति में ही सुख है,
विषय का मिल जाना ही सुख का रस है।
ज़रा सा मिला और ख़ुश,
छोटा सा मिला तो तृप्त।
किसने कहा आख़िर हम नीची उड़ान के लिए जन्मे हैं?
साधारण जीवन जीना,
और हर हालात में खुश रहना।
किसने कहा हमारा जीवन धूल की तरह सतही रहे?
बाहरी परिस्थिति को अंतःस्थिति बना लेना,
संतोषम् परम सुखम् को जीवन का आधार बना लेना।
किसने कहा आसमान पाने का संघर्ष बुरा है?
शूद्रता, संकीर्णता और छुटपन से भरी सोच,
डर, हिचक और स्वार्थ से भरा मन।
किसने कहा जीवन में नया बदलाव लाना और जीवन को बदलना ग़लत है?
आख़िर बताओ तो किसने कहा,
बड़े-बड़े सपने और बड़ी-बड़ी ख़ुशियाँ तुम्हारे लिए नहीं हैं?-
पता तो करो दोस्त, गरीब कौन है,
जो हर पल माँगे ही जा रहा है,
जो “और चाहिए” की रट लगाए जा रहा है।
जो सबसे ज़्यादा भूख को महसूस कर रहा है,
जिसकी ज़रूरतें कम ही नहीं हो रही हैं।
जिसमें तसल्ली का नामो-निशान नहीं है,
जो खुल के हँस नहीं पा रहा है।
जो यह नहीं मिला, वो नहीं मिला—सोचता ही जा रहा है,
जो समाज के पैमानों में खुद को आँक रहा है।
जो ज़रूरतों और चाहतों की सीमा तय नहीं कर पा रहा है।
इन सबका मिला-जुला रूप ही तो गरीबी का स्वरूप है,
वरना अमीरी तो बस एक नज़रिया है।-
अध्यात्म की क्या ज़रूरत है?
खाना, कपड़ा, मकान ही तो सबसे बड़ी दौलत है।
ज्ञान से जीवन रोशन हो जाता है,
फिर क्यों अध्यात्मिकता जीवन का सार कहलाता है?”
अध्यात्म वो रस है, जो तरलता लाए,
मिठास और माधुर्य हर दिल में बसाए।
जीवन का पानी, नमक कहलाए,
हर कड़वाहट को ये चुपचाप हटाए।
देवी-देवता से ये परे है कहीं,
स्वर्ग नर्क से तो इसे कुछ लेना-देना ही नहीं।
सत्य, करुणा, प्रेम का पाठ पढ़ाए,
निडरता और सच्ची निष्ठा हर मन में सजाए।
स्वघोषित अध्यात्मिक क्या सच ऐसा होता है?
क्या सच झूठ में निष्पक्ष रहता है?
दुख देखकर जो चुपचाप जाए,
जिस पर भरोसा ही नहीं, क्या ऐसा कोई अध्यात्मिक कहलाए?
मन की शांति और चैन का रास्ता,
गलत विचारों से दूर का वास्ता।
जीवन को सुंदर सरल बनाए,
अध्यात्म का मर्म यही सिखाए।
जो जीवन में अध्यात्म को अपनाता है,
वो दिल से हर दर्द को मिटाता है।
सच्चाई की राह पर जो चलता जाए,
अपने मन की गहराई में प्रेम पाए।
अध्यात्म वो नूर है, जो अंधेरे को भेदे,
हर बुराई से इंसान को बचाए।
इंसान चाहे कोई भी विधि अपनाए,
बस अध्यात्मिकता में पूरा इंसान बन जाए।-
हर तरह की उत्तेजना और डर
ये आपको सदा गलत दिशा ही भगाएंगे
ये आपको सोचने का , विचार का और ध्यान का मौका ही नहीं देते।।
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क्या सबको एक जैसा प्यार बांट पाते हो?
क्या बिना कुछ अधिक रखे, सबमें खुशी बाँट सकते हो?
क्या कम बोलकर, अधिक सुनने का हुनर रखते हो?
क्या दूसरों के अंधकार में तुम दीप जलाना जानते हो?
क्या दोस्तों को उनका सच कहने का साहस रखते हो?
क्या सिर्फ़ मुक्ति की चाह में ही कदम बढ़ाते हो?
क्या कृष्ण रूपी ज्ञान अपने भीतर उतार पाए हो?
क्या अपने बंधनों को निरंतर देख, उन्हें तोड़ पाए हो?
क्या रिश्तों में बस देना ही देना जानते हो?
क्या कुछ क्षण मौन रह, शांति को अपना बना पाते हो?
ज़िंदगी छोटी है, यही सच है दोस्त,
अगर ऐसे नहीं जिए, तो क्या सच में जीना जानते हो?-
माँ सिर्फ़ माँ है, जैसी भी हे पर माँ ही है,
तेरे दर्द से मेरी दुनिया रुक जाती है।
रोती हूँ जब तेरी ‘आह’ की गूंज आती है
रोती हूँ जब तेरे सपनों की चादर फटती है
रोती हूँ जब तू बिन पानी की मछली सी लगती है,
तेरे टूटते हौंसलों से मेरी रूह भी तड़पती है।
रोती हूँ जब तेरा उदास चेहरा अंधेरे सा घिर जाता है,
तेरे हर आँसू का कतरा मेरे दिल को चीर जाता है।
रोती हूँ जब तेरी बेबसी का समंदर दिखता है,
तेरी आँखों में लाचारी का सागर लहराता है।
रोती हूँ जब कुछ भी मेरे बस में नहीं होता,
तेरी टूटी उम्मीदों का भार मेरी रूह को खींचता है।
रोती हूँ जब सब कुछ बिखरता नजर आता है,
तेरी आँखों का हर आंसू मेरे सपनों को जलाता है।
रोती हूँ जब तू दया की मूरत सी दिखती है,
तेरे मौन से मेरी दुनिया चुप हो जाती है।
रोती हूँ जब कोई तुझपे चिल्लाता है,
तेरे दर्द का हर पल मेरे दिल को जलाता है।
रोती हूँ जब तेरी दुनिया मुझसे दूर जाती है,तेरे हाथों से हर खुशी जब फिसलती जाती है।
हंसी तो बस तब आती है, जब लोग मुझे इमोशनल फूल कहते हैं,
और तुझे विक्टिम कार्ड प्लेयर का नाम देते हैं।
पर क्या जानें वो, तेरे हर दर्द का हिसाब मैं रखती हूँ,
हर आँसू तेरे, मेरे दिल के आँगन में गिरते हैं |— % &रोती हूँ जब सब कुछ बिखरता नजर आता है,
तेरी आँखों का हर आंसू मेरे सपनों को जलाता है।
रोती हूँ जब तू दया की मूरत सी दिखती है,
तेरे मौन से मेरी दुनिया चुप हो जाती है।
रोती हूँ जब कोई तुझपे चिल्लाता है,
तेरे दर्द का हर पल मेरे दिल को जलाता है।
रोती हूँ जब तेरी दुनिया मुझसे दूर जाती है,तेरे हाथों से हर खुशी जब फिसलती जाती है।
हंसी तो बस तब आती है, जब लोग मुझे इमोशनल फूल कहते हैं,
और तुझे विक्टिम कार्ड प्लेयर का नाम देते हैं।
पर क्या जानें वो, तेरे हर दर्द का हिसाब मैं रखती हूँ,
हर आँसू तेरे, मेरे दिल के आँगन में गिरते हैं |— % &-
ख़ुदा तुझे मिलेगा या नहीं,
ये राज़ बस तुझे पता है, किसी और को नहीं।
रूह में वो धड़कता है या नहीं,
ये एहसास तुझे है, किसी और को नहीं।
तू कहता है ये बुरा, वो भला,
पर तुझमें कितना भला है या बुरा,
ये सच तुझे हे पता , किसी और को नहीं।
ज़िम्मेदारियाँ तू दूसरों पर डालता है,
पर खुद की ज़िम्मेदारियाँ कितनी निभाईं,
ये सवाल तुझसे है, किसी और से नहीं।
तुझे इज़्ज़त नहीं मिली, तू कहता है,
पर तुनें कितनों को इज़्ज़त दी,
ये हक़ीक़त तुझे पता है, किसी और को नहीं।
प्यार तुझे कहीं से नहीं मिला,
इस सोच में तू हर पल रोया,
पर क्या तेरा दिल सबके लिए समान्तर धड़का,
ये सच्चाई तुझे पता हे, किसी और को नहीं।
ख़ुद का सामना कर, सच से रूबरू हो,
क्योंकि जो तुझे पता है,
वो किसी और को नहीं।-