ज़िक्र होगा जो महफिल में रोमांस करने वालों का
देखना मेरे यार तेरा भाई अव्वल नंबर पे होगा
😜-
क्या तुम्हें याद है वो तेज़ बारिश का मौसम
यक़ीनन फिसल कर गिरने से चोट तुम्हें आयी थी
पर यार तुम्हारे इस तस्वीर को देख कर
दर्द तो मुझे भी महसूस हुआ था .. 🥺-
कब तलक तुम्हारे फ़ितरत से अनजान बना रहता
इक रोज़ जब तुम्हें मेरे हाथों से फिसल ही जाना था-
मैं तो लिख देती मोहब्बत पे किताब
मगर मुझे दुश्मन ए कश्मीर पे ऐतबार कहाँ था 😥-
उन्हें इश्क़ नही मुझसे ये उनके अलफ़ाज़ होते थे
अब जो बात नही होती तो वो हमें याद करते हैं
पूछना ये था हमें उनसे अगर इक मुलाक़ात हो जाती
झूठ खुद से बोला था या धोखे में रखना फितरत थी तुम्हारी-
किस हाल में हैं वो इससे क्या गरज़ हमको
मुरशद ,
इस बात का भी अहसास दिलाना अभी बाकि है-
ज़ख्म देकर कभी खुश न रह पाओगे
दिल की आह तुम्हें खूब रुलायेगी इक दिन
फिर ढूँढोगे मुझे और मिल न पाओगे
चैन से इस दुनिया में तुम भी ना रह पाओगे-
दिल तो करता है हर बात ज़माने को बताऊं मैं
अपने लिखने के अंदाज़ से तेरी बेवफ़ाई दिखाऊँ मैं-
किसको तलब ये कि ग़म मुकद्दर में लिखा जाये
तुम मिलते नहीं हम इश्क़ करते नहीं
ग़म मिलता नहीं हम रोते नही-