Bhartrhari Amod   (©भर्तृहरि आमोद)
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Joined 27 April 2018


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Joined 27 April 2018
19 FEB 2021 AT 22:42

अगर तुम मुस्कुरा दो तो
मैं गम सारे ही सह लूंगा।
जो तुम पलके झुका दो तो,
मैं दिन को रात कह दूंगा।।

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3 OCT 2020 AT 13:15

सच्चा अगर है तुम्हारा सफर
मंजिल मिलेगी जो होगी सहर।
राहों मे कांटे तो होते ही हैं
मगर तुमको चलना है आठो पहर।
अंधेरे उजाले मे फसना नहीं
रुकना नही कोई रोके अगर।
बड़ी दूर है जो सजाया है घर
अकेले ही चल न कोई हमसफर।

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14 JUN 2020 AT 21:00

एकाकी जीवन और अवसाद
सदा प्रशन्नता कहते घर वार।
हो रहे दुखी की जीवन त्यागा
समझो महत्व क्या है परिवार।

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28 MAY 2020 AT 22:26

तपती धरती
दो बीघा खेत।
एक जोड़ी बैल
मिट्टी पानी व रेत।
तरबतर स्वेद
दृढ़ जीर्ण देह।
सूखी रोटी
सार रस एकमेव।
पालन कर्ता
अमूर्त हे ग्राम देव।

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27 MAY 2020 AT 22:32

वो लड़ा और गिरा
फिर उठा और आगे बढ़ा
वो ना लड़ा ना गिरा
अभी भी वही पर है खड़ा।

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26 MAY 2020 AT 20:06

तुलसी जैसा भेष बनाया
पोथी कलम इकट्ठी कर ली
जाने कब पढ़ पाएंगे?
घूम रहे जिज्ञासु बनकर
स्याही घोल दवात बना ली
जाने कब लिख पाएंगे?
ध्यान लगाते आसन करते
धोती छोड़ लंगोटी बाँधी
कब एकाग्र हो पाएंगे?
दुविधा भारी बड़ी मुसीबत
जाने कितने सिद्ध होगये
कब ज्ञानी कहलायेंगे?

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25 MAY 2020 AT 11:27

हार गया एक बार तो क्या
जीत की तेरी भूख ना जाये।
बन अर्जुन गांडीव उठा
इस बार निशाना चूक ना जाये।।

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23 MAY 2020 AT 12:44

वो है उदास
कि कुछ किया नहीं।
अरे नहीं किया तो अब कर ले
क्यों आमादा है मरने पर
नर जन्म मिला, थोड़ा जी ले।।

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21 MAY 2020 AT 23:45

वो पूरी राह
बिखेरता ही रहा
बहुत धनवान था वो
और मुस्कुराहटें अनमोल होती हैं।

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21 MAY 2020 AT 8:37

इंसान - शिशु का जन्म हुआ
कुछ क्षण मे ही मत पंथ मिला
फिर निर्धारण जाति का हुआ
पक्का सरकारी पत्र मिला
जब हष्ट पुष्ट एक युवा बना
तब कहा कि बैसाखी पर चल
वो लंगड़ाता घूमता रहा बाजार
फिर देह ढली किया व्यापार
कुछ कंकड़ पत्थर बेच लिए
मितव्ययिता की स्व शिशु पाले
जिन्हें नाम दिया उसने इंसान।

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