Aradhya Taneja   (Aradhya Harshita)
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"PASSION MAKES A PERSON PERFECT."
Joined 19 December 2017


"PASSION MAKES A PERSON PERFECT."
Joined 19 December 2017
9 MAY 2021 AT 22:05

अदम होते चराग़ में ज़िया आ जाए
उसकी कोशिशों पर दिया भी पानी से रोशन हो जाए
परवाह, की अदीबों की जमात घुटने टेक जाए
सुकून कि असलियत 'माँ', कि घर रोशन हो जाए

सिर पर हाथ रखे वो 'माँ' तो किस्मत सवर जाए
वही माँ, थाली में रोटी रखे तो ज़िन्दगी में स्वाद आ जाए
उसके चरणों की धूल मिले तो ममता का स्वरूप बन जाए
माँ हंस दे तो जन्नत पैरों की धूल फाँकने लग जाए

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14 JUN 2020 AT 16:35

अमावस की काली रात।
क्या था??
एक मैं और घनी खुली रात।
कुछ और भी था??
मेरी आँखों की चमक की रौशनी थी।
अंदर बैठी खामोशी पर चलते-कुचलते तेज रुदन हो रहा था।
उस सन्नाटे में कंपन थी।
शरीर तो वहीँ, आसमान के नीचे था।
पर शायद किसी कब्र में थी मैं।
अब आवाजें बहुत तेज हो गयी थीं।
इस घोर सन्नाटे को और नहीं सुन सकती थी मैं।
मैं कब्र में थी।

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1 APR 2020 AT 15:05

मैंने इश्क़ को इश्क़ कहा,
बेशक़, तुम्हें ही कहा।

तुमसे महोब्बत की इज़ाजत, क़ायनात से पाऊँगी।
जहाँ तेरी मर्जी के बग़ैर भी तुमको चाहूँगी।

बस गुजारिश तुमसे यूँ ही मुस्कुराते रहना।
कहाँ मालूम की आगे मैं ही तेरी सलामत बन जाऊँगी।

यकीन रखो, जबरदस्ती न तुमसे प्यार चाहूँगी।
मगर ख्याल रखना, तुमको भी महोब्बत से वाकिफ करा जाऊँगी।

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29 MAR 2020 AT 21:34

मेरे महोब्बत का इम्तिहां, मेरे महोब्बत से है।

मैं तुम्हारी ख़ुशी को अपना समझ सकती हूँ।
तुमसे मिली तन्हाई को फ़र्ज समझ सकती हूँ।
तो यक़ीनन तुम्हें अपना ख़ुदा समझ सकती हूँ।

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27 MAR 2020 AT 21:43

Part 2. घर ...

शिकायतें है कई तुमसे।
तुम ऐसी ही हमेशा से।
न रहती हो, न करती हो बातें।
औपचारिकता में आती हो।
फिर गुम हो जाती हो।
चाहती हो याद रखूं तुम्हें।
हो ऐसी तो क्यों न नाराज़ रहूँ तुमसे।
सुनो, उन राहगीरों से कहना,
पल में पलटते है वही,
जो पल के लिए होते है।
मैंने तुम्हें बचपन दिया है।
मेरी ख़ुशी तुमसे है।
मेरा चहकना तुमपे है।
तो नाराज़ कैसे रह सकता हूँ।
तुमसे ज्यादा कहाँ किसी को पहचान सकता हूँ।

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27 MAR 2020 AT 21:11

घर पहचानते हो मुझे?
अरसे बाद आई हूँ।
मैं तुम्हें याद करती रही।
क्या तुम्हें याद आयी थी मैं।
राहगीरों ने कहा,
पल में पलटना रिवाज सा है,
जाओ घर भी तुम्हारा नाराज़ सा है।
क्या ये नाराज़गी कम नहीं हो सकती?
बहुत काम था तो लौटी नहीं
घर, तुमसे कभी रूठी नहीं।
तुम मुझसे गुस्सा तो नहीं।
बोलो , घर पहचानते हो मुझे?

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25 MAR 2020 AT 20:11

चलो महोब्बत को महोब्बत करें।
थोड़ा करीब आओ मेरे
पर दूरी बने रहे।
सुनो चूमना मत न ही गले लगाना ।
ये इम्तिहान है तुम्हारे इश्क़ की
फासले में एहसास लाना।
कुछ दिन कमरे में रहना।
कहीं तुम खाली तो नहीं हो जाओगे
महोब्बत की हक़ीकत गढ़ना।
अपनी प्रतिभा की रौनक बनना।
सुनो महोब्बत को और महोब्बत करना।

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25 MAR 2020 AT 12:27

नववर्ष की सुबह खिली है।
मन हर्षाया है,
पर थोड़ा संकुचाया है।
अम्बे का आशीर्वाद है।
न डर ऐ भारत
तेरे सिर जगदम्बा का हाथ है।
कहती है भवानी
इस बार प्रार्थना
घर से ही स्वीकार है।

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31 DEC 2019 AT 18:51


जाता यह साल,
महोब्बत को महोब्बत और नकाब को बेनकाब करता गया।

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14 DEC 2019 AT 22:25

दीवारे नहीं थी, हाँ बस कमरों के रास्ते अलग थे।
पर सबकी सुबह आँगन में साथ होती थी।

बूढ़े बाबा के डांट का गुस्सा तो था।
पर चूल्हे के आँच पर पकती रोटी दिखती थी।

'मतभेद' होते तो देखा था।
पर 'मनभेद' की कोई जगह नहीं थी।

बड़ो को तेज आवाज में चीखते तो सुना था।
पर अगले ही पल सलाह -मसवीरा करते भी देखा था।

रूठ कर जब कोई खाने से मना करता था।
भारी स्वरों में गूँजती आवाज में कोई मनाता भी दिखता था।

जब तक घर का हर सदस्या खाता नहीं था।
डिबिया की रौशनी में 'बूढ़ी अम्मा' को जागते देखा था।

काँपते पावँ वाले 'बूढ़े बाबा' को चलते देखा था।
रात की आखरी निगरानी रखते देखा था।

घर छोटा था और परिवार बड़ा।
पर सबको साथ बढ़ते देखा था।

थोड़ी खामोश हुई थी मैं, जब घर को टुकड़ों में बटते देखा था।
कई खुशियों को दम तोड़ते देखा था।

दिल घर जाने का होता है।
पर टुकड़ों में बटा घर अब घर कहाँ।

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