हताश निराश मैं होता जब भी,
व्याकुल मन विचलित होता जब भी,
वह वात्सल्यपूर्ण चेहरा आपका,
अनंत प्रेममय सहारा आपका,
स्मृति पृष्ठ पर वापस आता है,
मुझे अब भी वह क्षण याद आता है।
सिर पर फिरता वह कोमल हाथ,
अविचल संबल था वह निर्मल साथ,
इस कठोर जीवन की वह नाव सुंदर,
हर्ष के कमलों के लिए जैसे दिनकर,
कौन अब वह स्नेह दे पाता है?
मुझे अब भी वह क्षण याद आता है।
शाम को आपका वह फोन प्रतिदिन,
नित विषय बात का होता भिन्न,
रामचरितमानस की चौपाई कहो,
उपायों मंत्रों की वह इकाई कहो,
ममता से 'बिभू' अब कौन बोल पाता है?
मुझे अब भी वह क्षण याद आता है।
-
Scorpion
आजिज़ हूं तेरे हाथ का क्या काम करूं मैं,
कर चाक गरेबान तुझे बदनाम करूं मैं।
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मुंतज़िर हैं तिरे दीदार का इंतज़ार है,
हिज्र में तिरे हम बेबस-ओ-बेकार हैं।
टपकते हैं अश्क मिरे मिज़्गाँ से मसलसल,
कुसूर है ये तिरा जो मिरे बेज़ार हैं।
कभी सुनी हो ख़ंदा हमारी मुद्दतों से तो कहो,
दिल-शिग़ाफ़ी कोई सुनने वाले अब बचे यार हैं?
तजाज़ुब रखती हो तो दिलदारी भी रखो,
सुख़न-वर हुए तिरे इतेज़ार-ए-दीदार में।
आजिज़ बनाया तूने ऐ सितम-गर हमें,
क़ुर्बत से ख़ल्वत का सफ़र बड़ा बेकार है।-
बेवजह क्यों तू दिन रात सताती है मुझे?
कभी हालात कभी औकात दिखाती है मुझे?
यूं तो कई बार हुई मयस्सर मुक्तसर मुलाकात,
क्यों नहीं रोज़ यही सौगात दिलाती है मुझे?
क्या ख़ता हुई मुझसे ये आज बता दे,
क्या सबब है जो यूं आंख दिखाती है मुझे?
ग़ैरों से तो बड़ा तमीज़-ओ-तक़ल्लुफ़ है,
तू के ख़ुनवे से क्यों बिन बात बुलाती है मुझे?-
फिर तेरी बात ने मेरे दिल-ए-जस्बाती में ग़म के अंधियारे जगाए,
अब कोई मुहासिब ढूंढ 'आजिज़' जो चराग फिर ख़ुशी का इस गलियारे जलाए।-
तिरे साये में रहा हूं मैं हमेशा,
ऐ जाएपनाह! मुझे मुख़्तलिफ़ ना कर!
सबब क्या है तिरे बिगड़ने का?
ऐ आलमपनाह! मुझे नावाकिफ़ ना कर!-
इस आशियाने में कई लोग रहा करते थे,
इस खंडहर को भी कई घर कहा करते थे।
दिखता है अब ये इतना बेज़ार-ओ-बेजान,
जान इस पर कई यूं ही कुर्बां करा करते थे।
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एक संबल था एक सहारा था,
हमारी नदी का वो किनारा था,
संबंध तो कई टूटते हैं,
मित्र भी पीछे छूटते हैं,
पर कुटुम्ब बिखर जाते हैं,
जब उनके बंधन खुल जाते हैं,
वो ही बंधन आज हमने खोया है,
जिसने हमें आज तक संजोया है,
वो आसरा न अब मिलेगा,
वो सहारा न अब मिलेगा।
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टपकते हैं अश्क़ मेरे मिज़्ग़ाँ से मसलसल,
कुसूर है ये तेरा जो मेरे अरमाँ बेज़ार हैं।-
चांद में ताब है, आफ़ताब बे-अज़हर है,
दरिया बे-आब हैं, ये किसका असर है?-
वो नज़रें ही क्या जो कातिल ना हो,
वो तबियत ही क्या जो माइल ना हो,
यूं तो होते हैं कई दिलचस्प किस्से मगर,
वो दास्तां ही क्या तुम जिसमें शामिल ना हो।-