किसी को भूला देना एक हुनर है
और ये कला शायद मुझमें नहीं,
फिर तो तुमसे मेरा...रूह का रिश्ता है।
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शिक्षा और कलम ही मेरी शक्ति है।
तुम्हारी ख़ामोशी में भी कुछ बात है,
सच कहूं तो अब तक मेरे लिए एहसास है।
डरते हो तुम गैरों से,वरना.....
अभी भी मेरी चाहत तुम्हारे लिए खास है।
न कुछ सोचा न समझा बस जुड़ते गई तुमसे,
सपनों की मोती बस पिरोते गई तुमसे।
दिलों के बंधन ऐसे ही नहीं जुड़ा करते,
तुम्हारी वफ़ाओं पे मुझे आज भी विश्वास है।
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तुम्हारा मिलना भी,
कोई गुनाह से कम नहीं,
एक तो तुम हो के कभी आते नहीं,
और तुम्हारी यादें हैं कि कभी जाती नहीं।
चलो न...एक बार फिर से
अजनबी बन जाते हैं,
तुम अपनी निगाहें फेरते आना,
मैं भी अपनी नज़रें झुका लूँगी।
गर आयेगें इन आँखों में आँसू,
उन्हें मैं अपने पलकों में छुपा लूँगी।
तुम कहते थे न,कभी न बिछड़ेगें हम
बनकर रहेगें सदा हमदम.....।
तो फिर चलो न...एक बार फिर से
अजनबी बन जाते जाते हैं।
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समेटती हूँ अक्सर, तुम्हारी यादों को तन्हाई में,
कहीं तुमसा,न खो जाऊं,गमों की परछाई में।
थोड़े सुकून तो मिलते हैं उस दौर में जाकर,
जिस दौर में तुम कभी,अपना हुआ करते थे।
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🌹दो पल शुकुन के🌹
झूठी सी मुस्कान लेकर,इधर उधर मैं फिरूं सखी,
दो पल शुकुन के अब कहाँ कहाँ ढूंढू सखी।
पीहर बोले ससुराल तेरा घर.....
वहीं तेरा शान और वहीं तेरी इज्जत प्रिये।
पति कहे क्या सीख है तेरी....
सासू कहे क्या रीत है तेरी...
शांत रहूं तो अबूझ कहलाऊं बोलूं तो बड़बोली,
न सवरूं तो ग्वार कहलाऊं और सवरूं तो नकचढ़ी।
सखी कहे मजे हैं तेरे,तुम हो घर की लक्ष्मी
कट रहे हैं बड़े मजे से,तुम हो कितनी अच्छी।
किसे बताऊं कैसे मैं समझाऊं अपने मन की पीर
व्याकुल सा अब मन मेरा बचा न कोई धीर।
कोई बताये मुझे समझाये,कहाँ है मेरा घर
पीहर जाऊं या ससुराल रहूं,जहाँ दुःख लें मेरा हर।
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जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
आप सदा खुश रहिए स्वास्थ्य रहिए।
Happy Birthday Dinesh ji
🎂🎂🎂🎂🍫🍫🍫🌹🌹🌹-
ये दुनिया महज चार दिनों का मेला है,
उधेड़ बुन का ... बड़ा झमेला है।
कहता तो हर इंसान,जीवन अलबेला है,
पर हर इंसान अपने में अकेला है।
सोचता तो हर राह उसका..आसान है,
पर सच पूछो तो..हर मार्ग पथरिला है।
मेरा ये है मेरा वो है,सारा संसार कहता है,
पर अंत में वही...संसार ही मटीला है।
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दिल तोड़कर,पूछते हैं वो..,
तुम्हारी उदासी की वजह क्या है
खूबसूरत सी..इन आँखों की,
छलकती सी नशा..क्या है।
छू लेती है नज़रें उनकी
धड़कनों की हर सितार को..
फिर आकर.. वो कहते हैं,
तुम्हारी चाहत की रज़ा क्या है।
भिगोकर पलकें..हर रात सो लेते हैं
तन्हा होकर हर रोज जी लेते हैं,
मिटा देते हैं रूह की..सारी लकीरें अपनी
हर ख्वाबों में...थोड़ा ज़हर पी लेते हैं।
छोड़ जाते हैं हर बार..बेबस रहने के लिए..
फिर आकर..वो पूछते हैं..मेरी खता क्या है।
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सुनों..याद है न तुम्हें,
अपनी पहली बसंत की..वो यादें,
आम की बौर सी,भीनी सी खुशबू बिखेरती।
महकती फ़िजाओं में घुलती,तुम्हारी गहरी सांसें,
मन में अठखेलियाँ करती वो प्यारी सी निगाहें
न चाहती फिर भी खींची चली जाती...
बस तेरी ओर, बस तेरी ओर।
न जानें कैसा जादू था तुम्हारी बातों का,
न जानें कैसा एहसास था तुम्हारी वादों का।
याद तो होगा न तुम्हें..वो छोटा सा पत्थर,
जिस पर बैठकर,अपनी हाथों में मेरा हाथ रखकर
तुमने कहा था,ये आम के बौर,बिल्कुल तुम सा है,
कभी शांत तो कभी चंचल,तो कभी नटखट।
जब भी आती है प्रिय..बसंत में बौर..
खिंची चली जाती हूं,बस तेरी ओर, बस तेरी ओर।
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कभी मुकम्मल न होगा तसव्वुर हमारा
बेगानी सी राहे... बेगाने से तुम,
कभी मुकम्मल न होगा जुस्तजू हमारा
अंजानी सी बातें...अंजाने से तुम।
कभी मुकम्मल न होगा आरजू हमारा
अनकही सी वादें...अनकहे से तुम,
कभी मुकम्मल न होगा तरन्नुम हमारा
अधूरी सी यादें...अधूरे से हम।-