aquib khan  
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Joined 23 June 2019


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Joined 23 June 2019
9 AUG 2023 AT 10:48

इस तरह गया वो मेरी आगोश से निकलकर
जैसे रूह चली जाती हैं जिस्म से निकलकर.
मै अपनी हालत देख कर हैरान रह गया था
जैसे ही होश आया तेरे तिलिस्म से निकलकर.

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5 AUG 2023 AT 13:30

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4 AUG 2023 AT 8:40

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27 FEB 2023 AT 16:16

बाज़ारों से निकल कर भेस बदलकर आ गई है
अब तुझे कहाँ ले जाऊं ये दुनिया तो मेरे घर आ गई है.

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22 NOV 2022 AT 14:46

मेरा हाल समझ जाओगे जो तुम्हें ये काम करना पड़े
साक़ी के होते हुए भी जो तुम्हें ख़ुद जाम भरना पड़े.

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26 OCT 2022 AT 14:17

बहारें आकर चली गईं मगर ये गुल कभी खिला नहीं
वो ऐसा दरिया है जो समंदर में समा गया मगर मिला नहीं.

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13 SEP 2022 AT 21:49

दुनिया को नज़रअंदाज़ करने का हमको भी शऊर आ गया है
जब से थमा तूने हाथ मेरा थोड़ा सा ग़ुरूर आ गया है.

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21 JUL 2022 AT 10:53

वो हमेशा से हमदर्द था दर्द के मारों का
वो पूछता भी नहीं मुझे जो उसे ख़ुश्बाश मिला होता
मैंने कब कहा आसान है साथ चलना मेरे
अगर होता मेरी जान तो मै ख़ुद क़ाफ़िला होता.
रिकत अंगेज़ तेरी अदाएं और मै सरापा वहशत
मैं यूँ ना रुसवा होता तेरी गली से जो ना निकला होता.

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7 JUL 2022 AT 20:36

क्या करें तूने हमें कभी अपना ख़रीदार समझा ही नहीं
वरना लहू से अदा करते तेरे लम्स की क़ीमत.

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2 JUL 2022 AT 10:35

इस दिल ए बाज़िद को बस अपने हमदम को पाना होता है
इसे क्या पता उसके बाद तअल्लुक़ भी निभाना होता है.

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