कैसे आते हैं याद खट्टे मीठे गुज़ारे जो लम्हे साथ
हाल ए पैकर या दर्द ए तड़प बोलो क्या दिखाऊं मैं
के होकर बर्बाद मोहब्बत में, तेरी चौखट पर काश मर जाऊं मैं
ना रखूँ ख्वाहिश तुझे पाने की, तेरे सदके में मर जाऊं मैं
कर दूँ ख़तम करके रूह आज़ाद, सिलसिला ये जुदाई का
था जो वहम साथ रहने का, सब कसमो वादों को आग लगाऊं मैं
मंज़िल जो अपनी अब अलग हुई तेरी यादों का खंडर हो जाऊं मैं
भूली बिसरी यादों संग खुद के हालात में कहीं बिखर जाऊं मैं
पाकर तेरे कदमो की धूल,तेरे इश्क़ में हुई कोई भूल हो जाऊं मैं
करके कैद आँखों में तेरी सूरत,अपनी कब्र का कोई फुल हो जाऊं मैं
कुछ उझड़ी,ठहरी,खामोश शामों का खौफनाक बवंडर हो जाऊं मैं
जो निकले तु कभी मेरी कब्र से गुज़रकर सैलाबी समंदर हो जाऊं मैं
जो छु ले तु लम्स काश बेबाक सा तुझको उठ दिखाऊं मैं
उठाकर बाहों में तुझे अपनी बेइंतेहाई मोहब्बत समझाऊं मैं
तेरी मोहब्बत में ऐसा डूबा हुँ "गुल-अफ्शा; कहीं मर ना जाऊ मैं
तुने जिस तरहा से चाहा है जी चाहता है तेरा ही बनकर रह जाऊं मैं
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