ज़िंदगी की दास्ताँ भी कुछ अजीब सी है
कभी खामोशियों में बैठना अच्छा लगता है,और
कभी यूँ सोचते हैं कि कितने लम्हे ज़ाया किए
खामोशियों में बैठ कर...
तबाही वैसे भी थी, तबाही ऐसे भी
तूफान का आना, दरमियान चले जाने के
दौरे तूफान होता है एक सिलसिला
खामोशियों का,
खामोशियों को चीर पार करने का,और
खामोशियों को फिर से संग
खामोशियों से जोड़ने का
जिंदगी गुज़र जाती है इन
खामोशियों को पाने तक, और
कभी जिंदगी खामोश हो जाती है
ज़िंदगी की खामोशियों को देखकर.
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