अपरिचित कलम✍️   (©Thoughtsofश्रेya)
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Joined 14 March 2020


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अपना दुःख किसी को बताया ना करें ,
उन दर्दों को आंसुओं में बह दिया जाया करें
अपने अंदर ही अंदर उन्हें छुपाया ना करें,
हर हाल में मुस्कुराया करें।

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अब तो इस जिंदगी की जंग में कूद पड़े हैं
भय उन्हें लगे जिन्हें इस जीवन के प्रति मोह हो,
जिन्हें कुछ खोने का डर हो ,
अपने पास तो खोने को कुछ बचा ही नहीं ,
हम हो निडर जिंदगी की सफर में आगे निकल पड़े है।

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रख सके ना खुद पर काबू ,
संभाल न पाए अपनी आबरू..
यौवन के नशे में चूर होकर,
प्यार में होश खोकर,
सही गलत का फर्क भुला बैठे ,
चाह कर किसी को खुद से भी ज्यादा..
अपना ही वजूद मिटा बैठे।
हां हमसे इतना भी ना हो सका ।

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कभी-कभी सोचती हूं कि
मेरी जिंदगी बर्बाद करके
किसी को क्या मिला ...
बस अपने थोड़े समय की खुशियों के लिए,
अपनी इंद्रिय वासना को तृप्त करने के लिए..
जिंदगी भर के लिए
मेरी किस्मत में दुख लिख दिया,
जब जिंदगी भर साथ देने की हिम्मत ना थी,
तो क्यों उन जगहों पर भी अपना हक जताया..
जहां उसका कोई अधिकार नहीं था।

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विचित्र है यह दुनिया .....

आगे की पंक्ति अनुशीर्षक में पढ़ें ।👇

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एक अच्छी समझ को
विकसित करना है ,
कुछ अच्छे विचारों को
अपनी जिंदगी में उतारना है।
कुछ अच्छे कर्म करके
और कुछ अच्छे विचारों को ..
देकर इस दुनिया से जाना है।

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कि कितना दर्द छुपा है उसके अंदर,
खुशियां तो सभी बांटते हैं ...
मगर गम, दर्द..कुछ लोग ही बांट पाते हैं,
क्योंकि यहां तो सब खुशियों के दीवाने हैं ,
गम और दर्द कोई सुनना नहीं चाहता
ना ही समझना चाहता है,
समझता सिर्फ वही है ...
जिसपे यह सब भींग रहा होता है।

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हे! मेरे आराध्य देव...
अब तक मैंने आपसे जो कुछ भी मांगा ..
आपने वो सब दिया ,
लेकिन मन उसमें भी बेचैन है..
अब आपसे कुछ भी नहीं मांगना देव
अब मेरे लिए जो भी सही होगा..
सिर्फ वो दीजिएगा,
मुझे सब स्वीकार है।
बस आप कभी मेरा हाथ ना छोड़िएगा।

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जिंदगी में कुछ गलतियों का,
कोई प्रायश्चित नहीं होता..
होता भी है तो सिर्फ ताउम्र सजा।

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पर सवार होकर चल पड़ी मैं.....
खुद की तलाश में ,
बहुत भटकने के बाद
यह पता चला कि,
बेवजह मैं खुद को...
दूसरों में खोजा करती थी,
मेरा वजूद तो मेरे अंदर ही था।

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