𝔸𝕡𝕣𝕚𝕔𝕙𝕚t 𝔸𝕝𝕗𝕒𝕫   (𝔸𝕡𝕣𝕚𝕔𝕙𝕚𝕥 🌼)
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Joined 12 May 2021


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जिस देश मे गुरुओं पर लाठी चले
उस देश मे विकास की कामना करते हो ??

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खुद से लड़ता रहा हूं मैं,
अनायास ही उलझा रहा हूं मैं।
हर पल खुद को हराता रहा,
फिर खुद को ही समझाता रहा हूं मैं।
करवट बदलता रहा मैं
बिस्तर पर तमाम सिलवटें पड़ती रही।

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" गर खोल दो तुम कानो के झुमके आज
तो उड़ने से तुम्हे कोई नहीं रोक सकता"
मैं नहीं चाहता किसी भी तरह की सीमितता तुमको सीमित करे ✨

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कविताएँ उपज जाती है जितना काटो उनको
वो फिर उग जाती है मन के मैदान मे
कविताओं को नहीं चाहिए खाद ,पानी ,बीज
उनको चाहिए कवि के अंतर्मन की पीड़ा...

व्यक्ति जब थक जाता है अपने व्यक्ती होने से
तो जन्म होता है एक रचनात्मक व्यक्ति का
जो बोलता नहीं बल्कि बोलती है उसकी कलम
आवाज़ करते पन्ने उसे सोने नहीं देते
तब क्रांति करती रचना का जन्म होता है ।

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तुम बिल्कुल घर जैसे हो
जहाँ दिन भर की थकान के बाद मैं लौटना चाहता हूं।

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क्यूँ की पुरुष प्रधान समाज हमारा
बर्दास्त नहीं कर पाएगा
पूर्ण सत्य
इसलिए अर्धसत्य का बखान है
खैर स्त्री अकेले ही बदनाम है
वैसे भी इस कार्य मे
पुरूष की तो कोई भूमिका होती ही नहीं....

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एक इतवार तो जिंदगी को भी चाहिए....💝

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काग़जों में रह गया मेरा सक्त भारत
बचपन स्कूल की छत में ढह गया....

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यहां मैं हूँ, मेरे ये फूल है और तुम्हारी यादें !

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किसी दिन मैं इतना थक जाना चाहता हूं
कि जब शाम ढलने पर लेट जाऊँ बिस्तर पर
तो मेरी पीठ मे कोई दर्द ना हो
माथे पर कोई शिकन ना हो
मेरे सिरहाने हो मेरा पसन्दीदा कोई साहित्य
और बस उसे पढ़ते पढ़ते सो जाऊँ, सो जाऊँ ।

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